हुल दिवस के अवसर पर आदिवासी समुदाय ने यूसीसी कानून के खिलाप किया रोड शो,विरोध प्रदर्शन।

परिवहन सह कल्याण मंत्री चंपाई सोरेन एवं विधायक सबिता महतो ने बीर सिधु कान्हु को दिया श्रद्धांजलि।

शशि भूषण महतो (चांडिल)

चांडिल : सराइकेला खरसावां जिला के चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के आदिवासी सामाजिक संगठनों के द्वारा हुल दिवस के अवसर पर जिला के सीमांत कमरगोड़ा से टुडुंगरी गौरागकोचा तक यूसीसी कानून का विरोध प्रदर्शन करते हुए, मोटर
साइकिल रैली निकाला गया। आदिवासी समाज ने यूसीसी कानून का जमकर विरोध किया है,समुदाय का कहना हे कानून लागू हो गया तो उनकी स्वतंत्र अस्मिता सवालों के घेरे में आ जाएगी. आदिवासियों का कहना है कि इस कानून से उनके विवाह, तलाक, बंटवारा, गोद लेने, विरासत और उतराधिकार समेत कानून प्रभावित होंगे । उन्होंने ये भी तर्क दिया है कि यह देश के सांस्कृतिक ताने-बाने को नष्ट कर सकता है और इसके नागरिकों की अपनी पसंद के धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।यदि यह लागू होता है, तो हिंदू, मुस्लिम, सिख, पारसी और अन्य समुदायों के विवाह, तलाक और विरासत को नियंत्रित करने वाले अलग-अलग व्यक्तिगत कानून इसमें समाहित हो जाएंगे।

क्या है हूल दिवस
सिदो-कान्हु, चांद-भैरव व फूलो-झानो छह भाई बहन थे। उनका जन्म बरहेट के छोटे से गांव भोगनाडीह में हुआ था। अंग्रेजों के शोषण व महाजनों के अत्याचार से तंग आकर सिदो-कान्हु के नेतृत्व में 30 जून, 1855 को लोगों ने तत्कालीन अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ विद्रोह (हूल) किया था।

इसमें संताल परगना के दुमका, देवघर, गोड्डा, पाकुड़ पश्चिम बंगाल, भागलपुर समेत अन्य क्षेत्रों के 50 हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे। आंदोलन ने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। इसके बाद अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों का दमन शुरू किया। कहा जाता है कि 20 हजार आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया। सिदो-कान्हु को बरहेट के ही पंचकठिया में फांसी की सजा दे दी गई। विद्रोह की याद में हूल दिवस मनाया जाता है। मौके पर झारखंड सरकार के परिवहन सह कल्याण मंत्री चंपई सोरेन,ईचागढ़ विधायक सबिता महतो,जिला परिषद सदस्य पिंकी लायक,अनुमंडल पदाधिकारी रंजित लोहरा,अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी संजय सिंह, श्यामल मार्डी, सुकराम हेम्ब्रम, चारुचंद्र किस्कु,दिलीप किस्कु,सुगी हांसदा,सुधीर किस्कु,सुदामा हेम्ब्रम, बैद्यनाथ टुडू,समाय टुडू उपस्थित थे।