क्या बीपीएल कार्ड/आय प्रमाण पत्र की जांच करायेगी बीजेपी सरकार ?

समाज जागरण डेस्क

तीन राज्यों मे प्रचंड बहुमत से बीजेपी मे खुशी की लहर है, निश्चित तौर पर होना भी चाहिए। क्योंकि आजकल राजनीतिक का मतलब समाज सेवा नही बल्कि सत्ता पर कब्जा करना है। या यह भी कहना ठीक होगा कि राजनीतिक पार्टी एक प्राइवेट कंपनी की तरह बन चुकी है जिसमे जनता के सुख दुख को जानने समझने या समस्या को दूर करने के बजाय ब्रांड को प्रमोट करना है। जिससे की ज्यादा से ज्यादा प्राडक्ट को बेचा जाय उससे ज्यादा से ज्यादा धन अर्जित कर अपने परिवार और रिस्तेदारों को फायदा पहुँचाया जाय। राजनीतिक मे भी बड़ा मध्यम या स्माल इंडस्ट्रीज है। या कहे कि बीजेपी जै सार्वजनिक उद्योग, कांग्रेस के जैसी निजी उद्योग और समाजवादी , बीएसपी के जैसे तमाम सारे लघु उद्योग शामिल है।

देश के चुने हुए नेता भले ही वेतन सरकार से लेते हो लेकिन प्रचार, प्रसार अपने पा्र्टी और ब्रांड के करते है। यही कारण है कि यूपी जैसे विशाल प्रदेश मे विज्ञापन की बजट 550 करोड़ है वही सिर्फ 7 जिलों वाली दिल्ली की बजट 500 करोड़ की है। विज्ञापन की सबसे बड़ी खासियत सरकारी योजना की जानकारी भले ही पढ़ने लायक न हो लेकिन नेता के तस्वीर आपको बड़े बड़े दिखेंगे।

सरकारी तंत्र देश मे पूरे साल मे लगभग 200 दिन तो चुनाव प्रचार और चुनाव संबंधि योजना मे व्यस्त रहती है और 100 दिन जनता कि शिकायत निस्तारण करने मे। बांकि बचे के 65 दिन ही काम होता है। देश के आधे से ज्यादा पुलिस तो नेताओं के धरना प्रदर्शन और नेताओं के सुरक्षा मे व्यस्त रहती है तो जनता की सुरक्षा कौन करे। एक यह भी कारण है कि अदालत 20 सालों तक जनता को न्याय नही दे पाती है। क्योंकि जिस पुलिस आफिसर को जांच करना है वह तो नेताओं की सुरक्षा और धरना प्रदर्शन मे व्यस्त रहतीहै। हर दिन किसी न किसी नेताओं का दौरा प्रस्तावित होता है उसके सुरक्षा के लिए पूरे इंतजाम पुलिस को करनी है। सरकार को चाहिए कि के इंवेस्टीगेशन के लिए अलग से पुलिस डिपार्टमेंट बने सीबीआई के तर्ज पर या फिर कोर्ट को अलग से पुलिस दी जानी चाहिए ताकि समय से जांच प्रस्तुत करे मामले का निस्तारण किया जा सके गरीब जनता को न्याय मिले।

सरकारी योजनाओं का दुरुपयो होना आम बात है चाहे वह बीपीएल कार्ड धारक हो या फिर आयुष्मान भारत या फिर आय प्रमाण पत्र। बीपीएल कार्ड मे ऐसे लोगों को जोड़ा गया जिनके पास मे फार व्हीलर तक है करोड़ो की संपति है। लेकिन सरकार या कोई पार्टी इस पर जांच की मांग करने से परहेज करते रहे है कि वोट बैंक नाराज हो जायेगा। सरकारी तंत्र को सब पता है लेकिन जब सरकार उनसे उम्मीद करे की चुनावी बजट के लिए धन जमा करने की जिम्मेदारी दे उनको तो जीरो टालेरेंस की बाते करना मिथ्या लगता है। आय प्रमाण पत्र लगाकर स्कूलों मे गरीब के लिए दिए गए कोटे का लाभ उठाते है और गरीबों के बच्चों को मिलने वाले आरक्षण हड़प लेते है। स्कूल मे 25 प्रतिशत आर्थिक रूप से कमजोर तथा विकलांगो के लिए आरक्षित किया गया है लेकिन क्या स्कूल वाले ऐसा ही कर रहे है। शासन प्रशासन तथा सरकार को इस पर जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए। क्योंकि सिर्फ नियम बनाकर खुश होने के बजाय किसी भी सरकार को उसे जमीन पर उतारने के प्रयास को ज्यादा मजबूती के साथ करने की जरूरत है जो कि नही हो रहा है।

इसीलिए गरीब जनता तक उनका हक नही पहुँच पाता है। क्योंकि देश मे गरीबी कम लेकिन गरीबों के नाम पर जेब भरने वाले ज्यादा है। सरकारे निष्पक्ष नही है क्योंकि अगर किसी भी प्रकार से एक्शन लेती है तो इसका सीधा असर उनके वोट बैंक और चुनावी चंदे पर पड़ने की आसार प्रबल हो जाते है.। मिडिया से तो सरकार और राजनीतिक पार्टियां अपेक्षा रखती है कि उनके खिचरी बांटने की खबर बड़ी बड़ी हैंडिंग के साथ चलाए लेकिन उसके भ्रष्टाचार पर चुप रहे। गली नुक्कड़ के नेता भी प्रधानमंत्री से कम नही क्योंकि एक बार प्रधानमंत्री मिडिया का लिहाज कर भी ले लेकिन गली नुक्कड़ के गमछा छाप नेता सीधे धमकी देते है।