जो चले गए इस दुनिया से अब लौट नहीं वो आएंगे
मन व्यथित मेरा है की उनका ऋण कैसे अब हम चुकायेगे

जो चले गए इस दुनिया से



लाया मुझे इस दुनिया में हम उन्ही का अंश कहायेंगे
इतना वात्सल्य दिया मुझको की भुला नहीं हम पाएंगे
जो चले गए इस दुनिया से अब लौट नहीं वो आएंगे
जीवन में सब कुछ मिला उन्हीं से हम उनके आभारी हैं
शामिल हो गए पूर्वजों में यहीं पर दुनिया हारी है
जीवन अर्थ समझ नहीं पाए विधाता की रचना सारी है
वह कौन सा दुर्गम स्थल है जहां पहुंच न पाए ज्ञानी है
जो चले गए इस दुनिया से अब लौट नहीं वो आएंगे
जो कल थे वो आज नहीं जो आज है वो कल नहीं
नजर नहीं अब आते जिनके बिना गुजरे एक पल नहीं
सृष्टि का नियम निरंतर चलता क्यों सबको आभास नहीं
जिस जगह गए वह बिन बोले आया अब तक संदेश नहीं
जो चले गए इस दुनिया से अब लौट नहीं वो आएंगे
फरियाद कर रहे हम उनसे जिनके ऋणी इस जीवन में
कृतज्ञ भाव बना रहे विभूतियों के सम्मान में
सदा रहे अभिमान उन्हीं पर रहते जो स्मृतियों में
नमन करूं मैं शीश झुका कर पुण्य आत्माओं की याद में
जो चले गए इस दुनिया से अब लौट नहीं वो आएंगे
गूढ पहेली सी उलझी पर तुमको समझ ना पाई हूं
नजरें भटक रही आसमां तक पर तुमको ढूंढ ना पाई हूं
कहां हो गए लुप्त प्राय तुम व्यथा नहीं कह पाई हूं
उसे देश का क्या नाम है जहां मैं तुम्हें ढूंढ ना पाई हू
जो चले गए इस दुनिया से अब लौट नहीं वो आएंगे

सीमा त्रिपाठी
लालगंज प्रतापगढ़