सूर्य उपासना का अलौकिक पर्व महाछठ _आचार्य धर्मेंद्रनाथ।

राजीब मिश्रा/समाज जागरण, करजाईन(राघोपुर)सुपौल


जिले के राघोपुर प्रखंड अन्तर्गत करजाईन बाजार में दीपावली के ठीक 6 दिन बाद मनाए जाने वाले पर्व छठ का भारतीय संस्कृति में व्यापक महत्व है। संपूर्ण भारत में छठ पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। सूर्योपासना का यह पर्व बिहार में घर-घर मनाया जाता है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश उत्तरांचल और पूर्वोत्तर राज्य में भी इस महापर्व को लेकर खास उत्साह रहता है ।हमारे वैदिक संस्कृति में मान्यता है कि सूरज की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नियां उषा और प्रत्यूषा है। छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रातः काल में सूर्य की पहली किरण उषा और संध्या काल में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ देकर दोनों को नमन किया जाता है। जिस उपासना से समस्त प्रकार के पुत्र, संतान एवं धन धान की वृद्धि होती है। पुराणों के अनुसार भगवान राम ने लंकाधी पति रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या आने पर राम के राज्याभिषेक के पश्चात रामराज की परिकल्पना को ध्यान में रखकर राम और सीता ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ही उपवास रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना की और सप्तमी को पूर्ण किया। क्योंकि भगवान उनके कुलदेवता भी हैं। पवित्र सरयू तट पर भगवान राम सीता के इस कठोर अनुष्ठान से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था ।तब से छठ पर्व इस अंचल विशेष में अधिक लोकप्रिय हो गया। यह कहना है अटल मिथिला सम्मान से सम्मानित त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी मैथिल पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र का। उन्होंने छठ महापर्व के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि एक पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी के सूर्यास्त एवं सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेद माता गायत्री का भी जन्म हुआ था। भगवान शिव की आराधना करते हुए विश्वामित्र के मुख से अनायास ही वेद माता गायत्री प्रकट हुई थी। यह पवित्र मंत्र भगवान राम जी के पूजन का परिणाम था। तभी से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को समस्त भारत में और विशेषकर मिथिला क्षेत्र में यह महा पर्व मनाया जाने लगा। एक मान्यता है कि जुए में पांडवों द्वारा अपना राज्य धन दौलत सभी कुछ हार कर जंगल जंगल घूम रहे थे। उस समय पांडवों के दुर्दशा और संकट से मुक्ति पाने के लिए द्रोपदी ने भगवान सूर्यनारायण की कठोर तप आराधना करते हुए छठ व्रत किया। फलस्वरूप पांडवों को अपना खोया हुआ राज पाठ सम्मान प्रतिष्ठा सभी कुछ प्राप्त हो गया ।छठ पर्व का शुभारंभ कद्दू भात या नहाए खाए से होता है ।कद्दू भात यानी लौकी की सब्जी और अरवा चावल का भोजन और नहाए खाए यानि गंगा में स्नान करके भोजन प्रसाद पकाना व खाना ।इस प्रकार छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं बल्कि इसे महापर्व का दर्जा प्राप्त है ।विधि विधान से यह महापर्व छठ को करने से संपूर्ण आपदा तथा सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
दिनांक _28 शुक्र दिन को नहाय खाय। जो सर्वार्थसिद्धि योग में होगा।
दिनांक _29 को शनि वार को एकभुक्त खरना। सिद्धियोग में।
दिनांक _30 को रविवार को सायंकालीन अर्घ। समय _संध्या 5बजकर 30 मिनट पर।
दिनांक 31 दिन सोमवार को प्रातः कालीन अर्ध। एवं महाछठ व्रत का पारण।