रिपोर्टर: … विशेष संवाददाता – गिरजा शंकर अग्रवाल
एक शांत सुबह, आँचल सोनी छाबड़िया अपने बेटे विआन को बाहों में समेटे बैठी थीं । जैसे पूरा ब्रह्मांड एक माँ की गोद में सिमट आया हो। उनकी आँखों में थकान नहीं, तपस्या थी। उनकी मुस्कान में ग्लैमर नहीं, गहराई थी।
“मेरे बेटे के लिए लिया गया ये फैसला मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा और सबसे सही निर्णय था।”
– आँचल सोनी छाबड़िया
जौनपुर के एक छोटे से मोहल्ले ओलन्दगंज से मायानगरी मुंबई तक का सफर कोई फिल्मी कल्पना नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़ी उस लड़की की हकीकत है, जिसके पास सिर्फ़ सपने, संघर्ष, और संकल्प थे। आज वही लड़की, एक माँ, एक पत्नी, एक बहू और एक कामकाजी अदाकारा के रूप में न केवल अपना घर संभाल रही है । बल्कि समाज को भी एक नई सोच दे रही है।
गिरजा शंकर अग्रवाल – आप एक साथ कई भूमिकाएं निभा रही हैं — माँ, पत्नी, बहू और अभिनेत्री। इन सबके बीच संतुलन बनाना कितना कठिन होता है?
आँचल:-
संघर्ष तो हर महिला की किस्मत में होता है, पर उस संघर्ष में अगर साथ देने वाले अपने हों, तो रास्ते आसान हो जाते हैं। बेटे की पढ़ाई, पति के व्यवसाय में मदद, अपनी पीजी प्रॉपर्टी की ज़िम्मेदारी, और एक्टिंग का जूनून — सब कुछ एकसाथ संभालना कभी-कभी असंभव जैसा लगता है। पर मेरे पति, मेरा भाई और मेरी टीम मेरे स्तंभ हैं।
मेरे पति सिर्फ़ जीवनसाथी नहीं हैं। वो मेरे सपनों के संरक्षक हैं।
उन्होंने मेरी सास और ननद को भी समझाया कि एक महिला का काम करना कमज़ोरी नहीं, उसका आत्मबल है। उनके सहयोग से ही मैंने अपने सपनों को फिर से जीना शुरू किया। आज अगर मैं किसी मुक़ाम पर हूं। तो उसके पीछे मेरे पति की सोच और समर्थन की छाया है।
गिरजा शंकर अग्रवाल – क्या अपने करियर को लेकर कभी कोई त्याग करना पड़ा?
आँचल:-
त्याग शब्द छोटा लगता है, लेकिन उसका अर्थ बहुत गहरा होता है।
करीब आठ साल पहले मैंने इंडस्ट्री को अलविदा कहा था। तब भी मन में कुछ अधूरा था। लेकिन अब जब मैं वापस लौटी हूं, तो मेरे अंदर की अदाकारा फिर से साँस ले रही है।
मगर मेरा बच्चा अब भी मेरी प्राथमिकता है — विआन अभी केवल तीन साल का है। जब वह दो साल का था, तभी से स्कूल जा रहा है। उसकी दिनचर्या, उसकी नींद, उसकी छोटी-छोटी ज़रूरतें — मैं कुछ भी मिस नहीं करना चाहती।
इसीलिए आज भी मैं मुंबई तक सीमित हूँ, और लंबी आउटडोर शूटिंग से परहेज़ करती हूँ। कुछ प्रोजेक्ट छोड़े हैं, कुछ लोगों की नाराज़गी झेली है। लेकिन एक माँ का अपने बच्चे को प्राथमिकता देना, क्या सच में ग़लत है?
गिरजा शंकर अग्रवाल – इंडस्ट्री में आपके इस निर्णय को किस तरह लिया गया?
आँचल:-
कुछ लोगों ने समझा, कुछ ने नहीं।
कुछ ने मेरे इनकार को निजी तौर पर लिया, पर मैंने कभी किसी का दिल दुखाने की मंशा नहीं रखी। मैंने माफ़ी भी मांगी, समझाया भी। मैं बस एक माँ हूँ, जो अपने बेटे को बड़ा होते देखना चाहती है — नज़रों के सामने, सीने से लगाकर।
अगर कोई आउटडोर प्रोजेक्ट विआन की छुट्टियों में होगा, तो मैं ज़रूर करूंगी। लेकिन फ़िलहाल, मेरे लिए पैसा और करियर बाद में है, बेटे का भविष्य पहले।
गिरजा शंकर अग्रवाल – क्या आपने कभी अपने फ़ैसले पर अफ़सोस किया?
आँचल:-
नहीं, कभी नहीं।
जब विआन मुझे गले लगाता है, जब उसकी मुस्कुराहट में मैं सुकून पाती हूं, तो लगता है कि हर त्याग, हर ठुकराया हुआ ऑफर, हर समझौता — सब कुछ वाजिब था।
माँ बनने के बाद, मेरी परिभाषा ही बदल गई। अब मेरी सफलता सिर्फ़ स्क्रीन पर नहीं, मेरे बेटे की आँखों की चमक में है।
गिरजा शंकर अग्रवाल – उन महिलाओं के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी, जो घर और सपनों के बीच झूल रही हैं?
आँचल:-
अपने सपनों से प्यार करना मत छोड़ो — पर अपनों को पीछे मत छोड़ो।
अगर घरवाले साथ दें, तो आप दुनिया भी जीत सकती हैं।
मुझे मेरा पति मिला, जिसने मेरा आत्मविश्वास वापस दिया। मेरा भाई मिला, जिसने मेरा मनोबल बढ़ाया। मेरी टीम मिली, जिसने मुझे उड़ने के लिए पंख दिए।
सही साथी मिल जाए, तो औरत सिर्फ़ घर नहीं सँभालती, वह खुद को भी संवारती है।
अंतिम पंक्तियाँ:
तस्वीरों में आँचल अपने बेटे विआन को गले लगाए बैठी हैं — यह सिर्फ़ एक माँ का आलिंगन नहीं, बल्कि हर उस महिला की पहचान है जो अपने सपनों और ममता के बीच संतुलन बनाना चाहती है।
एक ऐसी माँ, जो सिर्फ़ अपने बच्चे की मुस्कान में अपनी जीत देखती है।
यह लेख एक श्रद्धांजलि है हर उस नारी को जो अपने भीतर एक साथ कई किरदारों को निभाती है – बिना थके, बिना रुके, सिर्फ़ अपने प्रेम और ज़िम्मेदारी के बल पर।
