नवयुग का स्वर्णिम प्रभात में औरंगाबाद जिले को तोहफे के रुप में मिले नए एसपी ,
फिर भी औरंगाबाद जिले में थानेदारों द्वारा.अपराध कर्मियों का संरक्षण का खेल है जारी।
आखिर औरंगाबाद जिले में कब लगेंगे पुलिस की दादागिरी, मनमानी एवं तानाशाही पर रोक।
समाज जागरण, सत्य प्रकाश नारायण जिला संवाददाता/ धनंजय कुमार विधि संवाददाता औरंगाबाद (बिहार)
औरंगाबाद (बिहार) 7 जनवरी 2023 :- लगता है कि बिहार पुलिस का एकबाल खत्म हो गया है तभी सदैव आपकी सुरक्षा में तत्पर रहने की दावा करने वाली पुलिस पर हमला की घटना में अधिक वृद्धि हुई है। क्या पुलिस को शराब माफिया से डर लगता है या उस गुंडों से जिसको वह पहले संरक्षण दे चुकी है । जिस बिहार पुलिस को लोगों की सुरक्षा की जिम्मेवारी है वह खुद सुरक्षित नहीं है ,और आए दिन पुलिस पर हमले होते आ रहे हैं। घटना चाहे औरंगाबाद सिमरा थाना की हो या जहानाबाद या पटना से सटे धनरुआ में पुलिस टीम पर हुए हमले की घटना हो।
पटना से सटे धनरुआ में पुलिस टीम पर हुए हमले में 25 पुलिसकर्मी घायल हुए और सभी अस्पताल पहुंच गए वही एक जनता की मौत हो गई और 2 लोग घायल हो गए ।
कभी पुलिस पब्लिक पर लाठी भांज रही है तो कहीं पब्लिक पुलिस पर पत्थर बरसा रही है दोनों तरफ से वार पलटवार हो रहा है । ना पुलिस पब्लिक को पीटने में पीछे हट रही और.न पब्लिक मानने को तैयार है । वर्तमान में पुलिस पर हमले तेज हुए हैं मामला चाहे वारंटी को गिरफ्तार करने की हो या शराब माफिया, अवैध खनन से जुड़े माफिया को पकड़ने की बात हो,पुलिस को लोगों की गुस्सा का शिकार होना पड़ रहा है ।
पुलिस विभाग में अवकाश प्राप्त कर चुके वरीय पदाधिकारियों का मानना है कि कहीं ना कहीं पुलिस पब्लिक के बीच बिगड़ते रिश्ते का नतीजा है। खासकर बिहार में पुलिस पर लोगों का घटते विश्वास एक बहुत बड़ा कारण है। इसके अलावा पुलिस का गिरता मनोबल भी बढ़ते अपराध का कारण है। यही कारण है कि जनता फर्ककेट नहीं कर पा रही है कि जनता के प्रति पुलिस ईमानदार है या किसी और के प्रति? यदि आपका मोबाइल फोन गुम हो जाए तो खोने का आपको उतना गम नहीं होगा ,जितना आप एफ आई आर कराने की बात सोच कर परेशान हो जाएंगे। और थाना पहुंचने के पहले यह सोच सोचकर आप परेशान हो जाएंगे कि थाने पर थानेदार या उनके अधीनस्थ पुलिसकर्मी हमारे साथ कैसा व्यवहार करेंगे।
पुलिस के स्लोगन से ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी सेवा में सदैव तत्पर रहने की नारा केवल पुलिस गाड़ियों पर लिखने के लिए है। जब तक पुलिस अपने रवैया को नहीं सुधारती तब तक इस प्रकार की घटना पर लगाम लग पाना संभव नहीं है । भारत में 76 साल बीत जाने के बाद आज भी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के बाद पुलिस से डर लगता है। क्या राज्य की एजेंसियां खासकर पुलिस की मानसिकता बदलने के लिए 76 साल भी कम है ?आखिर क्यों भारत की पुलिस ब्रिटिश राजतंत्र के दमनकारी अवशेषों को आज भी ढ़ो रही है? शायद पुलिस वालों से ज्यादा गलती है सत्ताधारी वर्ग का है जिसने राज्य की प्रमुख कानून को प्यारी संस्था को अपना गुलाम बना कर रखा है।
उपरोक्त संबंध में पुलिस अधीक्षक औरंगाबाद से पक्ष जानने का प्रयास सोशल मीडिया के माध्यम से किया गया किंतु समाचार प्रेषण तक किसी तरह का कोई प्रतिउत्तर प्राप्त नहीं हो सका है इसके लिए समाज जागरण के पत्रकारों द्वारा 3 दिनों से लगातार संपर्क का प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन संपर्क स्थापित नहीं हो सका है,शेप अगले अंक मे पढ़े।