“मेरा शहर” द्वारा जयपुरिया स्कूल में आयोजित समावेशी सांस्कृतिक उत्सव, विश्व पर्यावरण सप्ताह के अंतर्गत सामुदायिक जुड़ाव और हरित चेतना को मिला एक सृजनात्मक मंच

समाज जागरण अनिल कुमार
हरहुआ वाराणसी। सामाजिक संगठन “मेरा शहर” द्वारा विश्व पर्यावरण सप्ताह के उपलक्ष्य में हरहुआ स्थित सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल, वाराणसी में तीसरे समावेशी सांस्कृतिक उत्सव का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया।यह आयोजन समाज के विभिन्न आयु और सामाजिक वर्गों को एक साझा सांस्कृतिक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से किया गया, जहाँ सृजनात्मक अभिव्यक्तियों के माध्यम से सामाजिक संवाद, सहयोग और पर्यावरणीय चेतना को प्रोत्साहन मिला।
कार्यक्रम में ओपन माइक सत्र, फ्रीस्टाइल प्रस्तुतियाँ, कविता पाठ, चित्रकला प्रदर्शनी जैसे विविध रचनात्मक पहलुओं ने आयोजन स्थल को सजीव और ऊर्जावान बना दिया।


बच्चों, युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों ने उत्साहपूर्वक भागीदारी कर एक समावेशी और संवादशील समाज की झलक प्रस्तुत की।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डॉ. लेनिन रघुवंशी – प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता,
विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार, पद्मनी मेहता सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रेरणादायी वक्ता शामिल रहे।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से नृत्य प्राची तिवारी, आकाश, प्रगति बिंद, मोनिका विश्वकर्मा द्वारा कविता प्रियांशी, ईशान सराफ़, नमित द्वारा गायन व रैप विजय प्रकाश, दीपक कुमार, काज़ी अख्तर, ऋषि, स्मार्ट लालू द्वारा मार्शल आर्ट्स प्रदर्शन आरंभ अकैडमी तथाचित्रकला प्रदर्शनी आकांक्षा, काजल, अनुराधा, अलिश्बा अंसारी, रिम्मी जायसवाल, विनीता, अमरजीत, आर्यन द्वारा प्रस्तुत की गई।
पर्यावरणविद् विश्वजीत सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि
“अब समय है केवल बातों से आगे बढ़कर ठोस क्रियान्वयन की दिशा में कदम उठाने का। प्रकृति हमारे अस्तित्व का आधार है , इसकी रक्षा केवल सरकार या संगठनों का दायित्व नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है।उन्होंने ऐसे आयोजनों को सामाजिक बदलाव की नींव रखने वाले ‘बीज प्रयास’ बताया।
“मेरा शहर” की मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीमती सोनल उपाध्याय ने कहा कि
हमारा प्रयास है ऐसे मंचों का निर्माण, जहाँ अभिव्यक्ति और सहभागिता के माध्यम से लोग न केवल जुड़ें, बल्कि सामाजिक व पारिस्थितिक जिम्मेदारियों को सहज रूप से अपनाएं।
वक्ताओं ने कहा कि सांस्कृतिक गतिविधियाँ केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता, जागरूकता और सतत विकास की दिशा में ठोस परिवर्तन का माध्यम बन सकती हैं।

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