मैनापुर ईदगाह टोला बैरगाछी अररिया में जन सुराज अभियान के सूत्रधार प्रशांत किशोर का आगमन आज

सही लोग सही सोच सामूहिक प्रयास ,जुड़ने के लिए जारी किया 91215 91216 नम्बर

बिहार की सामाजिक – राजनैतिक परिस्थितियों और उसके विकल्प में आपकी और उनकी भूमिका के विषय पर करेंगे विस्तृत चर्चा

अररिया/डा. रूद्र किंकर वर्मा।

बिहार में एक नए राजनैतिक विकल्प को तैयार करने के लिए पदयात्रा कर रहे जन सुराज अभियान के सूत्रधार प्रशांत किशोर जी अररिया जिले के मैनापुर ईदगाह टोला (बैरगाछी इण्डियन ऑयल पेट्रोल पम्प के नज़दीक), पंचायत – बसंतपुर, ब्लॉक – अररिया सदर, अररिया में उनका आगमन 4 जुलाई गुरुवार
सुबह 10:00 बजे होने जा रहा है। आगमन को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई है। आयोजक मंडलों द्वारा सभी को इस इस परिचर्चा में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया है और कहा कि
आप सभी सम्मानित साथियों से बिहार की सामाजिक – राजनैतिक परिस्थितियों और उसके विकल्प में आपकी और उनकी भूमिका के विषय में चर्चा करने हेतु प्रशांत किशोर जी
आ रहे हैं।
आप सभी सम्मानित गण इस बैठक में आमंत्रित हैं, हमें और आदरणीय प्रशांत किशोर जी को आपके सहयोग और आशीर्वाद की आकांक्षा है।
जन सुराज: एक समृद्ध बिहार बनाने की परिकल्पना
बता दें कि भारत के सबसे गौरवशाली इतिहास वाले राज्यों में से एक बिहार की गिनती आजादी के बाद 50 और 60 के दशक तक देश के अग्रणी राज्यों में होती थी। लेकिन, 1970 के दशक के बाद से बिहार विकास के मानकों पर धीरे- धीरे पिछड़ता गया। इसकी एक वजह राज्य में 1967 से 1990 के दौरान की राजनीतिक अस्थिरता रही। इस 23 साल के कालखंड में 20 से ज्यादा सरकारें आईं और गईं, जिसकी वजह से विकास सरकारों की प्राथमिकताओं में कहीं पीछे चला गया। 1990 के बाद राजनीतिक स्थिरता तो आई लेकिन, 1990 से 2005 तक की सरकार ने सामाजिक न्याय को अपनी प्राथमिकता बताया। इस दिशा में कुछ सफलता भी मिली लेकिन 2005 आते-आते बिहार विकास के सभी मानकों पर देश में न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया।
2005 में फिर व्यवस्था बदली और नई सरकार का गठन हुआ। इस सरकार ने सामाजिक न्याय के साथ विकास को अपनी प्राथमिकता बताया। अब तक चली आ रही इस सरकार के 15 साल के कार्यकाल में विकास को कुछ गति मिली, मूलभूत संरचनाओं और सेवाओं में थोड़ा बहुत सुधार भी हुआ लेकिन व्यवस्था के आमूल-चूल परिवर्तन के अभाव में विकास की दौड़ में अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत पीछे छूट गए बिहार में बदहाली और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन बना रहा।

विकास की इसी धीमी रफ्तार की वजह से आज भी बिहार देश का सबसे गरीब और पिछड़ा राज्य है। बिहार में देश के सबसे ज्यादा अशिक्षित, सबसे ज्यादा बेरोजगार, सबसे ज्यादा भुखमरी और पलायन के शिकार लोग रहते हैं। देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा भी बिहार में ही रहता है। प्रदेश की एक बहुत बड़ी जनसंख्या आज भी मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है। बिहार के ज्यादातर लोग इस स्थिति को समझते हैं और इसकी बेहतरी चाहते हैं। बिहार के सभी जागृत और प्रबुद्ध लोग, जिनको बिहार के वर्तमान और भविष्य की चिंता है उन्हें इस बात की समझ है कि बिहार जिस रास्ते पर पिछले कुछ दशकों से चल रहा है, उस पर चलकर इसे विकसित नहीं बनाया जा सकता है।

अगर बिहार को आने वाले 10-15 सालों में देश के अग्रणी राज्यों में खड़ा होना है तो उसके लिए एक नई सोच और एक नए प्रयास की जरूरत है। ये नई सोच और प्रयास किसी एक व्यक्ति या दल के बस की बात नहीं है। प्रदेश के 3 करोड़ लोगों के 60 साल के पिछड़ेपन को कोई एक व्यक्ति या दल दूर नहीं कर सकता है। इसके लिए जरूरी है कि एक नई राजनीतिक व्यवस्था बनाई जाए जिसे बिहार के सभी सही लोग मिलकर एक सही सोच के साथ बनाएं और जिसके जरिए सामूहिक प्रयास से सत्ता परिवर्तन के साथ- साथ व्यवस्था परिवर्तन की शुरुआत भी हो।

इस दिशा में जन सुराज सोच समझकर बनाई गई एक बड़ी और विश्वसनीय पहल है। इसके जरिए बिहार के वर्तमान और भविष्य की चिंता करने वाले सभी सही लोगों को एक सही सोच के साथ एक मंच पर लाना है। आने वाले कुछ महीनों में इन सभी लोगों से जुड़ने, उनके सवालों के जवाब देने, उनके सुझावों को सुनने और जन सुराज को बिहार के गाँव- गाँव तक पहुँचाने का प्रयास किया जाएगा
जन सुराज के तीन स्तंभ सही लोग,सही सोच,सामूहिक प्रयास

सही लोग
जमीन से जुड़े वे लोग जिनका वर्तमान और भविष्य बिहार की बदहाली और खुशहाली से जुड़ा है- जिनको मुद्दों की समझ है, जो लोग अपने स्तर पर यहां की समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रयासरत हैं और इन सबसे बढ़कर जिनके अंदर बिहार को बदलने का जज्बा है।

सही सोच
बिहार के समग्र विकास का एकमात्र रास्ता सुराज है, ऐसा सुराज जो किसी व्यक्ति या दल का न होकर, जनता का हो। समाज के समग्र विकास के लिए ऐसी ही सोच महात्मा गांधी भी रखते थे। गांधी के इसी विचार से प्रेरित होकर जन सुराज की परिकल्पना की गई है। जन सुराज की इस परिकल्पना में सभी वर्गों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं का ध्यान रखा जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा की वह जनता के मानदंडों पर खरा उतरे। यह नीति-निर्धारण और उसके क्रियान्वयन में समाज के अंतिम व्यक्ति की न सिर्फ चिंता करेगा बल्कि उन्हें इसमें भागीदार भी बनाएगा।

सामूहिक प्रयास
लोकतंत्र में राजनीतिक दल या मंच समाज की बेहतरी के लिए लोगों के सामूहिक प्रयास करने का जरिया होते हैं। इसी दिशा में जन सुराज एक ऐसे राजनीतिक मंच की परिकल्पना है, जो लोगों को उनकी क्षमता के अनुसार बिहार को विकसित करने के लिए सामूहिक प्रयास करने का अवसर प्रदान करे और इससे जुड़ने वाले लोग ही यह निर्णय करें कि एक नया राजनीतिक दल बनाया जाए या नहीं। अगर बनाया जाए तो उसका नाम क्या हो, उसका संविधान क्या हो, उस दल की प्राथमिकताएं क्या हों और किस व्यक्ति को कौन सी जिम्मेदारी मिले? सभी विषयों पर निर्णय का अधिकार किसी एक व्यक्ति या परिवार का न होकर, सभी लोगों का हो।
जन सुराज के अभियान

जन सुराज का मिशन बिहार को सशक्त बनाना और इसकी अपार संभावनाओं को उजागर करना है। हम विभिन्न प्रकार की पहलों के माध्यम से ऐसा करते हैं, जिनका ध्यान इस पर केंद्रित है।