आदतन भ्रष्टचारियों के लिए ट्रांसफर से ज्यादा वीआरएस जरूरी: अनिल के गर्ग

समाज जागरण नोएडा

उत्तर प्रदेश के आर्थिक राजधानी और भारत के स्मार्ट सिटी नोएडा आज कल ट्रांसफर पाॅलिसी को लेकर काफी गहमागहमी में है। भारत के सर्वोच्य न्यायालय के द्वारा नोएडा के प्राधिकरण के बारे में किए गए टिप्पणी के बाद से ही विशेषज्ञ ट्रांसफर पाॅलिसी को लेकर सवाल उठा रहे थे। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में तैनात जनरल श्रीमती मैनेजर मीणा भार्गव मिडिया के लिए एक जीता जागता उदाहरण बना हुआ है आज भी। शासन से अनुमति के बाद भी उनका ट्रांसफर नही होना।

आपको बताते चले कि इस समय में नोएडा प्राधिकरण में जबरदस्त उथल-पुथल और असमंजस्य की स्थिति है। किसी भी समय में ट्रांसफर के पत्र मिल सकते है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्राधिकरण के सीओं भी बदले जाने की संभावना है। हाल ही में 15 कर्मचारी और आफिसर की टांसफर के बाद यह बात और साफ हुआ है कि टांसफर एक्सप्रेस अब नोएडा और ग्रेटर नोएडा पहुँच चुकी है। कुल मिलाकर तीनों प्राधिकरण में बंपर तबादले का दौर है। लखनऊ से आए इस एक्सप्रेस को लेकर जहाँ आम जनता में कुछ उम्मीद जगी है वही कुछ लोगों का कहना है कि इससे विकास कार्यों पर असर पड़ेगा।

नोएडा के वरिष्ठ नागरिक व अधिवक्ता श्री अनिल के गर्ग नें एक तरह जहाँ ट्रांसफर पाॅलिसी को सही ठहराया है वही दूसरी तरफ उन्होने कहा है कि ट्रांसफर की जो भी पाॅलिसी है सरकार अगर उस पर काम कर रही है तो निश्चित तौर पर स्वागत योग्य कदम है, लेकिन सरकार को इस पाॅलिसी के साथ साथ वीआरएस और छटनी की पाॅलिसी भी चलानी चाहिए। क्योंकि सिर्फ ट्रांसफर करना “भ्रष्टाचार मुक्त भारत” बनाने के लिए उपयुक्त नही है।

उन्होंने सरकार से मांग की है कि जो लोग आदतन भ्रष्ट है उनके लिए वीआरएस लाया जाय। क्योंकि आपने अगर सिर्फ इनका ट्रांसफर किया तो ये लोग जहाँ जायेंगे वहाँ भी भ्रष्टाचार करेंगे। हमें मेंडिकल साइंसेस के तर्ज पर काम करना होगा। जिस प्रकार से मेडिकल साइंस में कट और कील किया जाता है ऐसे ही हमें सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार को कट और कील करके निकालना होगा। पिछले 20-25 सालों से जड़ जमाए बैठे लोगों नें जो जनता के धन लूटा है। भ्रष्टचारियों से संपति घोषणा शपथ पत्र लेने की आवश्यक्ता है। माननीय न्यायालय के अनुपालन में जो सीएजी आडिट करवाये गए है उन पर भी उचित कार्यवाही होनी चाहिए लेकिन मामले में सरकार ने चुप्पी साध रखी है । लाखों करोड़ की भूमि आवंटन घोटाला जो मामला 2011 में माननीय उच्च न्यायालय के सज्ञान में पहुँचा और न्यायालय के द्वारा मुख्य सचिव के स्तर के अधिकारी से जाँच कराने के लिए सरकार को निर्देशित किया गया । लेकिन पिछले तीन सराकरी में इस पर कोई भी कार्यवाही नही हुई है। अब सिर्फ ट्रांसफर किए जा रहे है।