बिहार: शिक्षकों मे दहशत का माहौल, राजनीति और पत्रकारिता से ले रहे है सन्यास।।

बिहार के राजनीति जाति जनगणना और छुट्टियों के कलैण्डर का सांप्रदायिकरण, और अब शिक्षको को किसी राजनीतिक पार्टी या संगठन या फिर संघ मे शामिल होने पर सीधे बर्खास्तगी की कार्यवाही मे उलझा हुआ है। बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक आए दिन सुर्खियों में बने रहते हैं। उनकी ताबड़तोड़ कार्रवाई से बिहार के शिक्षा मंत्री तक भी हैरान हो जाते हैं। कभी कभी तो शिक्षा में वे ऐसे फैसले ले लेते हैं जिससे मंत्रालय में भी हड़कंप मच जाता है। तो अब सवाल उठता है कि क्या केके पाठक शिक्षा मंत्री से भी अधिक पावरपुल हैं।

दरअसल, केके पाठक (kk pathak) बिहार में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव हैं और वह सीधे सीएम नीतीश कुमार को रिपोर्ट करते हैं। यानी सीएम नीतीश कुमार के निर्देश पर ही वह काम करते हैं। नीतीश कुमार ने 2 नवंबर को नियु्क्ति पत्र बांटते समय खुले मंच से उनकी प्रशंसा की थी।

नीतीश कुमार की प्रशंसा से यह साफ तौर पर स्पष्ट हो गया कि केके पाठक को शिक्षा विभाग से जुड़े किसी भी तरह के फैसले लेने की खुली छूट दे दी गई है। यानी वह शिक्षकों पर किसी भी तरह की कार्रवाई कर सकते हैं। इसलिए बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर, चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते हैं।

केके पाठक के कुछ बड़े फैसले लिए है जिससे बिहार मे शिक्षक मे ही नही बल्कि शिक्षक पत्रकार मे भी दहस्त का माहौल है।

केके पाठक (kk pathak) ने मिशन दक्ष की शुरुआत की जिसके तहत 10 हजार शिक्षकों को पढ़ाई में कमजोर 50 हजार बच्चों को गोद लेना है और अलग से समय देकर पढ़ाना है।

स्कूल में बिना बताए गायब रहने वाले शिक्षकों के वेतन में कटौती और सस्पेंड करने के आदेश

स्कूल में 15 दिनों से अधिक अनुपस्थित रहने पर छात्रों के नाम काटने के आदेश, इसके तहत अब तक 20 लाख से अधिक बच्चों के नामांकन रद्द कर दिए गए हैं।

किसी भी हालत में गांव में रहकर पढ़ाना होगा नहीं तो छोड़नी होगी नौकरी

सभी स्कूलों में छात्र-छात्राओं के लिए 75 फीसदी उपस्थिति अनिवार्य

केके पाठक ने बिहार में शिक्षकों की छुट्टियों में कटौती कर कड़ा संदेश दिया।

कोई भी बच्चे फर्श पर नहीं पढ़ेंगे

फैसले को कुल मिलाकर बच्चों के भविष्य के लिए अच्छी मानी जा रही है लेकिन सवाल उठता है कि जिस देश मे छात्र राजनीतिक की परंपरा है उस देश मे क्या शिक्षक को राजनीतिक से अलग रखना उचित होगा। खासकर बिहार के लिए कहा जाता है कि यहाँ तो बच्चे जन्मजात ही राजनीतिज्ञ होते है। यही कारण रहा है कि बिहार आज तक विकसित नही हो पाया है और आपसी टकराव का बड़ा केन्द्र बना हुआ है। अगर शिक्षक राजनीतिक रैली बैठक मे भाग नही लेंगे को समाज को कौन बताएगा कि क्या बुरा है और क्या भला। शिक्षक पत्रकारिता मे योगदान नही देंगे तो कौन समाज को आयना दिखायेंगे। एक तो पहले ही सोशल मिडिया ने बिकाऊ पत्रकारिता के अनपढ़ गवार पत्रकारो का बाजार सजा दिया है ऊपर से अगर शिक्षक भी राजनीतिक और पत्रकारिता छोड़ देंगे तो राज्य को तो मुर्ख मंत्री ही चलायेंगे।

फोटो गूगल से लिया गया है