मानवोत्थान एवं राष्ट्रोत्कर्ष के लिए समर्पित होते हैं संत : कुलपति
मधेपुरा/डा. रूद्र किंकर वर्मा।
सच्चे संत पृथ्वी पर चलते-फिरते ईश्वर हैं। वे सभी अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर समाज एवं राष्ट्र के लिए जीते हैं। उनका जीवन मानवोत्थान एवं राष्ट्रोत्कर्ष के लिए समर्पित होता है।
यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलपति प्रो. बी. एस. झा ने कही। वे गुरुवार को ‘भारतीय संत-परंपरा : मानवोत्थान एवं राष्ट्रोत्कर्ष’ विषयक राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन कर रहे थे।
कार्यक्रम का आयोजन नव वेदांत के प्रतिपादक युगनायक स्वामी श्री विवेकानंदजी के 122 वें पुण्य स्मरण तथा श्रीमज्जगद् गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज के 82 वें प्राकट्य महोत्सव (राष्ट्रोत्कर्ष दिवस) के अवसर पर स्नातकोतर दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा, आदित्यवाहिनी, बिहार तथा मधेपुरा यूथ एशोसिएशन (माया), मधेपुरा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
कुलपति ने कहा कि यह सुखद संयोग है कि विवेकानंदजी की पुण्यतिथि एवं स्वामी निश्चलानंदजी की जन्मतिथि एक ही दिन है। दोनों हमारी भारतीय संत परंपरा के दो प्रमुख हस्ताक्षर हैं। दोनों का जीवन विश्व मानवता के कल्याण हेतु समर्पित रहा है।
सनातन है भारतीय संत परंपरा
कुलपति ने कहा कि भारतीय संत परंपरा सनातन है। यह परंपरा सभी धर्मों एवं पंथों के प्रति स्वीकृति का भाव रखता है। यह सनातन एक जीवन दर्शन है। इसकी मान्यताएं वैज्ञानिक हैं।
उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य ने सनातन सभ्यता-संस्कृति, धर्म एवं दर्शन की रक्षा एवं इसके पुनरुत्थान में महती भूमिका निभाई। उन्होंने देश के चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना करके राष्ट्र को एकसूत्र में बांधने का ऐतिहासिक कार्य किया।
संत परंपरा में है सबों के कल्याण की कामना
इस अवसर पर मुख्य वक्ता आदित्य वाहिनी के राष्ट्रीय संयोजक प्रेमचन्द्र झा ने कहा कि भारतीय संत परंपरा की मान्यता है कि संपूर्ण चराचर जगत में एक ही ईश्वर का वास है। इसमें सभी जीवों के कल्याण की कामना की गई है। इसमें अपने स्वार्थ को छोड़कर समाज, राष्ट्र एवं विश्व के लिए जीने का आदर्श प्रस्तुत किया गया है।
उन्होंने बताया कि शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी बिहार के ही मधुबनी जिले के निवासी हैं। इन्होंने धर्म, समाज, संस्कृति, दर्शन, विज्ञान आदि विषयों को केंद्र में रखकर दो सौ से अधिक ग्रंथों की रचना की है।
आध्यात्मिक विकास जरूरी
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए पूर्व कुलपति प्रो. अनंत कुमार ने कहा कि मानव के समग्र उत्थान के लिए उसे आध्यात्म से जोड़ने की जरूरत है। आध्यात्मिक विकास के बगैर तथाकथित भौतिक प्रगति हमें विनाश की ओर ले जाती है।
चरित्रवान मानव से ही बनेगा सशक्त राष्ट्र
विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डॉ. विपिन कुमार राय ने कहा कि भारतीय संत परंपरा ने हमेशा मानवोत्थान एवं राष्ट्रोत्कर्ष के लिए कार्य किया है। हमारी मान्यता है कि चरित्रवान मानव से ही समृद्ध समाज एवं सशक्त राष्ट्र बनेगा।
विषय प्रवेश करते हुए अर्थशास्त्र विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर प्रज्ञा प्रसाद ने कहा कि आज समाज में विभिन्न रूपों में मानवोत्थान एवं राष्ट्रोत्कर्ष के विरुद्ध कार्य हो रहे हैं। हम सबों की यह जिम्मेदारी है कि हम इसे रोकें।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सर्वप्रथम अतिथियों ने स्वामी विवेकानंदजी एवं स्वामी निश्चलानंदजी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि की। तदुपरांत दीप-प्रज्ज्वलन एवं स्वस्ति-वाचन के साथ कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया गया। अतिथियों को अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं पुस्तक भेंटकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य प्रो. कैलाश प्रसाद यादव ने किया। संचालन दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर एवं धन्यवाद ज्ञापन माया के अध्यक्ष राहुल यादव ने किया। कार्यक्रम का तकनीकी पक्ष शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, बी. एड. विभाग के विवेकानंद एवं माया के कोषाध्यक्ष सुधांशु कुमार ने संभाला। आयोजन में आनंद कुमार, राजीव सिंह, आनंद आशीष, मनीष कुमार, अभिनव आनंद, प्रवीण कुमार आदि ने सहयोग किया। इस अवसर पर इस अवसर पर कुलानुशासक डॉ. बी. एन. विवेका, डॉ. ए. के. मलिक, डॉ. अमरनाथ झा, डॉ. उपेंद्र प्रसाद यादव , डॉ. राजीव कुमार सिंह, डॉ. जावेद अहमद, डॉ. मनोज ठाकुर, डॉ. अंकेश कुमार, अमित कुमार सिंह, डॉ. विजया कुमारी, डाॅ. रोहिणी कुमारी, डॉ. यासमीन रसीदी, डॉ. सीमा कुमारी, मिथिलेश कुमार, डॉ. शशांक मिश्रा, डॉ. कुंदन कुमार सिंह, डॉ. राकेश कुमार, ज्योत्सना, जयश्री कुमारी आदि उपस्थित थे।
तकनीकी सत्र में पत्र-वाचन
उद्घाटन सत्र के बाद तकनीकी सत्र में लगभग एक दर्जन शोध-पत्रों का वाचन हुआ। इस सत्र की
अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं समाजसेवी प्रो. भूपेन्द्र नारायण यादव’ मधेपुरी’ तथा संयोजन सी. एम. साइंस कॉलेज, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. संजय परमार ने किया। इस सत्र के मुख्य वक्ता प्राचीन इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. ललन प्रसाद अद्री थे।
समापन सत्र में प्रमाण-पत्र वितरित
अंत में समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों को सेमिनार में सक्रिय सहभागिता के आधार पर प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया।
इस अवसर पर बेबी कुमारी, सुप्रिया सुमन, सोनाली रानी, काजल कुमारी, दीपक कुमार, मोती कुमार यादव, अरविंद यादव, महेश, डॉ. अशोक कुमार अकेला, रमण कुमार, निखिल कुमार सिंह, सुमित कुमार, रिचा कुमारी, सोनी कुमारी, रूपम कुमारी, देवी कुमारी, नीतू कुमारी, स्मृति प्रिया, काजल कुमारी, सत्यम कुमार, प्रतीक कुमार, आदित्य कुमार, राजेश कुमार, सुमित कुमार, रवि कुमार मिश्रा, हिमांशु राज आलोक कुमार, शिवम राज मंटू कुमार, अमित कुमार सुधीन कुमार, अंकित कुमार, सुमन भारती, प्रवीण कुमार, आनंद आशीष, सौरभ कुमार आदि उपस्थित थे।