सत्ता के गलियारे से .. रवि अवस्थी

** अटलजी को समर्पित होगी परियोजना
आगामी 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेई की सौवीं जयंती है। बीजेपी इसे यादगार बनाने के लिए देश की पहली नदी जोड़ परियोजना को उनके नाम समर्पित करने की तैयारी में है। इसी दिन,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परियोजना के पहले बांध दौधन की आधारशिला रखेंगे।  
बांध व इससे जुड़ने वाली प्रमुख नहर का नाम दिवंगत प्रधानमंत्री अटल जी के नाम पर करने का ऐलान पीएम कर सकते हैं। सौवीं जयंती पर एक तरह से यह उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी। उप्र व मप्र की इस संयुक्त परियोजना में दोनों ही राज्यों के सीएम भी प्रमुख रूप से मौजूद रहने वाले हैं। जल समस्या निराकरण के लिए देश में नदियों को जोड़ने का सपना पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने ही देखा और इसे मूर्त रूप भी उन्होंने ही दिया था।

** सत्र से पहले डिनर पॉलिटिक्स
मप्र कांग्रेस की युवा टीम विधानसभा शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही सरकार को घेरने की योजना बना रही है। यानी सर्दी में गर्मी का अहसास कराने की तैयारी,लेकिन सत्र से पहले ही पार्टी की डिनर पॉलिटिक्स कुछ ओर ही इशारा कर रही है।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार सत्र से एक दिन पहले विधायकों को डिनर देने की तैयारी में हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सत्र के पहले दिन। फर्क इतना है कि सिंघार एक होटल में तो नाथ का डिनर आयोजन उनके अपने बंगले पर होगा। 
अलग-अलग भोज में क्या खिचड़ी पकेगी? इसका खुलासा तो बाद में ही होगा,लेकिन इस पॉलिटिक्स से कांग्रेसी विधायकों की ‘पौं बारह’ है। 

** डिंडौरी विधायक की पीड़ा
जबलपुर की संभागीय बैठक में डिंडौरी विधायक ओमप्रकाश धुर्वे ने पीएचई मंत्री संपतिया उइके की मौजूदगी में अपनी भड़ास जमकर निकाली। मुद्दा था,जल जीवन मिशन। पीएम मोदी के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की जो दुर्गति मप्र में हुई,शायद ही किसी अन्य राज्य में हुई हो। 
धुर्वे की असल पीड़ा उन ठेकेदारों को लेकर रही जो एक बार की कार्रवाई के बाद भी जिले में पुन: नया ठेका पाने में सफल हो गए। धुर्वे इसे छाती पर मूंग दलने वाला बता रहे हैं।
‘मूंग तो जिले में पहले भी दली जाती थी’। फर्क इतना है,कि अंचल में लाइन अब उइके की आगे बढ़ रही है। वहीं,धुर्वे को फिलहाल संगठन में एक राष्ट्रीय स्तर के पद से काम चलाना पड़ रहा है। वह भी चंद दिनों का है।

** पहले ट्रेनिंग,फिर प्रमोशन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यूं तो मेहनती,परोपकारी व सेवाभावी संगठन माना जाता है। जो आपदा या किसी विपत्ति के समय पूरे मनोभाव से पीड़ितों की निस्वार्थ सेवा करता है,लेकिन आम दिनों में इसकी कार्यशैली को लेकर इसका एक और सूत्र वाक्य अक्सर चर्चा में रहा है। वह है, संघ के हैं तीन आयाम..भोजन,बैठक  और विश्राम।

दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ठहरी ’24 ×7′ दिन सक्रिय रहने वाला दल। ऐसे में संघ व उसके अनुषांगिक संगठनों से आए कार्यकर्ताओं,पदाधिकारियों को संगठन में सीधे बड़ा यानी प्रमुख पद देने पर अघोषित रोक है। 

मौजूदा चुनाव प्रक्रिया में भी इसे लेकर पूरी सतर्कता बरती जा रही है। यानी एंट्री भले ही संघ के मार्फत हो लेकिन पहले ट्रेनिंग फिर प्रमोशन। मौजूदा प्रदेश कार्यसमिति के ही कई सदस्य इसका उदाहरण हैं।

** सियासत का यू-टर्न
बीते एक पखवाड़े में मप्र की सियासत के दो अलग—अलग रंग दिखाई दिए। पहले हफ्ते में विजयपुर उपचुनाव नतीजे की तल्खी रही तो दूसरे  में उस पर मरहम लगाने की कोशिश हुई। पार्टी में शीर्ष स्तर से उपचुनाव को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देने का निर्देश जारी हुआ। वहीं,दिल्ली में भी मेल-मुलाकात व परस्पर शाल ओढ़ाकर गर्मजोशी कायम रहने के संकेत भी दिए गए।
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** नॉवेल नहीं,अब लिखेंगे नॉवेला
कभी अपने सरनेम ‘खान’ को भूत की तरह पीछा करने वाला बताने वाले मप्र के आईएएस नियाज खान अब नॉवेल नहीं बल्कि नॉवेला लिखेंगे। नियाज ने ‘ब्राह्मण द ग्रेट’,’आश्रम’ सहित अब तक करीब दस नॉवेल,लेकिन बात बनी नहीं। इसके चलते उन्होंने अब नॉवेला लिखने का मन बनाया है। इसकी थीम भी ‘सनातन धर्म की रक्षा के लिए काम’ पर आधारित होगी। टाइटल होगा’फ्लाइंग सुपर ह्यूमन’। 
कहा जाता है-नॉवेला ,इटैलियन कांसेप्ट है। जिसमें 20 से 50 हजार शब्दों की काल्पनिक कहानी वाली एक छोटी किताब का लेखन किया जाता है।

मूलत: छत्तीसगढ़ निवासी नियाज साल 2001 में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बने। साल 2015 में आईएएस अवार्ड हुआ। लेखन उनका शौक रहा। आईएएस बनते ही जिम्मेदारी का जज्बा पैदा हुआ तो ‘व्यवस्था’ के खिलाफ खड़े हुए। कई सुशासन विरोधियों की नकेल कसी। नतीजा,21 साल की सेवा में 19 बार तबादले करा बैठे।
बकाया कमी,साल 2022 में पूरी हुई। जब महत्वाकांक्षी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर प्रतिकूल टिप्पणी कर डाली। अब तीन साल से लूप लाइन में हैं।

** गड़बड़ाया समन्वय का गणित
मप्र पीडब्ल्यूडी का पुराना ध्येय वाक्य ‘समन्वय से सभी खुश रहते हैं’। जो सड़क किनारे उसके बोर्ड पर भी लिखा दे जा सकता था। हालांकि वक्त के साथ अब यह ओझल हो चुका है। बोर्ड से भी और विभाग से भी। इसके चलते बीते एक साल में ही विभाग के तीन मुखिया बदले जा चुके हैं। नए प्रमुख के पास अतिरिक्त प्रभार है। इसके चलते उनके जल्द बदले जाने की संभावना कम है।