बिहार में सरकारी शिक्षकों को कोचिंग चलने पर प्रतिबन्ध हैं , तो फिर सरकारी डॉक्टर को निजी क्लीनिक चलाने पर प्रतिबंध क्यों नहीं ?

करोड़ों रूपयें की एमडीएम घोटाले का निष्पक्ष जांच कराया जाय तो सरकार को पैरों तले जमीन घिसक जाएंगे ।

और तो और हेडमास्टरों के साथ साथ बिहार के शिक्षा विभाग के काली करतूतों का भी पोल खुल जायेंगे

समाज जागरण , अनिल कुमार मिश्र, ब्यूरोचीफ, बिहार झारखंड।
बिहार राज्य के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक के तरह ,काश स्वास्थ्य विभाग में भी ऐसे अधिकारी होते तो स्वास्थ्य विभाग का दयनीय हालत इस तरह नही होती और उद्देश्यों से भटक चुकें सरकारी डॉक्टरों द्वारा लूटने से गरीब बच जाते और उन्ही डॉक्टरों से गरीबो को सही और समुचित इलाज मिल पाता ।

पत्रकारों का सर्वेक्षण बताते हैं कि बिहार प्रदेश में शिक्षक और चिकित्सक ,अपने -अपने कर्तव्य बोध को समझ ले ,तो शिक्षा और चिकित्सा के माध्यम से पूरे समाज में अमूल चूल परिवर्तन लाया जा सकता है, जब शिक्षा और चिकित्सा सुधर जाएंगे तो हमारा यह समाज पूर्णत: स्वस्थ्य व स्वच्छ बन जाएगा और शिक्षा एवं चिकित्सा पर अनावश्यक रूप से होने वाले खर्चे से मध्यम वर्गीय परिवार बच जाएंगे,जो मध्यम वर्गीय परिवार के दयनीय हालत में परिवर्तन ला सकेगा है

बताते चले कि बिहार राज्य के शिक्षा विभाग में के.के पाठक ने एक के बाद एक, नया आदेश लागू कर शिक्षा विभाग में तहलका मचा दिया।फलस्वरूप शिक्षकगण घर बैठे वेतन उठाने /पाने की जगह स्कूल जाना मुनासिब समझ रहे हैं, क्योंकि उनके कोचिंग सेंटर की आय सरकारी वेतन के सामने फीके पड़ जा रहे हैं । सरकारी वेतन के सामने सरकारी शिक्षकों द्वरा कोचिंग सेंटर संचलन ,दाल -भात पर चटनी का बोध कर दिया है ! अंततः शिक्षक भी अपने दायित्व को निभाना मुनासिब समझ रहे है। ठीक इसी तरह बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग एवम संबंधित जिला स्तरीय मंत्री जी तथा जिला पदाधिकारी महोदय भी शिक्षा विभाग के अपर सचिव के. के .पाठक के पद चिन्हों पर चल पड़ते तो 90% सरकारी डॉक्टर से गरीबो को समुचित इलाज मिल जाता और विशेष परिस्थितियों में 10% अच्छे डाक्टर के पास गरीबो को इलाज के लिए जाना पड़ता ,इससे आयुष्मान भारत योजना के तहत सरकारी खजाने की लुट रुक जाता और देश का आर्थिक ढ़ाचे भी मजबूत होते। वही डाक्टरो द्वारा गरीबों को रेफर की परिपाटी भी थम जाता और गरीब हमेशा रेफर की परिपाटी से भी बच जाते ।

जनता की दबी-जुबान बताते हैं कि जो शिक्षक बगैर स्कूल जाए, अपना महीना का सैलरी बड़ी आसानी से उठा लिया करते थे,आज वही शिक्षक स्कूल के लिए निर्धारित समय सीमा से 10 मिनट पहले स्कूल पहुंच जाते हैं।

सूत्रों की बात मान लि जाए तो बिहार सरकार के अपर मुख्य
सचिव के. के. पाठक द्वारा सरकारी विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक को कोचिंग चलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है,साथ ही निजी कोचिंग संचालको को सरकारी विद्यालय अवधि में कोचिंग नही चलाने का निर्देश दिया गया है ।

तो फिर सरकारी हॉस्पिटल के डॉक्टर को निजी क्लीनिक चलाने पर प्रतिबंध क्यों नहीं हैं?

क्या बिहार राज्य के तमाम स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी किसी बड़े मंत्री की दबाव में काम करते हैं या फिर जिले में बैठे स्वास्थ्य अधिकारी मोटी रकम लेकर अपना अपना अधिकार को भी खो दिए है।

शिक्षक और चिकित्सक अपने अपने कर्तव्य बोध समझ ले तो शिक्षा और चिकित्सा के माध्यम से पूरे समाज में आमूल चूल परिवर्तन लाया जा सकता है, जब शिक्षा और चिकित्सा सुधर जाएंगे तो हमारा यह समाज पूर्णत: स्वच्छ बन जाएगा।

सूत्रो के माने तो आज भी सारे विद्यालय में फर्जी एडमिशन हेड हेडमास्टरों द्वारा किया गया है जो चिंता का विषय है निजी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों का सरकारी विद्यालयों में नामांकन से हेडमास्टरों के साथ -साथ शिक्षक को भी बले- बले रहता है ‌। वहीं एमडीएम से बचने वाला पैसों को बंदर बांट भी किया जाता है ! और तो और निजी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों का सरकारी विद्यालय में एडमिशन से बच्चों की संख्या सरकारी विद्यालय में अधिक हो जाती है और बच्चो की संख्या शिक्षकों के अपेक्षा कम हो जाती है ।
मामले की निष्पक्ष जांच कराया जाय तो सरकार के पैरों तले जमीन घिसक जाएगी और तो और बच्चों की अपेक्षा शिक्षकों की कमी भी दूर हो जाएगा और हेडमास्टरों के साथ साथ बिहार के शिक्षा विभाग का काली करतूतों का भी पोल खुल जाएगा।

सरकारी शिक्षकों को कोचिंग चलने पर प्रतिबन्ध हैं , तो फिर सरकारी डॉक्टर को निजी क्लीनिक चलाने पर प्रतिबंध क्यों नहीं ?

सर्वेक्षण बताता है कि संबंधित विभाग के अधिकारियों तथा जिला प्रशासन की इच्छा सक्ति के अभाव में बिहार सरकार के तमाम नीतियां विफल साबित होते आ रहे हैं और मुख्यमंत्री के द्वारा जनहित एवम राज्यहित में कठोर निर्णय एवं संघर्ष के बाद भी जनता के बीच मुख्यमंत्री का फैलते बदनामी ,अच्छे मुख्यमंत्री को भी पराजित करते जा रहे है।
जैसे, शिक्षा विभाग में सुधार के लिए शिक्षा विभाग के अपर सचिव के. के .पाठक के द्वारा उठाये गये कदम , जहां बिहार सरकार को मजबूती प्रदान कर रही है। वहीं शराब बंदी कानून की विफलता तथा कानून की आड़ में पुलिस द्वरा दमन की करवाई ,सरकार की पतन का कारण बनते जा रहें हैं । वहीं विजली विभाग के अधकारियों का दमन की कार्रवाई,बिहार सरकार के प्रति नफऱत फैला रहे है जो बिहार सरकार के पतन की कारण बनते जा रहा हैं! आखिर अकेले मुख्यमंत्री कर भी क्या सकते हैं ! फिर भी आँख मूंद कर सरकार को प्रसासनिक अधिकारियों पर विश्वास करना, बिहार- सरकार के लिए हार का कारण बन सकता है।