दीपोत्सव के दिन दीप जलाने से बढ़ती है वातावरण की शुद्धता

घरौंदे बना बच्चियां संजोती है उज्ज्वल भविष्य की सपने

समाज जागरण पटना जिला संवाददाता:- वेद प्रकाश पालीगंज अनुमंडल

पालीगंज/ दीपावली को ही दीपोत्सव के नाम से जाना जाता है। जिस दिन दीप जलाने से वातावरण की शुद्धता बढ़ती है ऐसा मानना है लोगो का। वही धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना भी धूमधाम से किया जाता है। जिससे पूरे वातावरण धूप तथा अगरबती की सुगन्ध से मनमोहक व भक्तिमय हो जाता है। वही घरौंदे बना बच्चियां अपनी उज्ज्वल भविष्य की सपने भी संजोती है।
जानकारी के अनुसार दीपावली का त्योहार पूरे देश मे कार्तिक महीने में मनाई जाती है। त्योहार शुरू होने के महीनों दिन पहले से कुम्भकार अर्थोपार्जन अर्थात कुछ पैसे कमाने को लेकर मिट्टी के दिये बनाने में ब्यस्त हो जाते है। जिसे दीपावली के पूर्व बेंचकर अपनी जरूरतों को पूरा करते है। जिससे उन गरीब कुम्भकरो के घर में भी खुशियां आती है। उनके भी परिवार वाले इस खुशी में शामिल हो जाते है। यह त्योहार धनतेरस के दिन से शुरू होकर चार दिनों बाद समाप्त होती है। त्योहार के पूर्व घरों तथा आसपास के वातावरण की सफाई की जाती है। वही दीपावली के पहले दिन को धनतेरस के रूप में मनाई जाती है। इस दौरान धन की देवता कुबेर की पूजा किया जाता है। इस दिन सभी लोगो ने झाड़ू तथा बर्तन की खरीदारी जम कर करते है। कुछ लोग विशेष वस्तुओं की भी खरीदारी करते है।
दीपावली के दूसरे दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा किया जाता है। लोगो का मानना है कि इस दिन घर मे वास लिए मृत्यु के देवता को पूजा अर्चना कर बाहर निकाला जाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इस दिन तक घरों की पूर्ण रूप से सफाई कार्य संम्पन्न हो जाती है तथा घर मे मौजूद सभी रोगाणुओं को सफाई कर घर से निकलने पर मौजबुर कर दिया जाता है जिससे गम्भीर बीमारियों का डर समाप्त हो जाती है।
वही तीसरे दिन इस त्योहार के दौरान दीपोत्सव मनाई जाती है। इस दौरान पूर्व से ही दीपक जलाने की रीति रिवाज चली आ रही है। लेकिन अब लोग अपने घरों को दीप कम तथा बिभिन्न रंगों के बिधुत बल्बों से अपने अपने घरों को सजाते है। जो पर्यावरण की शुद्धता को लेकर उचित नही है। बैज्ञानिक मतों के अनुसार बारिश के मौसम में उगे लताओं में बिभिन्न प्रकार के रोगाणुओं का वास हो जाता है। जो दीपावली के दौरान लताओं को सफाई कर रोगाणुओं से छुटकारा पाया जाता है। वही कुछ बचे हुए रोगाणु दीपों की ज्वाला में जलकर नष्ट हो जाते है। इससे पूरे आसपास के वातावरण शुद्ध हो जाता है। कुछ लोग अज्ञानतावश दीपावली के दिन काफी पटाखे छोड़ते है। उन्हें जानकारी होनी चाहिए कि पटाखे छोड़ने से निकलने वाली जहरीली गैसों से वायु तथा तेज ध्वनि के कारण ध्वनि प्रदूषण तो फैलती ही है साथ ही वातावरण तथा पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इतना ही नही कभी कभी तो लोगो को शारीरिक नुकसान के साथ साथ पटाखे से निकलने वाली चिंगारियों से आगलगी की सामना भी करनी पड़ती है। जिसे देखते हुए दीपावली को दीपोत्सव के रूप में ही मनाना चाहिए न कि केवल अपनी क्षणिक खुशी के लिए पटाखे छोड़कर वातावरण तथा पर्यावरण को दूषित करना चाहिए। इस दिन बच्चे तथा बच्चियां रंगोली बना उसे कई रंगों से सजाती है। खास बात तो यह है कि इस दिन बच्चियां घरौंदा बना उसकी पूजा पाठ कर नए घरों में प्रवेश कर अपने खुशहाल दाम्पत्य जीवन कि सपना संजोति है। इन कार्यो में इन्हें दादी, दीदी तथा मां भी साथ देती है। वही इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा सभी घरों में किया जाता है। कही कही सार्वजनिक स्थलों पर पूजा पंडाल बनाकर उसमें देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित किया जाता है। अब तो कारीगरों द्वारा घरौंदे भी निर्माण कर बाजार में बेची जा रही है। वही कुछ इलाकों में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है।
वही दीपावली के अंतिम तथा चौथे दिन को भी लोग दीप जलाते है तथा खुशी खुशी त्योहार का समापन करते है। इस त्योहार के प्रति धार्मिक मान्यता यह है कि इसी दिन रावण पर विजय प्राप्त कर श्रीरामचन्द्र अयोध्या लौटे थे जिनकी स्वागत में पूरे अयोध्या नगरी को दीपों से सजाया गया था।

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