बीपीएस कॉलेज बभनगामा मधेपुरा की संस्थापिका की मनाई गई पुण्य तिथि

माता स्व सुनील देवी की सातवीं पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित

मधेपुरा /डा. रूद्र किंकर वर्मा।

भोला पासवान शास्त्री कॉलेज बभनगामा, मधेपुरा की संस्थापिका माता स्व सुनील देवी की सातवीं पुण्य तिथि रविवार को श्रद्धापूर्वक मनाई गई। इस मौके पर कॉलेज में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें शिक्षकों, छात्रों और स्थानीय समुदाय के सदस्यों ने भाग लिया।

माता स्व. सुनील देवी का योगदान

माता स्व सुनील देवी ने अपने जीवन में शिक्षा के प्रति अपार समर्पण दिखाया। एक शिक्षक के रूप में उन्होंने अपने वेतन का पहला दान इस कॉलेज को दिया और शिक्षा के महत्व को फैलाने के लिए अपने पति और अन्य लोगों को प्रेरित किया। उनकी सोच थी कि शिक्षा ही समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकती है।

पुण्यतिथि कार्यक्रम का आयोजन

इस पुण्यतिथि पर कॉलेज के संस्थापक सह दानदाता सदस्य दीनानाथ प्रबोध, कॉलेज के संरक्षक अखिलेश कुमार, प्राचार्य अतुलेश वर्मा, पूर्व शिक्षिका मीरा भारती, प्रोफेसर रामचंद्र सिंह, विजय मोहन वर्मा, भूमि पंडित, राधव कुमार, छोटू कुमार जैसे कई सम्मानित व्यक्तित्व उपस्थित थे।

कार्यक्रम के दौरान परिवार के सदस्यों ने बच्चों के बीच कापी-कलम और मिठाई वितरित की। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य सुनील देवी की शिक्षण यात्रा और उनके द्वारा समाज में किए गए योगदान को याद करना था।

पत्रकार अमलेश राजू का संदेश

सुनील देवी के तीसरे पुत्र और दिल्ली के जनसत्ता के पत्रकार अमलेश राजू ने अपने संदेश में कहा कि सुनील देवी जैसी मां हर बच्चे और परिवार को जरूरत है। उन्होंने कहा कि उनकी मां सिर्फ अपने परिवार के बच्चों की चिंता नहीं करती थीं, बल्कि वे समाज के अन्य बच्चों की भी भलाई के लिए चिंतित थीं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यदि पुनर्जन्म होता है, तो वह हर बार ऐसी मां चाहेंगे जिसने अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा बलिदान दिया।

समुदाय का समर्थन

इस कार्यक्रम ने न केवल सुनील देवी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की, बल्कि शिक्षा के महत्व को भी पुनः रेखांकित किया। इलाके की महिलाओं और बच्चों ने इस पुण्य तिथि पर सक्रिय भागीदारी दिखाई, जिससे यह संदेश फैला कि शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है और इसे सुनिश्चित करने में सभी का योगदान आवश्यक है।

माता स्व सुनील देवी की पुण्य तिथि ने उनकी शिक्षण धारा और समाज में उनके योगदान को याद करने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया। यह आयोजन शिक्षा के प्रति उनके समर्पण को समर्पित था, और यह दर्शाता है कि उनका काम आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।