दैनिक समाज जागरण
रवि वर्मा, ब्यूरो रोहतास
मार्च के साथ ही एनसीईआरटी और सीबीएसई पाठ्यक्रम का नया सत्र शुरू हो गया है। इसके साथ ही बच्चों के अभिभावकों पर मुंह मांगे दाम पर किताब खरीददारी का दबाव पड़ा हुआ है। रोहतास जिले में डेढ़ सौ से अधिक थोक और खुदरा किताब दुकान संचालित है। वही प्राइवेट स्कूलों के द्वारा चयनित किताब दुकानों से किताब खरीददारी का अभिभावकों को निर्देश दिया जाता है। जहां कम से कम 3000 से लेकर 8000 तक अभिभावकों को किताब खरीददारी में रुपए खर्च होते हैं । इतना ही नहीं कई स्कूल के बच्चों को पूरी कीमत पर खुद ही किताब उपलब्ध करा रहे हैं।
वहीं किताब दुकानदार एक रुपए की छूट दिए बिना हस्तलिखित कच्चा बिल ग्राहकों को थमा दे रहे हैं। जबकि सरकार की गाइडलाइन के अनुसार खरीदारी के बाद ग्राहकों को जीएसटी बिल देना अनिवार्य है। अगर किसी ग्राहक द्वारा जीएसटी बिल की मांग कर दी गई तो उन्हें किताब तक नहीं मिलती है। कुल मिलाकर प्राइवेट स्कूल संचालक अभिभावकों का शिक्षा के नाम पर पूरी तरह दोहन कर रहे है। मजे की बात यह है कि इसमें विभाग के अधिकारी भी रुचि नहीं ले रहे हैं । इस कारण किताब दुकानदारों का मनोबल बढ़ा हुआ है।
पक्का बिल नहीं मिलता, कभी जांच भी नहीं
सरकार ने भले ही किताब दुकानों में बुक खरीदने पर ग्राहकों को पक्का बिल देना अनिवार्य कर दिया है, लेकिन यहां उसका पालन नहीं हो पा रहा है। अधिकांश दुकानों के संचालक इसकी अनदेखी कर रहे हैं। सीबीएसई किताब कॉपी की खरीदारी पर पक्का बिल नहीं देकर सादा पर्ची पर सिर्फ किताब का दाम जोड़ कर दे देते हैं। पक्का बिल मांगने पर मना कर देते हैं। वहीं जीएसटी इंस्पेक्टर भी जांच पड़ताल करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। इससे सरकार को लाखों रुपए का राजस्व की क्षति हो रही है।
शिक्षा विभाग की सुस्ती से दुकानदारों का मनोबल बढ़ा
रोहतास जिले के सासाराम, बिक्रमगंज, डेहरी एवं कोचस में ही डेढ़ सौ से अधिक किताब दुकानों के थोक और खुदरा विक्रेता निबंधित हैं। लेकिन कोई भी दुकानदार ग्राहकों को पक्का बिल भी नहीं दे रहे हैं। जबकि बिलिंग के आधार पर ही सरकारी खजाने में टैक्स जमा होता है। व्यापारी द्वारा टैक्स चोरी करने के लिए बिल नहीं काटा जा रहा है। आयकर और वाणिज्य कर विभाग द्वारा पहले समय-समय पर अभियान चलाकर टैक्स चोरी करने वाले पर कार्रवाई की जाती थी, लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद कारोबारियों के यहां विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है। जिससे इन लोगों का मनोबल और ऊंचा हो गया अभिभावकों का कहना है कि प्राइवेट स्कूल से जुड़े सभी किताब दुकानदारों का आयकर विभाग के द्वारा छापेमारी की जरूरत है।
सत्र के पहले स्कूल संचालकों को मिल जाती है कमीशन की रकम : जब इस संबंध में किताब दुकानदारों से बात की गई तो अधिकांश कुछ बताने को तैयार नहीं हुए। वहीं एक किताब दुकानदार अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हर वर्ष सत्र शुरू होने से पूर्व ही संबंधित विद्यालयों को कमीशन की रकम एडवांस में जमा करवा दी जाती है। दुकानदार ने बताया कि एक किताब पर 50% कमीशन है। तो वहीं बुक के पूरे सेट पर 60 से 65% तक कमीशन किताब के पब्लिकेशन के हिसाब से देना पड़ता है। ऐसे में किसी ग्राहक को छूट कैसे दिया जाए।
मिलीभगत से चल रहा खेल : किताब खरीदने पहुंचे एक अभिभावक ने बताया दुकान पर स्कूल का नाम बता दो और वह आपको पुस्तकों का पूरा सेट थमा देगा । बिना स्कूल और पुस्तक विक्रेता की मिलीभगत से यह कैसे मुमकिन है कि एक दुकान पर तो स्कूल की एक भी पुस्तक नहीं मिलती वहीं दूसरी ओर बताई गई दुकान पर स्कूल का नाम और कक्षा बता देने पर सभी किताबें मिल जाती है। एक अन्य अभिभावक ने बताया छुट्टी के दिन बच्चों की पुस्तकें लेने आते हैं और विभाग से शिकायत करनी होगी तो अलग से छुट्टी लेनी पड़ेगी प्रशासन हमारी पहुंच से बाहर है।
प्रत्येक साल बदल जाता है पाठ्यक्रम, संशोधन की नहीं है कोई समय सीमा तय
कोचस प्रखंड के एक अभिभावक ने बताया कि हमारे दो बच्चे हैं दोनों में एक साल का फर्क है। इसके बावजूद बड़े बेटे की किताब को छोटा बेटा प्रयोग नहीं कर पाता क्योंकि हर साल किताबों में कोई न कोई बदलाव कर दिए जाते हैं किताब के कबर भी बदले होते हैं जिससे पता नहीं चल पाता है कि यह पुरानी पुस्तक है या नहीं। पुस्तक के एक पन्ने के संशोधन के लिए नई किताब लेनी पड़ती है इसकी कोई समय सीमा क्यों नहीं तय की। कितने समय के बाद पुस्तक में संशोधन किया जाता है इस प्रकार प्राइवेट स्कूल संचालक शिक्षा के नाम पर अभिभावकों का पूरी तरह से दोहन कर रहे हैं कुल मिलाकर यह एक गोरखधंधा बन चुका है।