समाज जागरण/ रमन झा
आप सोचते होंगे की अस्पताल एक सेवा है, लेकिन अस्पतालों में आईसीयू और वार्ड चार्ज के नाम पर हो रहे लूट के बारे में कभी आपने सूना है। माना कि आईसीयू का डेली चार्ड, घंटे का चार्ज 5 हजार से 10 हजार है तो फिर वार्ड चार्ज क्यों लगाए जाते है ? इसके अलावा हैण्ड गलोजर, और सेनेटाइटर के चार्ज भी ले लिए जाते है। अगर आईसीयू मे किसी यंत्र कि आवश्यक्ता है तो उसके लाने पर भी आपको अलग से चार्ज देने होते है। यहाँ तक कि अगर आक्सीजन बाहर से लेना पड़ा को उसके लिए भी मरीज को ही चार्ज देना पड़ता है। क्या आपने कभी सोचा है कि जब सभी चार्ज आपसे अलग से वसूले जाते है तो आईसीयू में आपको मिलते क्या है ? य़ह जबाब शायद सरकार और उसके महकमे के पास में भी नही है, इसलिए जब आप पीएम ग्रिवेन्स पर सवाल उठाते है और ध्यान आकृष्ट करना चाहते है तो आपका ग्रिवेन्स बिना उचित कारण बताये ही बंद कर दिए जाते है।
आप अगर पीएम ग्रिवेन्स पर कुछ सवाल या सुझाव भेजते है तो यह मत समझिये की आपको कोई जबाब मिलेगा। क्योंकि ग्रिवेन्स पर जबाब देने के लिए अधिकृत अफसर उचित जबाब देने के बजाय ग्रिवेन्स को किसी न किसी बहाने के डिसक्लोज कर मामला को रफा दफा करते हुए आपको सूचना भेज देते है।
एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमे नोएडा शहर के वरिष्ठ नागरिक व अधिवक्ता श्री अनिल के गर्ग के द्वारा पीएम ग्रिवेन्स पर प्राइवेट अस्पतालो में आईसीयू के नाम पर हो रहे लूट को लेकर देश के शासन प्रशासन और देश के यशस्वी प्रधानमंत्री, प्रदेश के मुख्यमंत्री को अवगत कराना चाहा था, लेकिन उनका ग्रिवेन्स बिना किसी उचित कारण बताये ही डिस्कलोज कर दिया गया है। अब सवाल उठता है क्या शिकायतकर्ता को भी सरकार और अफसर का ध्यान रखते हुए शिकायत और सुझाव भेजना होगा कि यह सरकार के पसंद या ना पसंद की है।
आईये पहले देखते है कि आम जनता के किन समस्याओं को लेकर श्री गर्ग ने पीएम ग्रिवेन्स डाला था, जिसे डिस्कलोज कर दिया गया। बिना कारण बताये:-
विषय- प्रायवेटअस्पतालो मे लगने वाले ICU और वार्ड शुल्क में मानक तय विषयक। DHLTH/E/2023/0003559
माननीय महोदय ,
सौभाग्य की बात है कि बहुत समय बाद भारत में आपके कुशल नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की केन्द्रीय सरकार विद्यमान है। आपके द्वारा बहुत से कठिन निर्णय जनता के जीवन सुधार हेतु लिए गए है। हमे पूरा विश्वास है कि आप आगे भी भारत व भारतीयों के जीवन स्तर में सुधार हेतु कड़ा से कड़ा कदम उठाने में कोई गुरेज नहीं करेंगे।
महोदय, इसी कड़ी में मैं आपका ध्यान प्रायवेटअस्पतालो मे लगने वाले ICU और वार्ड शुल्क में मानक तय करने हेतु आकृष्ट करवाना चाहता हूँ। ये अस्पताल अपनी सेवाओ से कही अधिक वसूल कर रहे है,जैसे ICU चार्ज 10000 से 15000 प्रतिदिन के हिसाब से लेने के बाद भी वहां उपयोग मे आने वाले यन्त्रो के चार्ज अलग से लिये जाते है,जो कि सर्वथा अनुचित है,क्योंकि इतने भारी-भरकम शुल्क के बाद यह शुल्क बेमानी है।हाँ अगर आक्सीजन इत्यादि जरुरत मुताबिक लिया जा सकता है।
इसके अलावा भारी-भरकम वार्ड चार्ज के अलावा hand glouse, sanitizer, और अनगिनत चीजो का शुल्क लिया जा रहा जो कि मरीजो पर अनावश्यक बोझ है,जो कि Insurance company भी मान्य नही करती है।
Insurance company अपना घाटा बचाने के चक्कर मे premium बढाती जा रही है,जबकि सबसे बडा कारण अस्पताल का बिल है जिसका मापदंड पिछले तीन साल मे तिगुना हो गया है।
आम जनता त्रस्त है तथा मूल्य न चुकाने की स्थिति में कई बार उसे अपने परिजनों के जीवन से भी हाथ धोना पड़ जाता है।
इस प्रकार अस्पताल की मनमानी से मरीजों को नुकसान पहुंच रहा है। वो भी मनमाने तौर से। कई जीवन रक्षक दवाओं की कीमत उसकी वास्तविक कीमत से 100 से 1000 गुना तक होती है। जो सामान्य परिवार को पहुंच से कही अधिक होता है और इसका लाभ प्राइवेट अस्पताल उठाते है।
अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि ऐसा कोई प्रावधान या बिल संसद में लाया जाए जिससे इन अस्पतालो की मनमानी पर अंकुश लगे,अधिकतम ICU और Ward के charge और सेवा की सीमा निर्धारित हो। उससे ज्यादा बिल चार्ज करने पर कड़ा प्रतिबंध हो तथा दंड का प्रावधान हो।

बताते चले कि 18 मार्च को भेजे गए ग्रिवेन्स को 21 अप्रैल को बंद करते हुए , कारण जो बताए गए है, अधीनस्थ अधिकारी के स्तर पर निस्तारित सुझाव कार्यालय अध्यक्ष के कार्य अधिकार क्षेत्र में नही है।
शिकायत कर्ता ने जो फिडबैक दिया है उसे भी जानना जरूरी है : –
यह कहते हुए खेद है कि वरिष्ठ अधिकारी इस मामले को समझ नहीं पाए और शिकायत/शिकायत बंद कर दी। हमारे सभी नौकरशाही और राजनेता एयर कंडीशनर कक्ष से अपना काम कर रहे हैं और अस्पतालों द्वारा जनता को लूट रहे अनुचित व्यवहारों का निरीक्षण और निगरानी नहीं कर रहे हैं। इसलिए अनुरोध है कि कृपया इसे गंभीरता से लें और निरंकुश व्यवहार और सभी अस्पतालों जनता के साथ हो रहे लूट को रोकने के लिए सक्रिय पहल करें, जैसा कि हमने अपनी शिकायत और सुझाव में उल्लेख किया है। आशा है, हमारी नौकरशाही और राजनेता तदनुसार आवश्यक कार्रवाई करेंगे। धन्यवाद और सादर, एडवोकेट अनिल के गर्ग फॉर राइट इनिशिएटिव्स फॉर सोशल एम्पावरमेंट, नोएडा।
अब सवाल उठता है जनता के द्वारा भेजे गए सुझाव और शिकायत अधिकारी ज्यादा बेहतर जानते है या जनता ? क्या यह उचित नही होता कि जिनके अधिकारी क्षेत्र मे है उनको अधिनस्थ अधिकारियों के द्वारा भेज दी जाय ताकि जनता के द्वारा जो सुझाव दिया गया है उस पर उचित कार्यवाही हो सके या सरकार उस पर नियम बनाकर सदन के पटल से पास करा सके। आखिर क्यो अधिकतर ग्रिवेन्स को टालमटोल करके, बिना उचित जबाब दिए ही बंद कर दिए जाते है। क्यों नही पोर्टल को ही बंद कर दिया जाता है, ताकि “न रहेगा बांस न बजेगा बांसूरी। ” जनता सिर्फ सरकार के पसंद की शिकायत करे कोई ऐसा ही टर्म और कंडीशन लगा दिया जाय तो कि शिकायत करते समय ही उनको एलार्म मिल जाये कि यह सुझाव और शिकायत सरकार और उनके अफसर के पसंद की नही है इसलिए स्वीकार्य नही की जाती है।
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