मोहाली : मोहाली जिले में बनूड़ अंबाला रोड स्थित मात पिता गोधाम महातीर्थ में गोपाष्टमी महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर के दौरान भक्तों द्वारा 2000 से अधिक देसी घी के दीपक जलाए गये ।
मात पिता गोधाम महा तीर्थ के मुख्य प्रबंधक गोचर दास ज्ञान ने कहा कि इस कार्यक्रम में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़ और दिल्ली से बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया ।
इस दौरान सुबह से रात्रि तक गोमाता का पूजन किया गया । यजमान पूजन सुबह नौ बजे से दस बजे तक हुआ । नंदिनी गौ महायज्ञ व पूर्णाहुति सुबह दस बजे से बारह बजे तक हुआ । गौ माताओं का गुणगान व संकीर्तन तीन बजे से सात बजे तक व गौ माताओं की भव्य आरती शाम सात बजे हुई।उसके बाद भण्डारा का आयोजन किया गया ।
इस मोके पर महा तीर्थ के प्रधान अमरजीत बंसल,सुरनेश सिंगला, कश्मीरी लाल गुप्ता, मामन राम गर्ग,लाजपत राय गर्ग,सुभाष अग्रवाल,दीपक मित्तल,सुरेश बंसल,सुभाष सिंगला,पंकज जायसवाल,कपिल,बबू आदि मौजूद थे।
कार्यक्रम में अखिल भारतीय गो कथावचक श्री चंद्रकांत , गो प्रचारक आचार्य सुशील मिश्र , अंतर्राष्ट्रीय भजन गायक श्रीमती सुषमा शर्मा के अलावा कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, केंद्रीय राज्य मंत्री भारत सरकार लोक नेता श्री श्रीपद येसो नाइक, विशिष्ट अतिथि संस्कृति उपासक डॉ. गोविंद जी काले और विशेष अतिथि इंडिपेंडेंट डायरेक्टर हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड डॉ. दिव्या गुप्ता व पूर्व भारतीय क्रिकेटर देवाशीष निलोसे मौजूद थे।
इस मौके पर नंदिनी माता का पूरा गौशाला तीर्थ क्षेत्र दिवाली की तरह जगमगा उठ। मात पिता महातीर्थ मंदिर की खास बात यह है कि इसकी पहचान विश्व स्तर पर स्थापित हो चुकी है। वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक (लंदन) में माता पिता गोधाम महातीर्थ मंदिर को दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर होने का दर्जा दिया गया है, जिसके मंदिर में किसी भी भगवान की मूर्ति नहीं है, लेकिन यहां अपने माता – पिता को ज्योति स्वरूप में याद किया जाता है।
इस मौके पर अपने विचार साझा करते मात पिता गोधाम महातीर्थ स्थल के संस्थापक गोचर दास ज्ञान कहा के मात पिता गोधाम महातीर्थ स्थल आज एक रूहानी केंद्र के तौर पर विकसित हो रहा है। इस तीर्थ स्थल में जहां गौ माता से प्यार करने की शिक्षा मिल रही है वहीं घर-घर में माता-पिता का सम्मान किए जाने का संदेश पहुंचा जा रहा है। इस संस्थान की तरफ से दिए जाने वाला संदेश आज समय की सबसे बड़ी जरूरत है। इसी के साथ हम अपनी संस्कृति को बचा सकते हैं।