निर्दलीय प्रत्याशियों की लगातार जीत से कोशी सीमांचल में बेचैनी

प्रो. ज्योतिष झा

पूर्णियां लोकसभा व रूपौली विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों की शानदार जीत ने सीमांचल में राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी है। पूर्णियां लोकसभा
चुनाव में पहले निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव अब रुपौली विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह की जीत ने पुर्णिया सहित सीमांचल में राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। इस चुनाव परिणाम से अगले वर्ष 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। एक के बाद एक चुनावों में दोनों ही निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत ने आगामी विधानसभा चुनावों में सीमांचल के दलीय नेताओं की बेचैनी बढ़ा दी है। अब अररिया , किशनगंज, कटिहार जिले में भी कई नेता दलीय नहीं तो निर्दलीय चुनाव मैदान में आने को ताल ठोक रहे हैं। अररिया जिले के वरिष्ठ जदयू नेता मुर्शीद आलम जोकीहाट विधानसभा से पार्टी टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है।
दोनों की जीत ने अन्य दलों के लिए कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला सवाल यह कि क्या राजनीतिक दलों की बातों पर पूर्णियां की मतदाताओं को भरोसा नहीं रहा। दूसरा सवाल यह कि क्या राजनीतिक दलों के प्रत्याशी जीतने के बाद अपने वादे नहीं पूरा कर रहे हैं। ऐसे कई सवाल लोगों की जुबान पर हैं।
पूर्णियां जिले के चर्चित रूपौली विधानसभा उपचुनाव में एनडीए व राजद महागठबंधन के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी अपनी जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी फिर भी पराजय मिली। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर एनडीए के बड़े बड़े मंत्री व विधायकों ने जदयू प्रत्याशी कलाधर मंडल की जीत के लिए डेरा डाल रखा था। लेकिन रूपौली विधानसभा की मतदाता किसी भी हवाई नेताओं के झांसे में नहीं आए।
जबकि रूपौली पूर्व से जदयू का गढ़ माना जाता रहा है। इस बार रूपौली विधानसभा चुनाव में राजद प्रत्याशी बीमा भारती थीं। बीमा जदयू से त्यागपत्र देकर पहले पूर्णियां लोकसभा से महागठबंधन प्रत्याशी के रूप में मैदान में आईं। लेकिन लोकसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। उनका अधिकांश वोट निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव में शिफ्ट हो गया। राजद को मात्र 27 हजार 120 मत मिले। लोगों की मानें तो बीमा भारती न घर की रही और न घाट की। लोकसभा चुनाव में हार के बाद बीमा भारती रूपौली विधानसभा सीट से विधायिका बनने को लेकर आश्वस्त थीं। लेकिन रूपौली विधानसभा के लोगों ने लंबे समय से सत्ता पक्ष में रहकर भी विकास कार्यों में उदासीनता बरतने वालों को सबक सिखाने का फैसला लिया। मतदाताओं ने जात पात की राजनीति से उपर उठकर राजद व जदयू के बदले निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह पर अपना विश्वास जताया और बड़ी जिम्मेदारी उन्हें सौंप कर सीमांचल से लेकर राज्य स्तर पर महत्वपूर्ण संदेश दिया है। पूर्णियां के रुपौली विधानसभा के मतदाताओं ने पार्टी पालिटिक्स से उपर उठकर दिखाया है कि वह सिर्फ किसी पार्टी के बंधुआ मजदूर नहीं हैं। समय आने पर चमचमाती एसी कार से नहीं उतरने वाले नेताओं को भी धूल चटा सकते हैं।
वहीं पूर्णियां लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव ने भी बड़ा उलटफेर कर दिया। पप्पू यादव आम लोगों की समस्याओं को सामने रखकर चुनावी मैदान में कूदे। चुनाव से पहले ही पप्पू यादव ने पूर्णियां लोकसभा क्षेत्र में घूम घूमकर आम लोगों की समस्याओं को निकट से अनुभव करने की कोशिश की। जिन मसलों का हल जनता दशकों से चाहती थी उन बातों को पप्पू यादव ने बखूबी पूरा करने का भरोसा दिलाया।
आम लोगों की दैनिक समस्याओं को उन्होंने चुनावी मुद्दा बनाकर बड़ी बेबाकी से सामने रखा। पप्पू यादव की बातें मतदाताओं को भा गई। मतदाताओं ने उन्हें गले लगा लिया। हालांकि निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव को मात देने के लिए पक्ष विपक्ष के राजनीतिक दलों के नेताओं ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लेकिन प्रजातंत्र में जनता जिसके साथ है उन्हीं का सिक्का चलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनडीए प्रत्याशी संतोष कुशवाहा की जीत के लिए जनसभा किए।
इंडिया गठबंधन के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने आधा दर्जन रैलियों को पूर्णियां लोकसभा के अलग-अलग विधानसभाओं में संबोधित किया। पप्पू यादव को परास्त करने के लिए तेजस्वी यादव ने यहां तक कह दिया कि इंडिया नहीं तो एनडीए को समर्थन दीजिए। तेजस्वी यादव की ऐसी बातें नकारात्मक प्रभाव डाला। मतदाता आक्रोशित होकर निर्दलीय पप्पू यादव के साथ मुस्तैदी से खड़े हो गए। राजद का माई समीकरण पप्पू यादव के साथ खड़ा हो गया। इसके अलावा बदलाव के लिए बेचैन पूर्णियां के सभी तबके और वर्ग के मतदाताओं ने पप्पू यादव की झोली भर दी। चुनाव परिणाम बिहार में सनसनी फैला दी। ऐसा लगता था कि पूर्णियां की जनता अपने नेता से डायरेक्टर कान्टेक्ट में रहना चाहती थी ताकि मुसीबत में उनके नेता उनके साथ खड़े रह सके। लोगों की मानें तो जदयू सांसद संतोष कुशवाहा एक दशक तक सांसद रहे लेकिन आमलोगों से जुड़ने की कोशिश में असफल रहे।


शंकर सिंह के जीत के मायने

स्वभाव से कम बोलने वाले निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह कई बार रूपौली विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमाया लेकिन जनता का आशीर्वाद नहीं मिला। हालांकि इससे पहले के सभी चुनावों में उन्होंने संतोषजनक प्रदर्शन किया। जदयू विधायक के रूप में क्षेत्र और वोटरों के प्रति संवेदनशीलता की कमी ने बीमा भारती और जदयू के लिए नाकारात्मक प्रभाव डाला। लोगों की मानें तो बीमा भारती के लगातार सत्ताधारी दल में विधायक व मंत्री रहने के बावजूद रुपौली विधानसभा की जनता उनके विकास कार्यों से संतुष्ट नहीं थी। बीमा भारती के सत्ताधारी दल जदयू में रहने के बावजूद बाढ़, शिक्षा, स्वास्थ, पुल पुलिया, किसानों की समस्या का निदान नहीं हुआ। राजद को इसलिए नकारा क्योंकि जदयू के साथ बिहार सरकार में भी वह रह चुकी है। उनके शासनकाल में भी विधानसभा की समस्याओं का निदान नहीं हुआ। निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह ने स्थानीय समस्याओं को वोटरों के समक्ष रणनीति के तहत रखा। अपने भविष्य के एजेंडे युवाओं के सामने पेश किए। रूपौली के मतदाताओं ने उनकी बातों पर विश्वास जताया और उन्हें जीत का सेहरा पहना दिया। पूर्णियां में निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत से आने वाले विधानसभा चुनाव में सीमांचल सहित कोशी क्षेत्र में निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए आक्सीजन का काम करेगा जिससे दलीय प्रत्याशियों का खेल बिगाड़ने की संभावना बनी रहेगी।
लेखक: प्रो. ज्योतिष झा, पत्रकार सह प्रोफेसर हैं