स्वामी विवेकानन्द का जीवन चरित्र विश्व के लिये आदर्श – राजधारी



भारत के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान में स्वामी जी की रही प्रमुख भूमिका: विश्व प्रेमानंद

अनूपपुर। स्वामी विवेकानन्द जी ईश्वरीय स्वरुप हैं। नरेन्द्र से स्वामी विवेकानन्द बनने तक की उनकी जीवन यात्रा , उनका चरित्र, उनके द्वारा दी गयी शिक्षा और दिखलाया गया मार्ग विश्व के मानव समाज के लिये आदर्श है। हमें उनके दिखाए मार्ग और उनके सिद्धान्तों पर चल कर जीवन को सफल बनाने का कार्य करना होगा। उक्त आशय के विचार स्वामी विवेकानंद जयंती के पावन अवसर पर विवेकानंद रूरल पब्लिक स्कूल संजय कोयला नगर परिसर में रेलवे जोन बिलासपुर के डिप्टी चीफ इंजीनियर राजधारी यादव ने मुख्य अतिथि की आसंदी से व्यक्त किया। इसके पूर्व सभी अतिथियों और सहभागियों का स्वागत् किया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी विश्व प्रेमानंद जी महाराज ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि
मानव जीवन की सार्थकता जिनकी होती है, उनकी हम जयंती मनाते हैं। महापुरुषों की शिक्षा, उनके आदर्श , उनके दिखाए मार्ग पर चल कर अपना जीवन सफल बनाने के लिये हम उन्हे याद रखते है। संस्कारित माता – पिता के सुसंस्कारित पुत्र स्वामी विवेकानन्द जी अल्पायु में ही विभिन्न धर्म, पंथ, विचारधाराओं का अध्ययन कर चुके थे।सत्य, ब्रम्ह है क्या …यह प्रश्न स्वामी विवेकानन्द ने अपने आध्यात्मिक गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी से पूछा था। वैदिक दर्शन का अध्ययन उन्होंने किया था। उस वक्त तक विश्व के पश्चिम में डार्विन के सिद्धांत की खूब चर्चा थी, जिसमें यह अवधारणा बनाई गयी कि क्रमिक विकास का परिणाम है मानव सभ्यता । श्री जगवानी ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक उत्थान में स्वामी जी की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला।
तुडीर आश्रम अमरकंटक के महेश चैतन्य ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी को पढना सबके लिये आवश्यक । इससे भी जरुरी है कि हम उनके विचारों को आत्मसात करें। स्वामी विवेकानन्द जी के विचार , उनकी जीवन शैली आपके जीवन को कुशलता से मजबूती से आगे बढाने में सहायक होगा। व्यक्ति, परिवार,समाज, देश के उत्थान के लिये व्यक्ति के उत्तम स्वास्थ्य, बुद्धि, ज्ञान और विचारवान होने के साथ – साथ एक और भी तत्व है जिसकी सबसे अधिक आवश्यकता है–
वो है विवेक । विवेक जागृत हुए बिना प्रगति का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता। व्यक्ति और देश के समग्र विकास हेतु बुद्धि, ज्ञान और विचार के अतिरेक से बचते हुए कार्य करना ही विवेकशील होने का परिचायक है। उन्होंने कहा कि जब विवेक का जागरण होता है तो सर्वानंद का प्रादुर्भाव होता है और यही विवेकानन्द है।
विवेकानन्द जी को पढना ही जरुरी नहीं है। इन्हे मनन करना और गढना भी बहुत आवश्यक है।‌ इस अवसर पर उत्कृष्ट विद्यालय शहडोल के प्राचार्य इंद्र बहादुर सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किया।
। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता और सरस्वती माता की प्रतिमा एवं विवेकानंद जी के तैल चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन कर किया गया। कागणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।। कार्यक्रम का संचालन अभिषेक मिश्रा व पूनम मिश्रा एवं आभार ललित नारायण मिश्रा संचालक ने किया।