लेख- पर्यावरण संरक्षण हेतु पत्तल का महत्व: स्वास्थ्य के लिए औषधीय गुणों से परिपूर्ण और रोग नाशक हैं पत्तल

  
लेखक- डॉ. अशोक कुमार वर्मा
हरियाणा/हिसार (राजेश सलूजा) : आज पूरे संसार में पर्यावरण प्रदूषण की चर्चा सामान्य बात हो गई है। सरकार भी बहुत चर्चा करती हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए नई नई योजनाएं लागू की जा रही है लेकिन धरातल पर कोई ठोस कार्य नहीं हो रहा है। प्रदुषण की समस्या में सबसे बड़ी बाधा पॉलिथीन का प्रयोग है। आज कोई भी वस्तु आप बाजार से लेने जाते हैं उसमें कही न कही पॉलिथीन (संसार में पॉलीइथिलीन जिसे पॉलिथीन या पॉलीएथीन के नाम से भी जाना जाता है) सबसे अधिक प्रयोग होने वाले प्लास्टिक में से एक है। दैनिक जीवन में पॉलिथीन का प्रयोग इतना अधिक बढ़ गया है कि प्रतिदिन सड़कों, गलियों, चौराहों और सार्वजनिक स्थानों पर ढेर मिलता है और यदि हवा चल जाये तो ये उड़ते हुए मिलेंगे। आज दिल्ली जैसे महानगरों में कूड़े करकट के पहाड़ तक खड़े हो गए हैं। कूड़ा निस्तारण के लिए समस्या बढ़ती ही जा रही है। परिणामस्वरूप दुकानदार अपनी दुकानों के बाहर इनमें आग लगाकर प्रदुषण को और बढ़ावा दे रहे होते हैं। भारत में लोगों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपने सामने हो रहे ऐसे पर्यावरण विरोधी अथवा अन्य ऐसे अवांच्छित कार्यों का विरोध नहीं करते जिससे अन्य लोगों का भी दुःसाहस और बढ़ता जाता है। प्राय: लोगों की यह मानसिकता होती है कि यह सरकार, प्रशासन और पुलिस का काम है मुझे क्या। 

अनेक समस्याओं का सबसे बड़ा जनक मनुष्य स्वयं है। वह जब तक अपनी प्रवृत्ति एवं स्वभाव में परिवर्तन नहीं लाएगा तब तक समस्याएं ज्यों की त्यों रहेंगी। एक सोचने वाली बहुत ही छोटी सी बात है जिसे हम विस्मृत कर चुके हैं वो है हमारी भोजन शैली और संस्कृति। आज से लगभग दो तीन दशक पूर्व भोजन पत्तलों में परोसने की व्यवस्था थी। चाहे कैसा भी अवसर क्यों न हो। विवाह समारोह, मांगलिक कार्य, शौक सभा, जन्मदिन, विवाह वर्षगाँठ सभी में भोजन पत्तलों में परोसा जाता था और सबसे बड़ी बात लोग भोजन धरती पर बैठकर ग्रहण करते थे। यह प्रथा आज भी हिमाचल प्रदेश के लगभग सभी जिलों में है परंतु आज आधुनिकता की दौड़ और पश्चिमी सभ्यता ने इसे भारत के अनेक क्षेत्रों में समाप्त कर दिया है। आज सभी मांगलिक और अन्य अवसरों पर पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाले लैमिनेटेड कागज तथा प्लास्टिक से बनी पत्तलों ने ले लिया है। बड़े बड़े होटलों, रेस्टोरेंट, दुकानों और ढाबों पर इनका प्रयोग बहुतायत में हो रहा है क्योंकि लोग स्टील और कांच आदि के बर्तन को प्रयोग करने से बचते हैं और रेडीमेड के चक्कर में पर्यावरण के शत्रु बन बैठे हैं।

आधुनिकता और पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में मनुष्य पत्तल की विषेशताओं से अपरिचित जान पड़ता है। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि पत्तल विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी। यदि आधुनिक और पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित मनुष्य को इस बात का बोध हो जाए कि पत्तल पर भोजन करने के क्या लाभ हैं तो वह आश्चर्यचिक्त होगा ही होगा। राजा महाराजा तक चांदी सोने के बर्तन और पत्तल में भोजन ग्रहण करते थे और वो भी आसन्न में बैठकर। यहाँ बता दें कि पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जाती हैं। इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार लकवा ग्रस्त व्यक्ति के लिए अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना लाभकारी होता है। जिन्हें जोड़ो की पीड़ा है वे करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन ग्रहण कर सकते हैं। मानसिक स्वास्थ्य लाभ के लिए पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए। केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है तथा यह माता लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त करता है। केले के पत्तों में बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है। भील प्रदेश मे खाखरे के पत्तों से पत्तल बनाई जाती है जो औषधीय गुणों के साथ अत्यंत शुभ मानी जाती है।

यहाँ पर सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण से मुक्ति पाने की है। यदि हम चाहते हैं कि हमारा वातावरण सुरक्षित और स्वच्छ हो तो हमें पर्यावरण प्रेमी बनना ही होगा और मुझे क्या जैसी मानसिकता को छोड़ना होगा। हमें सदा स्मरण रखना होगा कि पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तलें सरलता से मिटटी में विलीन होकर नष्ट हो जाती हैं। इतना ही नहीं यदि हम चाहें तो पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है।

पत्तल न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हैं अपितु व्यापार की दृष्टि से भी लोगों को काम दिलाने में सहायक हैं। पत्तलों की मांग बढ़ने से अधिक से अधिक पौधारोपण होगा। पौधारोपण होने से वायु स्वच्छ होगी। वायु स्वच्छ होगी तो लोग स्वस्थ होंगे क्योंकि कहा भी गया है प्रथम सुख निरोगी काया। दूजा सुख पास हो माया। तीसरा सुख कुलवंती नारी और चौथा सुख पुत्र हो आज्ञाकारी। इसके साथ ही पशु पक्षी मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वे न केवल मनुष्य के मित्र हैं अपितु पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक हैं। प्रदूषण और पॉलिथीन आज उनके लिए भी घातक सिद्ध हो रहे हैं। गोवंश जिसे लोग आवारा कहते हैं लेकिन गौ आवारा नहीं है वो बेसहारा है। आज उन्हें एक समय का चारा भी नहीं मिलता। गंदगी के ढेर में वे अपना मुँह मारते हैं और असंख्य पॉलिथीन उनके भीतर चला जाता है। उनकी मृत्यु का कारण बन रहा है। यदि मनुष्य अभी भी नहीं सुधरा तो भगवान की बनाई गई सबसे अमूल्य और पूजनीय गौ माता की असमय मृत्यु का पाप उसे लगेगा।