अत्यधिक मोबाइल एवं तकनीकी पर निर्भरता संपूर्ण मानव जीवन के लिए खतरा है-प्रो.रणधीर सिंह

समाज जागरण रंजीत तिवारी
रामेश्वर वाराणसी।।
मुझे आधुनिकता एवं आधुनिक तकनीक से परहेज नहीं है लेकिन आवश्यकता से अत्यधिक मोबाइल एवं तकनीकी पर निर्भरता संपूर्ण मानव जीवन के लिए खतरा है । वर्तमान के प्रतिस्पर्धा युग में मोबाइल एवं तकनीकी हमारे जीवन का अहम हिस्सा है हम कह सकते हैं कि मोबाइल ज्ञान एवं सूचनाओं का आधुनिकतम केंद्र तथा तनाव उत्पन्न करने का सर्वोत्तम स्रोत है । मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग से बच्चों के आंखों की पुतलियां टेढ़ी हो रही है उनके व्यवहार , प्रति उत्तर एवं प्रतिक्रिया में बहुत परिवर्तन देखे जा रहे हैं । बच्चों का जीवन रील बनाने, वीडियो गेम्स खेलने , वीडियो शॉर्ट्स देखने , चैटिंग करने में सिमटता जा रहा है । उनके द्वारा मोबाइल फोन को शौचालय में लेकर जाने की जिद ने उनके मानसिक रूप से बीमार होने की भविष्यवाणी कर रहा है, साथ ही साथ मनोवैज्ञानिकों के लिए चुनौती भी बन गया है । मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग से आने वाले समय में देश की आधी आबादी विक्षिप्तावस्था में सड़कों पर
नृत्य कर रही होगी और हम लाचार , बेबस और बेसुध होकर इस दृश्य को देख रहे होंगे।
मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग के कारण नौनिहालों बच्चों एवं युवाओं में मानसिक मंदता, मानसिक विकलांगता, मानसिक विक्षिप्तता, वर्णांधता, स्मृति क्षीणता , श्रवण क्षीणता, अनिद्रा, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, चिंता और साथ ही साथ आइसोलेशन ने बच्चों की मनोदशा को बिगाड़ दिया है।
देश की आधी आबादी से अधिक बच्चे एवं युवा मानसिक अस्पतालों में पहुंचने की दहलीज पर खड़े हैं, बच्चें एवं युवा पीढ़ी को बचाने के लिए खेल, मनोरंजन, प्राकृतिक मनोरंजन ,कहानी, पार्क भ्रमण, अंताक्षरी ,कहानीई लेखन ,बागवानी, चित्रकारी ,पेंटिंग, संगीत आदि का सहारा लेकर इनके बहरेपन का इलाज नहीं किया गया तो भारत विकसित भारत बनने से पहले विक्षिप्त भारत बनने की राह प्रशस्त कर चुका होगा। देश के विभिन्न जनपदों में मानसिक अस्पतालों की संख्या बढ़ानी होगी तथा नेत्र सर्जनों को मुस्तैद होकर सभी यंत्रों के साथ सर्जरी करने के लिए तत्पर रहना होगा । आने वाले समय में मानसिक अस्पतालों एवं नेत्र चिकित्सकों की सेवाएं अधिक लिए जाने एवं उनके व्यवसाय की फलने -फूलने की अधिक संभावना है । हम सभी नेअपने जिन कुलदीपको के प्रकाश में अपने वृद्धावस्था को उद्दीप्त करने की फिराक में है वह दिवास्वप्न मात्र होगा , हमारी आंखें सिर्फ अश्रु बहाने को विवश होगी ।

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