शीर्षक- कलयुग के बाजार में


कलयुग के बाजार में, क्या नहीं बिक रहा है।
पाने को दौलत और नाम, क्या क्या हो रहा है।।
कलयुग के बाजार में————————-।।

बाप बड़ा न भैया है, सबसे बड़ा रुपया है।
रुपयों के लोभ ने, रिश्तों का खून किया है।।
पाने को धन और शौहरत, इंसान बिक रहा है।
पाने को सुख और शान, क्या क्या हो रहा है।।
कलयुग के बाजार में————————।।

भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार अब, बन गया है इंसान का।
बिना कमीशन- रिश्वत के, नहीं होता काम इंसान का।।
सभी सरकारी विभागों में, ईमान बिक रहा है।
पाने को पद और पैसा, क्या क्या हो रहा है।।
कलयुग के बाजार में————————-।।

दया- धर्म और संस्कार, मतलबी बन गए हैं।
इस वतन के आज बहुत, सौदागर बन गए हैं।।
मतदाता भी अपना वोट, और धर्म बेच रहा है।
पाने को रोटी और घर, क्या क्या हो रहा है।।
कलयुग के बाजार में————————।।

सत्यमेव जयते अब, नहीं है कानून- शासन में।
सत्ता के गुलाम बन गए, कलमकार अब शासन में।।
न्याय- मीडिया- साहित्य, और सत्य बिक रहा है।
पाने को सम्मान- सुविधा, क्या क्या हो रहा है।।
कलयुग के बाजार में————————–।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

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