मस्तूरी क्षेत्र में फिर पलायन की पकड़ी रफ्तार, लोगों को रास नहीं आ रहा अपना प्रदेश और अपना गांव।



बच्चों के भविष्य से भी हो रहा खिलवाड़,,,

समाज जागरण संवाददाता विवेक देशमुख

मस्तूरी। जिले के मस्तूरी ब्लाक में पलायन की दौर फिर से शुरू हो गया है, क्षेत्र में पलायन की समस्या थमने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य सरकार के पास शायद मजदूरों के लिए ऐसी कोई उचित कार्य नहीं है जिसके कारण मजदूर पलायन करने को मजबूर है।मनरेगा में असमय भुगतान व हर समय काम नहीं मिलने के चलते ग्रामीण पलायन करने को विवश हैं।यहां कृषि मजदूरी पर आश्रित ज्यादातर गरीब वर्ग के लोग खेती का काम समाप्त होने के बाद खाली हो जाते हैं। ऐसे में काम के अभाव में वे पलायन करने के मजबूर हो जाते हैं। वैसे तो जिले में पलायन छेरछेरा त्योहार के बाद बड़े पैमाने पर होता है मगर छिटपुट पलायन साल भर चलता रहता है। भादो और क्वांर के महीने में काम के अभाव में भी ग्रामीण पलायन करते हैं। कुछ दिनों से मस्तूरी ब्लाक के सोंन, सोनसरी, जोंधरा, से मजदूर अब दलालों के माध्यम से पलायन करना शुरू कर दिए हैं।
मस्तूरी विधानसभा के ग्रामीण गैर पंजीकृत ठेकेदार और लेबर सरदार के झांसे में आकर पलायन कर जाते भारी संख्या में लोग हैं और अन्य प्रांतों में इनका काफी किया जाता है शोषण
दूसरे प्रदेशों में मजदूरों को बंधक बनाने की घटना आम है मगर न तो यहां पलायन पंजी बनाई जा रही है और न ही अनाधिकृत रूप से मजदूर ले जाने वालों पर कार्रवाई की जा रही है। इसके चलते जिले के अधिकांश गांवों से यहां बड़े पैमाने पर पलायन होता है। मस्तूरी ब्लाक के 70% ग्राम पंचायतों के आधे से ज्यादा मध्यम वर्ग के एवं गरीब वर्ग के लोग पलायन कर लेते हैं जिसमें बसंतपुर, गोपालपुर, अमलडीहा, परसोडी, भिलौनी, शिवटिकारी, चिस्दा, केवटाडी, टांगर ,विद्याडी, भरारी ,जलसो, जुनवानी, शुकुल कारी, धुर्वाकारी, बिनोरी, ओखर, मचहा, गीतपुरी, खपरी, डोमगांव,कोकडी,गोबरी,हरदी,मनवा, नवागांव जैतपुरी, अकोला, चौहा,डोडकी, दलदली सहित अन्य गांवों में भी बड़े पैमाने पर पलायन होता है।
पलायन रोकने के लिए हर बार जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन कई दावे करती है, लेकिन हर बार प्रशासन न तो पलायन रोकने में सफल होती है और ना ही पलायन कर रहे मजदूर और ले जाने वाले दलालों को पकड़ने में कभी कामयाब होती है। इतना ही नहीं मस्तूरी जनपद क्षेत्र के हर मुख्य मार्ग पर पुलिस थाना उपस्थित है बावजूद उसके उनकी नाक के नीचे से लोगों को दूसरे प्रदेशों में काम कराने के लिए लेवरों को दलालों के द्वारा भेजा जा रहा है. और उसके एवज में श्रमिकों की सुरक्षा और निगरानी करने वाले जवाबदार अधिकारी मोटी कमिशन खोरी में लिप्त हो जाते हैं।ज्यादातर परिवार अपने साथ छोटे बच्चों को भी ले जाते हैं इससे उनकी पढ़ाई छूट जाती है। ऐसे में शाला त्यागी बच्चों की संख्या भी बढ़ रही है और मासूम बच्चों का बचपन भी छिन रहा है।
क्या गांव कस्बे में सरकारी योजनाओं की विफलता हैं जो सफलता के झूठे विज्ञापनों में दब जाती हैं? इन्हें एकमुश्त मिलने वाली एडवांस राशि के सामने मनरेगा व सारी योजनाओं में इन मजदूरों को कोई बहुत फायदे नहीं दिखते। बहरहाल पलायन गंभीर कैंसर रोग की तरह लाइलाज तो है ही पर लेबर माफिया के लिये लाजवाब बिजनेस और लेबर विभाग के लिए ……….क्या है?