वट सावित्री व्रत एवं सोमवती अमावस्या का पर्व महिलाओं से धूमधाम से मनाया*

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देव मणि शुक्ल
ब्यूरो प्रभारी

नोएडा आज वट सावित्री व्रत एवं सोमवती अमावस्या का पर्व पूरे नोएडा मे बडे धूमधाम से मनाया गया।
सुबह से महिलाओं ने वरगद के पेड़ की परिक्रमा किया एवं सभी महिलाएं बैठ कर कथा भी सुनी।और सभी महिलाएं व्रत भी रखा है । ऐसी मान्यता है कि वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही खास होता है। यह व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। इस दिन दान पुण्य करने से विशेष फल की प्राप्ति होती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करके कथा सुनती या पढ़ती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की दीर्घायु हो जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार सावित्री ने भी इसी दिन यमराज से अपनी पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे।
शास्त्रों के अनुसार राजर्षि अश्वपति की एक ही संतान थी। जिसका नाम सावित्री था। सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से विवाह करना चाहती थी। जब नारद जी ने सावित्री को बताया कि उनके पति की आयु कम है।तब भी सावित्री अपने निर्णय से नहीं हटी। वह राज वैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करने के लिए वन में रहने लगीं। जिस दिन सत्यवान मरने वाले थे, उस दिन वह लकड़ियां काटने के लिए जंगल चले गए। वहां वह अचानक मूर्छित होकर गिर पड़े।
उसी समय यमराज वहां आकर सत्यवान के प्राण ले लिए। 3 दिनों से उपवास में रह रही सावित्री उस बात को जानती थी। इसलिए वह बिना व्याकुल हुए यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना करने लगीं। सावित्री के ऐसा कहने पर भी यमराज ने सत्यवान के प्राण ले लिए। तब सावित्री यमराज के पीछे-पीछे जानें लगीं। यमराज ने सावित्री को कई बार आने से मना किया, फिर भी सावित्री उनके पीछे बिना डर के चलने लगीं। सावित्री का यह साहस और त्याग देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए।
उन्होंने सावित्री से तीन वरदान मांगने को कहा। तब सावित्री ने पहले वरदान के रूप में सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता की आंखें मांगी। दूसरा वरदान में उन्होंने अपने पति का छीना हुआ राज्य मांगी और तीसरा वरदान में उन्होंने सौ पुत्र मांगें। यह सुनकर यमराज ने तथास्तु कहा। तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति का अब ले जाना संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य रहने का वरदान दिया और सत्यवान को वहीं छोड़कर अंतर्ध्यान हो गए। तभी से हमारे समाज की महिलाओं ने अपने पति की लम्बी उम्र के लिए यह व्रत रखती हैं और पूजन करती है।