नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश सरकार ने रजिस्ट्री दस्तावेजों से उर्दू-फारसी शब्दों को हटाने का एतिहासिक निर्णय लिया है. इसके अलावा अब सब-रजिस्ट्रार को उर्दू की परीक्षा नहीं देनी होगी. अभी तक लोक सेवा आयोग से चुने जाने के बाद भी सब-रजिस्ट्रार को स्थायी नौकरी के लिए यह परीक्षा पास करनी पड़ती थी. इसका कारण आधिकारिक दस्तावेजों में उर्दू और फारसी शब्दों का अत्यधिक प्रयोग था. योगी सरकार ने अब इन शब्दों की जगह सामान्य हिंदी शब्दों के प्रयोग करने का निर्णय लिया है. ऐसा करने के लिए रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 में संशोधन किया जाएगा.
योगी आदित्यनाथ सरकार उत्तर प्रदेश में होने वाली रजिस्ट्रियों के लिए वर्ष 1908 में बने रजिस्ट्रेशन एक्ट में बदलाव करने जा रही है. यह कानून अंग्रेजों द्वारा लाया गया था. इस अधिनियम के तहत सरकारी दस्तावेजों में उर्दू और फारसी को बढ़ावा दिया गया. इस कारण से अधिकांश रजिस्ट्रियों में उर्दू और फारसी में बहुत सारे शब्द हैं.
ये शब्द इतने जटिल हैं कि आम हिंदी भाषी लोग इन्हें समझ नहीं पाते हैं. सरकारी दस्तावेजों में उर्दू और फारसी के व्यापक उपयोग के कारण रजिस्ट्री अधिकारियों को भी ये भाषाएं सीखनी पड़ती हैं. इसके लिए उप-रजिस्ट्रार स्तर से भर्ती किए गए अधिकारियों को लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित होने के बाद उर्दू परीक्षा को पास करना पड़ता था. इस परीक्षा में शामिल होने के लिए, उम्मीदवारों को एक विशेष प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में भाग लेना होता है जहां वे उर्दू में लिखना, टाइपिंग बोलना, व्याकरण और अनुवाद जैसी चीजें सीखते हैं. भाषा सीखने की यह अवधि 2 साल की है और इस दौरान चयनित उम्मीदवार परिवीक्षा पर रहते हैं. इस परीक्षा को पास किए बिना उम्मीदवारों की नौकरी स्थायी नहीं होती है.
हालांकि, अब राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि सरकारी दस्तावेजों में उर्दू और फारसी का उपयोग जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है, जिसके लिए अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण में भाग लेना होगा और फिर अपनी नियुक्तियों को स्थायी बनाने के लिए परीक्षा में शामिल होना होगा. योगी आदित्यनाथ सरकार ने फैसला किया है कि इस परीक्षा की जगह अब कंप्यूटर का ज्ञान लिया जाएगा.
इसके साथ ही, उर्दू और फारसी शब्दों को सरल हिंदी शब्दों से बदलने के लिए स्टाम्प और पंजीकरण अधिनियम, 1908 में महत्वपूर्ण बदलाव किए जा रहे हैं, जिन्हें हर कोई समझ सकता है. राज्य सरकार जल्द ही प्रस्ताव कैबिनेट में पेश करेगी. इससे उम्मीदवारों को भी आसानी होगी और साथ ही जनता भी सरकारी कागजात की भाषा समझ सकेगी. वर्तमान में, तहसीलों में संपत्ति की रजिस्ट्रियां, अदालती मामले और पुलिस स्टेशनों में लिखी गई शिकायतों जैसे दस्तावेजों में उर्दू और फारसी शब्दों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है.