आजादी के 75 साल बाद भी ____

देश आजादी के 75वां सालगिरह मना है “आजादी के अमृत महोत्सव” । पूरे देश में तिरंगा यात्रा निकाले जा रहे है। लेकिन जनता के मन में आज भी एक सवाल है क्या आजादी के 75 साल बाद भी हमारे देश आत्मनिर्भर नही हुआ है? आखिर क्यों आज भी देश और राज्य सरकारों को राजस्व जमा करने के लिए शराब बेचने पड़ते है ?

बड़ी हैरानी की बात है राम कृष्ण और विवेकानंद के भरती पर हर साल 30 प्रतिशत के दर से शराब की सेल बढ़ते जा रहे है। बढ़ते शहरीकरण में जहाँ एक तरफ इंग्लिश बोलने, पढ़ने और लिखने वालों की संख्या बढते जा रहे है वही दूसरी तरफ इंग्लिश पीने वालों के तादाद भी बढ़ते जा रहे है।

शराब सरकार के लिए कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा तो तब लगा ; जब प्रदेश सरकार नें कोरोना काल में सबसे पहले शराब के दुकानों को खोलने की परमिशन दी और पुलिस सुरक्षा भी। पहले से जो लोग सिर्फ अंदाजा लगा रहे थे उनको भी इस बात का ज्ञात हुआ कि आखिर हमारे देश के लिए पीने वालों की बढ़ती तादाद कितनी जरूरी है। यही कारण है कि बिहार और गुजरात के अलावा कोई भी स्टेट इसे बंद करने के बारे में सोचा तक नही है। यहाँ तक कि योगी सरकार भी।

शराबियों की बढ़ती जनसंख्या कई मायनों में महत्वपूर्ण है: सबसे पहले तो बता दे कि भले कि लोग 20 रुपये किलों कि चावल और आटा के लिए सरकार पर निर्भर हो लेकिन, शराब से मिलने वाले टैक्स के लिए सरकार पीयकर पर निर्भर है। क्योंकि 100-500 तक की बोतल देश में आसानी से बिक जाते है। भारत में शराब के मार्केट लगभग 274.10 मिलियन डालर की है। यह लोकल और कच्ची शराब को छोड़कर है।

शराब से तरफ जहाँ सीधे टैक्स सरकार के खाते में जाते है वही दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियों को मोटी चंदा भी मिलते है। शराब पीकर होने वाले एक्सीडेंट भी पुलिस विभाग के लिए रोजगारपरक है। जाँच के नाम पर उगाही और फिर जांच में दोषी साबित होने पर कोर्ट में बचाव के लिए वकीलों को मिलने वाले रोजगार शामिल है। अगर एक्सीडेंट में किसी का डेथ हो जाय तो एक परिवार तो उजड़ जाते है और दूसरे परिवार के सिर पर बर्बादी की काले बादल। बदते इंग्लिश वाइन की सेवन भी अब असर दिखाने लगे है। आये कि सोसायटी में होने वाले झगड़े लड़ाई इसका एक सुखद परिणाम है। पार्टियों के नाम पर बड़े बड़े होटल और पब में परोसे जा रहे शराब से एक शिक्षित वर्ग लाभान्वित हो रहे है। वह लोग जो अपने आपको उच्च क्वालिटी के मानते है।

क्या हमे आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में एक बार इन बातों पर विचार करने की जरूरत है ? क्या भारत में बढ़ते शराब टैक्सपेयर या शराब की सेल समाज के लिए चिंता की विषय नही है ? क्या हम भारत के शाताब्दी समारोह नशा युक्त युवाओं के साथ मनानने के तरफ कदम नही बढ़ा रहे है।