महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज का 17 वां महा परिनिर्वाण दिवस 4 जून पर विशेष

गुरु भक्ति के मिसाल थे महर्षि संतसेवी जी महाराज

“नर तन की उपयोगिता विषय भोगों की बहुलता में नहीं, भगवद्भजन की मादकता में है। ईश्वर न तो मंदिर में मिलते हैं और न मस्ज़िद में। उनकी प्राप्ति का एक ही मार्ग है- अन्तस्साधना, जो शरीर के अन्दर है। शरीर ही मंदिर और मस्ज़िद है जहां ईश्वर और खुदा मिलते हैं। अभाव है तो सिर्फ खोजने वालों का।”

डा. रूद्र किंकर वर्मा।

गुरू – शिष्य परंपरा मेंं विश्व मेंं सबसे ज्यादा अपने गुरू की सेवा करने वाले महर्षि संतसेवी जी महाराज गुरु भक्ति के मिसाल थे । इनकी सेवा से प्रसन्न होकर गुरुदेव महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज ने कहा था कि “संतसेवी जी, आपकी तपस्या मेरी सेवा है। मेरे बिना आप नहीं रह सकते और आपके बिना मुझको नहीं बनेगा। मैं वरदान देता हूँ कि जहाँ मैं रहूंगा वहाँ आप रहेंगे ।आप मेरे मस्तिष्क हैं।”
महर्षि संतसेवी का साहित्यिक अवदान

गुरु सेवा के कारण महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज ने इनका नाम महावीर से ‘संतसेवी ‘ रखा और कालांतर में वे इसी नाम से विश्व विख्यात हुए। इनकी आध्यात्मिक रचनाएँ -योग माहात्म्य, ॐविवेचन, जग में ऐसे रहना, गुरु महिमा, सत्य क्या है?, सुख दुःख, सुषुम्ना ध्यान, त्रितापों से मुक्ति, एक गुप्त मत, सर्वधर्म समन्वय संतमत, साधना में सफलता कैसे?, प्रवचन पीयूष आदि ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। आपकी गुरु भक्ति, तपस्या साधना, ज्ञान वैराग्य की गरिमा को देखकर 1997ई. में ऋषिकेश में आयोजित महाधिवेशन के मौके पर देश विदेश के धर्माचार्यों और महामंडलेश्वरों ने आपको जगदगुरु महर्षि परमहंस की उपाधि से विभूषित किया । 86 वर्ष की अवस्था में 4जून 2007 को संतमत के केंद्रीय आश्रम महर्षि मेँहीँ आश्रम कुप्पाघाट, भागलपुर में लाखों भक्तों को छोड़कर दैहिक लीला समाप्त कर परम् निर्वाण को प्राप्त हुए। इनका उपदेश लोककल्याण, परोपकार, मानवता, समरसता, सर्वधर्म समन्वय के लिए है।
उनकी वाणी में आया है “नर तन की उपयोगिता विषय भोगों की बहुलता में नहीं, भगवद्भजन की मादकता में है।
ईश्वर न तो मंदिर में मिलते हैं और न मस्ज़िद में। उनकी प्राप्ति का एक ही मार्ग है- अन्तस्साधना, जो शरीर के अन्दर है। शरीर ही मंदिर और मस्ज़िद है जहां ईश्वर और खुदा मिलते हैं। अभाव है तो सिर्फ खोजने वालों का।”

इनका हस्तलिखित अंतिम उपदेश
जीवन थोड़ा है। शरीर नश्वर है। मृत्यु निश्चित है। पता नहीं कब कहाँ और किस प्रकार वह आ जाय। शरीर छूटने पर यहाँ शरीर को चिता की अग्नि में जलाया जाएगा और परलोक में नरक की अग्नि में जीव को जलाया जाएगा। इसलिए खबरदार रहना। जो भजन नहीं करता, उसके लिए मृत्यु बड़ी कष्टदायिनी होती है उसे यम कूटते हैं और लूटते हैं। यह दुर्लभ शरीर मिला है। माया के छलावे में मत पड़ना।