पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014 से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ।
समाज जागरण
1 मई, 2014 को लागू हुए पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014 [Street Vendors (Protection of Livelihood and Regulation of Street Vending) Act, 2014], जिसे आम तौर पर ‘स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट’ के रूप में जाना जाता है, ने एक दशक पूरे कर लिये हैं। एक दूरदर्शी विधान के रूप में इसका स्वागत किया गया था, जिसका उद्देश्य पथ विक्रेता या ‘स्ट्रीट वेंडर्स’ के विक्रय अधिकारों को वैध बनाकर उनका उत्थान करना था। हालाँकि, इस विधान के व्यावहारिक कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
स्ट्रीट वेंडर्स प्रमुख शहरों में अपनी व्यापक उपस्थिति के कारण शहरी अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण घटक हैं, जो रोज़मर्रा की आवश्यक उपयोगी वस्तुओं की पेशकश करते हैं। वे शहरी आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र में अपरिहार्य माध्यम या नोड्स के रूप में कार्य करते हैं, जो निवासियों के लिये मूलभूत आवश्यकताओं तक पहुँच प्रदान करते हैं।
स्ट्रीट वेंडर्स कौन हैं और उनके संबद्ध अधिकार:
परिभाषा:
स्ट्रीट वेंडर वह व्यक्ति होता है जो विक्रय या वेंडिंग के लिये किसी स्थायी निर्मित संरचना के बिना आम लोगों को वस्तुओं की बिक्री करता है।
वे फुटपाथ या अन्य सार्वजनिक/निजी स्थानों पर अस्थायी निर्मित संरचना के माध्यम से अपना कार्य करते हैं या वे चल (मोबाइल) विक्रेता हो सकते हैं जो ठेला या टोकरियों में अपनी वस्तु रख एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते हुए उसकी बिक्री करते हैं।
जनसंख्या:
दुनिया भर के प्रमुख शहरों में, विशेषकर एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका जैसे विकासशील भूभागों में स्ट्रीट वेंडर्स की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
भारत में लगभग 49.48 लाख स्ट्रीट वेंडर्स की पहचान की गई है, जहाँ उनकी सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश (8.49 लाख) और मध्य प्रदेश (7.04 लाख) में है। राजधानी दिल्ली में लगभग 72,457 स्ट्रीट वेंडर्स की पहचान की गई है, जबकि सिक्किम में उनकी अनुपस्थिति पाई गई है।
संवैधानिक प्रावधान – व्यापार का अधिकार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(g) सभी नागरिकों को कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का मूल अधिकार प्रधान करता है।
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