प्राइवेट स्कूल शिक्षा की मंदिर या लूट की दुकान ?

भले ही दुनिया भर मे फाइनेंशियल ईयर का एंड हो गया हो लेकिन अभी एक दुकान है जिसकों आप श्रद्धा से शिक्षा की मंंदिर कह सकते है लेकिन वास्तविकता तो ये है कि यह अब लूट की दुकान या व्यापारिक केन्द्र बनकर रह गया है। शिक्षा लेना बच्चों का अधिकार है और शिक्षा दिलवाना अभिभावकों का कर्तव्य। भले ही आपके सैलरी या कारोबार मे बढ़ावा न होता हो लेकिन इन स्कूल वालों का फिस हर साल बढ़ जाते है। इसके अलावा किताब कलम पैंसिल भी नया चाहिए क्योंकि हर साल इनका सैलेब्स बदल जाते है। तब में मन मे एक ख्याल आता है ,

जाने कहाँ गए वो दिए, जब हम किताबों को अधिया दामों में खरीदा और बेचा करते थे। परिजन के हालत समझकर दूसरे से किताब मांगकर भी पास हो जाते थे। स्कूल मे कभी भी हमारे मां और पिताजी का इंटरब्यू नही होता था क्योंकि विधालय के शिक्षक ही हमारे परिजन के समान हमें स्नेह देते मारते पिटते फिर दुलार भी करते। बड़ा दुख होता है जब बच्चों के साथ पैरेंट मीटिंग में जाते है। माॅडल जमाने के शिक्षक शिक्षिका अपने नाकामी को हम पैरेंट के सिर मढ़ते हुए कहते है कि थोड़ा ध्यान दीजिए आपके बच्चे कमजोर है। एक दिन हमने पूछ लिया किस बात से कमजोर है खाने पीने में या फिर पढ़ने में।

मैडम मुस्कुराती हुई बोली सर दोनों में ।

मैने विनम्रता से बोला ” मैडम पढ़ाई मे कमजोर है तो इसके लिए आप जिम्मेदार है और खाने पीने मे कमजोर है तो इसके लिए स्कूल वाले। पढ़ाने के लिए महंगी फिस देता हूँ , फिस देने के बाद कुछ बचता नही है जो कुछ फल, फ्रुट खिला पिला सकूं।

दया तो हमे उन अभिभावको पर भी आता है, जो 100 रुपये के राशन मुफ्त मे लेने के लिए दिन भर लाइन में तो लग जाते है लेकिन 10 हजार तक की मासिक फिस देकर अपने बच्चों को स्कूल मे पढ़ाते है और स्कूल वालों के हाथों के कठपुतली बने रहते है। जितने मे अभिभावक फिस देते है उसके 30 प्रतिशत में किसी भी सरकारी स्कूल को वर्ल्ड क्लास विधालय मे तब्दील की जा सकती है और समान शिक्षा का अधिकार का सपना पूरा किया जा सकता है। लेकिन हम ऐसा क्यों करेंगे ?

अप्रैल माह प्रारंभ होते ही निजी स्कूल संचालकों का छात्र छात्राओं के अभिभावकों पर बोझ भारी।

दुकान से मिलने वाली बच्चों के पठन-पाठन सामग्री किताब ,कॉपी ,टाई ,बेल्ट यहां तक की ड्रेस और जूते भी सभी निजी विद्यालयों में दो ~ गुने दामों पर पर उपलब्ध ।

विद्यालयों में अगर नहीं मिलती तो वह है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा। सिलेबस पर ध्यान नहीं , पर दुकानदारी को लेकर अभिभावकों पर दबाव।

प्रत्येक वर्ष बदलते रहते हैं प्रकाशक , और बदल जाती है किताब जो बाहर उपलब्ध नहीं होती । ऐसे मनमानी कर रहे हैं निजी स्कूलों के संचालक।

दैनिक समाज जागरण
धनंजय कुमार वैद्य/रमन झा
ब्यूरो चीफ (बिहार ~झारखंड)/प्रमुख संपादक

रांची (झारखंड) 30 मार्च 2023:~ शिक्षा मूलभूत अधिकार है, शिक्षा सबके लिए बराबर है , चाहे राजा हो या रंक , मजदूर हो या अधिकारी, सबके लिए बराबर है !
लेकिन धारातल पर सच्चाई कुछ और ही दिखाता है। और ऐसा लगता है की आज भी मजदूर के बच्चों की शिक्षा अलग है, और अधिकारी , पूंजीपति के बच्चों की शिक्षा अलग। जहां मजदूर के बच्चे आज भी सरकारी विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर है। वहीं अधिकारियों के बच्चे कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते हैं वजह एक ही है। निजी स्कूल संचालक के द्वारा अभिभावकों से शिक्षा के नाम पर मोटी रकम की लूट । इस लूट में मजदूर लाचार हैं वही अधिकारी सक्षम, यही वजह है की शिक्षा मूलभूत अधिकार कथनी सी रह गई है धरातल पर कुछ और ही दिखाता है। आज सभी वर्ग के लोग मानते हैं कि शिक्षा महंगा हो गया है। कॉन्वेंट विद्यालयों की शिक्षा अलग है , सरकारी विद्यालयों की शिक्षा अलग है ।

निजी विद्यालय संचालकों द्वारा इजाद किए जा रहे है नए-नए तरीके की शुल्क, अभिभावको को, टाई बेल्ट, बुक कॉपी जूते यूनिफॉर्म, दो गुने दामों पर बेच रहे निजी विद्यालय संचालक । अभिभावकों से शिक्षा के नाम पर की जा रही लूट।

यू कह सकते हैं कि अब विद्यालय में सब कुछ बिकता हैं, अगर नहीं मिलता तो वह है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ..…

अप्रैल का महीना अभिभावकों के लिए किसी बड़ी टेंशन से गुजरने से कम नहीं। इन्हे सताती है निजी स्कूल संचालकों द्वारा 10 तरह की शुल्क की बोझ की चिंता । निजी स्कूल संचालको द्धारा अभिभावकों के बच्चों को उज्जवल भविष्य के सपने दिन में दिखाकर अभिभावकों से मनमानी तरीके से भारी लूट का अंजाम दी जा रही हैं । यह वही लुटेरे हैं जो किसी हथियार के बल पर अभिभावको को नहीं लूटते, बल्कि बच्चों के उज्जवल भविष्य के सपने दिखाकर अभिभावकों को लूट रहे हैं। आए दिन विद्यालयों में डेवलपमेंट शुल्क , रीएडमिशन, ट्यूशन फीस, स्पेशल चार्ज ,एग्जाम शुल्क, जैसे शुल्क के नाम पर अभिभावकों से रुपए की भारी लूट की जा रही है ।
शिक्षा अब कैसी सेवा रही जहां 10 तरह के शुल्क के नाम पर अभिभावकों से आए दिन लूट की जा रही है लाचार अभिभावक भारी-भरकम शुल्क देने पर विवश है भावनात्मक रूप से उज्जवल भविष्य के सपने दिखाकर यही निजी स्कूल संचालक लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते ?

डेवलपमेंट शुल्क से किसका होता है डेवलपमेंट बच्चों का या विद्यालय का ? बच्चों का या निजी विद्यालय संचालकों का ? अभिभावक के मन में यह एक बड़ी सवाल उभर कर सामने आ रही है जिसका जवाब ना तो खुद अभिभावक के पास होता है , और ना ही निजी स्कूल संचालक के पास है।
निजी स्कूल संचालक के द्वारा बच्चों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं परोसी जा रही। यहां तक की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए जो शिक्षक विद्यालय द्वारा नियुक्त किए जाते है उनकी खुद की एजुकेशन जैसे तैसे की होती है। जिन्हे कम पैसे में उन्हें रख कर विद्यालय अपना काम चलाती है जिन्हें यह तक पता नहीं होता कि किस महीने में कौन सी सिलेबस बच्चों को पढ़ना है कौन नहीं ,? अभिभावक अपने बच्चों का रिजल्ट कार्ड देख कर मायूस हो जाते हैं, तब फिर यही निजी स्कूल संचालक अपनी सारी दोष अभिभावक थोप कर पुनः एक बार इन्हें उज्जवल भविष्य के सपने दिखाते है। और अगले साल तक के लिए उन छात्र-छात्राओं को विद्यालय में रख लेते हैं । और पूरा 1 साल चलता है फीस फीस का खेल।


जिस पर अंकुश लगाने को लेकर सख्ती ना तो सूबे की शिक्षा विभाग कर पा रही है नाही केंद्र सरकार।
शिक्षा नीति बनाकर एक हद तक निजी संचालकों पर अंकुश लगाने की नाकाम कोशिश तो जरुर की है लेकिन राज्य सरकार की अनुमति के बिना शिक्षा नीति अधूरा है। तो क्या शिक्षा नीति धरातल पर उतर पाएगी? या निजी स्कूल संचालको द्धारा अभिभावकों की लूट निरंतर जारी रहेगी ? अब तो यही लगता है की अप्रैल माह को अभिभावक प्रत्येक वर्ष टेंशन दिवस के रूप में मनाएंगे । इस वर्ष पता नहीं निजी विद्यालय संचालक कौन सा फीस के नाम पर हमें दोहन करेंगे।
केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा शिक्षा को सभी के लिए मूलभूत अधिकार माना गया है जो सबके लिए बराबर हो। वह भी एक वक्त था जब शिक्षा और स्वास्थ् सेवा मानी जाती थी। लेकिन अब यही सेवा रूपी शिक्षा , बढते काले कारोबार का खेल बन चुका है। और इसके भुक्तभोगी कॉन्वेंट विद्यालय में पढ़ने वाले सभी सभी छात्र छात्राओं के अभिभावक हैं ।

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