समस्या:- अपनी हालात पर आंसू बहा रहा उपेक्षा का शिकार पालीगंज का अति प्राचीन सड़क

स्वतंत्रता के पूर्व एक मात्र सड़क थी पालीगंज के दक्षिणी इलाको व मशहूर समदा मेला जाने का

निर्माण कराने की मांग को लेकर दुबारा भी हो सकता है मतदान का बहिष्कार

समाज जागरण संवाददाता:- वेद प्रकाश पालीगंज अनुमंडल

पालीगंज/ स्वतंत्रत भारत के पूर्व पालीगंज अनुमंडल सह प्रखण्ड क्षेत्र के दक्षिणी इलाको व समदा गांव स्थित भारत का दूसरे सबसे बड़े छोटन ओझा मवेशी मेला तक पहुंचने का एक मात्र सड़क अपनी हालात पर आंसू बहा रही है। इस सड़क का अपना निजी जमीन होने के बावजूद भी इस ओर किसी भी जन प्रतिनिधियों या अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट नही हुआ। यहां तक कि निर्माण कराने की मांग को लेकर पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान ग्रामीणों ने मतदान का बहिष्कार किया था फिर भी किसी ने इसकी शुद्धि नही लिया। जिसे देखते हुए ग्रामीणों ने आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनावों के दौरान दुबारा मतदान का बहिष्कार करने का मन बना लिया है।
जानकारी के अनुसार यह सड़क पालीगंज से निकलकर निरखपुर गौसगंज होते हुए किंजर के पास अरवल- जहानाबाद मुख्य सड़क से मिलती है। इस सड़क के मध्य गौसगंज गांव के पास से दो किलोमीटर पूर्व की ओर निकली सड़क समदा गांव स्थित भारत के दूसरे सबसे बड़े छोटन ओझा मवेशी मेला को जोड़ती है। इस सड़क की कुल लम्बाई 16 किलोमीटर है जिसकी 80 फुट चौड़ी अपनी निजी जमीन है। उसके बावजूद भी बिहार विकास की बह रही बयार में पीछे रह गया। आज इस सड़क पर झाड़ीनुमा घास उग आए है। कई वर्षों पूर्व मनरेगा के तहत इसपर मिटी भराई गयी थी लेकिन बरसात में मौसम में इस सड़को से गुजरी ट्रैक्टरों ने इसकी दुर्दशा कर दी है। अभी इस सड़क से साइकिल तो क्या पैदल भी चलना मुश्किल हो गया है। वही ग्रामीणों ने बताया कि पालीगंज से किंजर चौक की दूरी 16 किलोमीटर है। किंजर चौक से होकर एक ओर अरवल तो दूसरी ओर जहानाबाद जिले को मिलाने वाली मुख्य सड़क जाती है। वही सीधी सड़क टेकरी होकर गया व बोधगया को जाती है। अभी किसी भी सड़क से होकर पालीगंज से किंजर पहुंचने में बाइक से एक घण्टे समय लगती है। जबकि इस सड़क को बन जाने पर मात्र 20 से 30 मिनट में पालीगंज से किंजर पहुंचा जा सकता है। वही ग्रामीणों ने बताया कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सड़क निर्माण कराने की मांग को लेकर मतदान का बहिष्कार किया गया था। लेकिन आजतक इस ओर किसी का ध्यान नही गया। यहां तक किकुछ माह पूर्व महुआरी गांव ने जनसंवाद कार्यक्रम में पहुंचे पटना डीडीसी तनय सुल्तानिया को भी स्थिति से अवगत कराया गया लेकिन उसकी कोई प्रतिक्रिया दिखाई नही पड़ी। जिसे देखते हुए इलाके के ग्रामीणों के बीच आक्रोश है। ग्रामीणों के बीच अभी से ही आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान का बहिष्कार करने को लेकर चर्चाएं शुरू हो चुकी है।
बुजुर्गों का कहना है कि पहले इस सड़क के अलावे दक्षिणी इलाके के लोगो को पालीगंज जाने का कोई दूसरा रास्ता नही था। इसी रास्ते से होकर कई राज्यो के ब्यापारी समदा मेले में ब्यवसाय करने आते थे। भारत को स्वतंत्र होने के बाद इस इलाके से पैगम्बरपुर गांव निवासी कन्हाई सिंह को जनता ने जिताकर विधायक बनाया। जिन्होंने इस सड़क पर ध्यान देने के बजाए एक पगडंडी को सड़क में तब्दील कर पालीगंज से खिरिमोड होते हुए अतौलह तक निर्माण कराया। उसके बाद इस कच्ची सड़को के बजाए लोग ज्यादा दूरी तय कर पालीगंज पहुंचने पर मजबूर हो गए। वही कई वर्षों पूर्व जन प्रतिनिधियों ने मदारीपुर गांव से एक अन्य पगडंडी को सड़क में तब्दील कर पाली चंदोस मुख्य सड़क से जोड़ दिया। अब लोग उसी सड़क से इस इलाके के लोग पालीगंज जाते है। वही ग्रामीणों का कहना है कि इस क्षेत्र से शेरे बिहार की उपाधि लेकर रामलखन सिंह यादव व चंद्रदेव प्रसाद वर्मा ने केन्द्रीय मंत्री तक बने लेकिन सड़क पर मिट्टी तक नही दिलाये। बिहार में विकास की बह रही हवा में कई छोटे बड़े सड़के बनी जिसकी अपनी निजी जमीन तक नही था। लेकिन इस सड़क का निजी जमीन के अलावे सबकुछ होने के बावजूद भी कायाकल्प नही हो पाया। इस इलाके से सांसद के रूप में जीतकर रामकृपाल यादव भाजपा की केंद्र सरकार में ग्रामीण राज्य विकास मंत्री भी बने जो फिलहाल आज भी इस इलाके का सांसद है। उनसे कहने पर केवल सड़क निर्माण कराने का आश्वासन मिलती है पर कार्य की शुरुआत नही कराई जाती है। अभी इस इलाके का बिधायक जेएनयू के छात्र सन्दीप सौरभ है जिन्होंने कभी भी इस सड़क निर्माण कराने का आश्वासन तक ग्रामीणों को देना मुनासिब नही समझते। चुनाव के समय सैकड़ो छोटे बड़े नेताओं ने बनवाने का वादा करते है व किये है लेकिन बाद में सभी भूल जाते है। इससे एक कहानी सिद्ध होती है कि ” पतझड़ के मौसम में पत्तियां टूट जाती है, व समय गुजरने पर वादे भूल जाते है।”