जेल में हो रहा भोजन का खेल, तय कीमत पर हर सुख सुविधा

घालमेल : धनाढ्य एवं रसूखदार कैदियों को मिलती है छूट
समाज जागरण
विजय तिवारी
शहडोल
समाज से प्रथक चारदिवारी के बीच रहनें वाले कैदियों की हालात इन दिनों शहडोल में बेहद खराब है‌। भोजन से लेकर रहनें वाले स्थान में जहां व्हीआईपी कल्चर हावी है वहीं ऐसे कैदी जिनका पास कोई पहुंच नहीं है उनका जमकर शोषण हो रहा है। कैदियों के बीच जहां प्रतिस्पर्धा और दबंगई एक आम बात है वहीं वहां तैनात जिम्मेदारों को भी इससे कोई वास्ता नहीं है। जांच के नाम पर खानापूर्ति करनें वाले जिम्मेदारों को यह सारी हकीकत भी पता है लेकिन कार्यवाही का कोरम कागजों तक ही सीमित है। हमारी पड़ताल में ऐसे कई खुलासे हुये हैं जिन पर शहडोल जिला जेल की तमाम अव्यवस्थाएं सामनें आई हैं। जिला जेल इनदिनों बंद बंदियों को मिलने वाले खाने को लेकर एक बार फिर सुर्खियां बटोर रहा। मंगलवार को जेल से रिहा हुए कैदी ने मुलाकात के दौरान अंदर की रवैया से अवगत कराया। नाम न छापने की शर्त पर जेल प्रशासन की बखियां उधेड़ना शुरू कर दिया। उसने दबी जुबान से बताया की जेल प्रशासन सब कुछ बढ़िया होने का दावा करता है, जबकि जेल के अंदर कैदियों को मिलने वाली सुविधाओं पर कोई गौर नहीं करता है। जेल के अंदर मिलने वाला भोजन ठीक नहीं है। मुलाकात कक्ष में फ़ोन बिगड़े पड़े हुए हैं। टीवी में रिचार्ज नहीं तो पंखे में कंडेशर नहीं है, वहीं कहीं बैरक में दबंग कैदियों का कब्जा है और सभी समस्याओं से निजात पाने के लिए सुविधा शुल्क देय करने पर सुख की भी सुविधा उपलब्ध है।

पेट नहीं भरता है

गुणवत्ता पर खरे उतरने दोपहर को एक बढि़या सब्जी व छह रोटी और रात को एक सूखी सब्जी, उसके साथ तरी वाली सब्जी व छह रोटी देनी होती है। कैदी के बताए अनुसार सुबह के वक्त दी जाने वाली चाय में दूध का नामोंनिशान नहीं होता है। पानी खौलाकर ही दे दिया जाता है। अधिकांश कैदी चाय को फेंक देते हैं। कैदियों को जेल खाना खूब रुलाता है क्योंकि उन्हें जेल के मेन्यू में ही गुणवत्ता के आधार पर भोजन नहीं मिलता हैं। खाद्य पदार्थो को तैयार करवाने मे उचित सामग्री का प्रयोग न किए जाने से पानी कहीं और सब्जी कहीं और होती है। इससे भोजन निगला ही नहीं जाता है। सही भोजन न होने से पेट भी नहीं भरता और बीमार होने पर दवाइयों की कमी भी खूब खलती है। और तो और बीमार कैदियों को डाक्टर की सलाह पर दूध, दलिया व अंडे देने होते है, मगर उन्हे पूछता कौन है। वहीं दबंग कैदियों को यहां पर भी कोई परेशानी नहीं होती। वह अपने रसूख के चलते यहां पर स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ उठा लेते हैं।

व्हीआईपी व्यवस्था का तय दाम

जिला जेल में विचाराधीन बंदी हो या सजायाफ्ता जेल प्रशासन पैसे लेकर व्हीआईपी व्यवस्था करा देते है, जैसे खाने में दाल फ्राई, पापड़, पर्सनल सामग्री सहित जेल में किसी प्रकार का कार्य न करनी की व्यवस्था उपलब्ध करा दी जाती है,वैसे तो जेल के अंदर बंदियों को पैसा देना तो मना है लेकिन बंदियों द्वारा परिजनों से मुलाकात के दौरान अपने से व दबाव से पैसे की डिमांड की जाती है और बाकायदा परिजनों द्वारा मुलाकात पंजीयन कक्ष से मुंह मांगी रकम अदा की जाती है, जिसका भी बाकायदा 10 से 20 प्रतिशत बट्टा काटा जाता है।

बंदियों को उपलब्ध ही रही अवैध सामग्रियां

मुलाकात में प्रहरी वारिश को लगाया है जो विगत 3 माह से वहीं पर कार्यरत हैं, जबकि जेल विभाग भोपाल द्वारा निर्देश हैं कि हर माह ड्यूटी बदल दी जाये, परन्तु जेल प्रशासन द्वारा अपने अवैध कार्यो को संचालित करवाने के लिए प्रहरी को यही रखा है, मुलाकात खिड़की में तैनात महिला प्रहरी और जेल प्रशासन के खास कैदी पटेल को रखा गया है, जहां से बंदियों के परिजन पैसा सहित जेल में उपयोग होने वाली स्टेशनरी व अन्य छोटी मोटी सामग्री उपलब्ध कराते हैं। इसके साथ ही वारिश को मुलाकात में आए परिजनों द्वारा गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, लाइटर इत्यादि सामान दिया जाता है, जिसको वह कीमत तय कर बंदियों को उपलब्ध कराता हैं।

जेलकर्मी का रिश्तेदार बना बंदी मैस

जानकरों की माने तो जिला जेल में पदस्थ एक जेलकर्मी के रिश्तेदार को बंदी मैस का इंचार्ज बनाया गया है। जेल प्रशासन के कुछ कर्मचारियों द्वारा इन बंदियों से एकमुश्त लाखों रुपए वसूले जाते हैं। बंदी मैस के इंचार्ज के रूप में काम कर रहे बदमाशों ने बंदी मेस को होटल बना रखा है। जो बंदी गरीब तबके के हैं उनको घटिया स्तर का भोजन दिया जाता है। वही, जो बंदी पैसे वाले हैं उन्हें तड़का लगाकर दाल फ्राई, सब्जी और स्पेशल रोटी उपलब्ध कराई जाती है। जो सामान्य बंदी बदमाशों की बात नहीं मानते उनके द्वारा उन्हें तंग परेशान भी किया जाता है।

योग्यता के अनुसार नहीं दी जा रही ड्यूटी

जिला जेल में इनदिनों अनपढ़ से लेकर स्नातकोत्तर तक के बंदी है लेकिन जेल प्रशासन द्वारा अपने चुनिंदा बंदियों को ही खास कार्यों मे रखा गया है, जबकि नियमतः हर माह हर बंदी की ड्यूटी बदलनी है लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। चाहे वह बात करें कार्यालय कार्यों की हो या फिर अन्य कार्यों की जहां पर जो बंदी की ड्यूटी लगाई गई है वह वहां अपने कार्यों को अंजाम दे रहा है। ऐसे में जेल में बंदियों में आपस मे प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और आक्रोश पनप रहा है। जानकरों का कहना है कि इस तरह से बंदियों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए और नियमतः सभी को समान रूप से देख कर योग्यता के अनुसार कार्य देना चाहिए।

बैरक के निरीक्षण से न खुश बंदी

बताया गया है कि इनदिनों बैरक की औचक निरीक्षण प्रारंभ हो गई है और निरीक्षण के दौरान मिलने वाली अवैध सामग्रियां जब्त तो कर ली जाती है। इसके साथ ही नकद रुपए भी जब्त कर लिया जाता, जिससे गरीब तबके के बंदियों को बट्टा लगने के बाद मिलने वाले रुपए का जब्त होना उनके ऊपर पहाड़ टूटने के बराबर होता है। इसलिए क्योंकि कैंटीन का उपयोग करने का खर्च वह वहन नहीं कर पाता है।

निर्धारित मूल्य से ज्यादा में मिल रहा कैंटीन का सामान

जेल प्रशासन द्वारा भले ही बंदियों की सहूलियत के लिए कैंटीन की सुविधा प्रारंभ की गई हो लेकिन बंदियों का इसका लाभ कितना उनको मिल रहा है वह ही जानते है। बताया गया है कि कैंटीन के माध्यम से मिलने वाली सामग्रियां बंदियों को हफ्ते में 3 सौ 75 रूपए की दी जाती है लेकिन दी गई सामग्रियों का निर्धारित मूल्य और एक हफ्ते के निर्धारित मूल्य से आंकी जाए तो वह कम होती है। साथ ही दी सामग्रियों का गुणवत्ता की बात की जाए तो वह भी गुणवत्तावक्त नहीं होती है।

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