जिले के मैरिज गार्डन में कोलाहल की संस्कृति, नियमों की अनदेखी और प्रशासनिक चुप्पी

शांति भांग करती रातें और सोता प्रशासन

अनूपपुर
किसी झूठ को अगर ऊँची आवाज़ में बार-बार बोला जाए तो वह सच नहीं हो जाता ठीक उसी तरह, तेज़ आवाज़ में बजाया गया संगीत हर बार मन को सुकून नहीं देता। आज अनूपपुर शहर के कई रिहायशी इलाकों में जो कुछ हो रहा है, वह इसी कटु सत्य की गवाही देता है।शहर के अधिकांश मैरिज गार्डन रिहायशी क्षेत्रों में संचालित हो रहे हैं, और इन गार्डनों में देर रात तक तेज़ डीजे की गूंज सुनी जा सकती है। यह ध्वनि न केवल कानों को चीरती है, बल्कि शांति, नींद और मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा रही है। इन आवाजों के पीछे छुपी संवेदनहीनता और नियमों की अनदेखी समाज के संवेदनशील वर्गों विद्यार्थियों, बुजुर्गों और हृदय रोगियों पर सीधा प्रहार कर रही है।
स्वास्थ्य पर पड़ता घातक असर

चिकित्सा विज्ञान स्पष्ट रूप से कहता है कि तेज ध्वनि हृदय रोगियों के लिए घातक हो सकती है। तेज़ आवाज़ से ब्लड प्रेशर बढ़ता है, नींद में गड़बड़ी आती है, चिड़चिड़ापन और तनाव जन्म लेता है। कई मामलों में यह दिल की धड़कनों को असामान्य बना सकता है और यहां तक कि हृदयघात का कारण भी बन सकता है।

विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़

शोर का सबसे बुरा असर उन विद्यार्थियों पर पड़ता है जो बोर्ड परीक्षाओं या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे होते हैं। मानसिक एकाग्रता के लिए ज़रूरी शांति जब डीजे की तेज़ बीट्स में दब जाती है, तो इसका असर केवल उनके पढ़ाई के घंटों पर नहीं, बल्कि उनके पूरे भविष्य पर पड़ता है।

नियमों की धज्जियां और प्रशासन की चुप्पी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्पष्ट सीमा तय की है रिहायशी क्षेत्रों में दिन के समय 65 डेसीबल और रात में 55 डेसीबल से अधिक ध्वनि नहीं होनी चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि शहर के डीजे 90 से 110 डेसीबल तक की तीव्रता से बज रहे हैं। कोलाहल नियंत्रण अधिनियम की खुलेआम अवहेलना हो रही है। पुलिस और प्रशासन की चुप्पी इस बात को और अधिक खतरनाक बना देती है।स्थानीय निवासियों द्वारा की गई शिकायतों पर केवल आश्वासन मिलता है, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं। शांति समिति की बैठकें केवल औपचारिकता बनकर रह गई हैं, जहां न कोई ठोस निर्णय होता है, न ही कोई प्रभावी क्रियान्वयन।

अनुमति या अनदेखी?

जब आयोजकों को कार्यक्रमों के लिए अनुमति दी जाती है, तो क्या यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह नियमों का पालन करेंगे? लेकिन जब अनुमति के बावजूद कानून की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं, तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या यह प्रक्रिया केवल भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण की छांव में पनप रही है?इस विकट स्थिति से निपटने के लिए केवल सख्त कानून काफी नहीं होंगे। ज़रूरत है ईमानदार और संवेदनशील प्रशासनिक रवैये की।प्रशासन को चाहिए कि वह हर गार्डन पर निगरानी तंत्र स्थापित करे और रिहायशी क्षेत्रों में कार्यक्रमों पर विशेष निगरानी रखे।स्थानीय नागरिकों की शिकायतों को प्राथमिकता पर सुना जाए और हर उल्लंघन पर त्वरित कार्रवाई हो ,उत्सव और शोरगुल में अंतर है। उत्सव वह होता है जिसमें सबका सम्मान बना रहे नींद का, स्वास्थ्य का, और जीवन का भी। शांति में ही समाज की उन्नति है। आज यह जिम्मेदारी प्रशासन, आयोजकों और नागरिकों तीनों की है कि वे इस गूंजती हुई समस्या का स्थायी समाधान तलाशें।समाज का असली उत्सव तभी संभव है जब वह हर दिल की धड़कन के साथ चल सके बिना उसे डरा कर, दबा कर या तोड़ कर।

Leave a Reply