सुप्रीम कोर्ट ने वोटो की पूर्ण क्रास सत्यापन की वाली याचिका किया खारिज, चुनाव आयोग को जांच का आदेश

समाज जागरण डेस्क नई दिल्ली

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (#VVPAT) के साथ #EVM का उपयोग करके डाले गए वोटों के पूर्ण क्रॉस-सत्यापन की मांग करने वाली याचिकाओं खारिज कर दिया गया है। याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने कहा है कि “अदालत ने हमारी मांगों को स्वीकार नहीं किया है, लेकिन चुनाव आयोग को यह जांच करने का निर्देश दिया है कि क्या वीवीपैट पर्चियों पर बार कोड लगाए जा सकते हैं, ताकि वीवीपैट पर्चियों को स्वचालित रूप से गिनती मशीन द्वारा गिना जा सके। इसके अलावा, उन्होंने कहा है कि तीसरा, उन्होंने कहा है कि चुनाव के बाद चुनाव चिह्न लोड करने वाली इकाई को चुनाव के बाद कम से कम 45 दिनों तक सील करके उपलब्ध रखा जाना चाहिए और चुनाव आयोग की एक तकनीकी विशेषज्ञ टीम को उसकी जांच करनी होगी, लेकिन उसकी कीमत उम्मीदवार को चुकानी होगी। इन निर्देशों के साथ अदालत ने याचिका का निपटारा कर दिया है।”

वकील प्रशांत भूषण ने यह नही कहा है कि याचिका को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया है बल्कि उन्होंने शब्दों की चालाकी करते हुए कहा है कि माननीय न्यायालय ने स्वीकार नही किया है। अगर स्वीकार नही किया है तो चुनाव आयोग को निर्देश कैसे दिया गया। बल्कि यह कहना ठीक होगा कि याचिका स्वीकार तो किया गया लेकिन सही नही पाये जाने पर खारिज किया गया है।

पीटीआई से प्राप्त विडियों मे कहते दिख रहे है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उनके याचिका को स्वीकार नही किया है। जबकि यह कहना ठीक होगा कि माननीय न्यायालय ने खारिज किया है।

सुप्रीम कोर्ट मे मामले को खारिज होने पर लोगों ने अपने अपने विचार इस प्रकार से रखे है।

मो. अब्दुल सतार ने लिखा है आपके प्रयासो का सराहना है, ऐसे ही डटे रहे।

चायवाला मोदी का परिवार ने लिखा है, लाखों केस पेंडिंग के लिए किसी को दोषी ठहराना आसान है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कई निरर्थक याचिकाएं न्यायालय का बहुत सारा मूल्यवान समय बर्बाद कर देती हैं। प्रशांत भूषण का #VVPAT मामला शायद ऐसा ही एक ज्वलंत उदाहरण है। जो माननीय न्यायालय का बहुमूल्य समय को बर्बाद किया है।

प्राउड सेक्यूलर नाम के टवीटर हैंडल से लिखा गया है ” वीवीपैट की गिनती उन सभी मामलों में की जानी चाहिए जब प्रथम और द्वितीय के बीच अंतर 10,000 से कम हो”

Eakshashak: आईएमएचओ यह निर्णय गलत प्राथमिकताओं को दर्शाता है। ईवीएम से पहले भारत हर मतपत्र की मैन्युअल गिनती करने में सक्षम था। ईवीएम के अलावा अब भी ऐसा क्यों नहीं किया जाता?! चुनाव में देश का भविष्य दांव पर है, इसलिए हर किफायती सुरक्षा जाल तैयार रखें।

kamal mehta : कोर्ट का कीमती समय बर्बाद करने की कोई कीमत क्यों नहीं लगाई गई?? जब देश में अन्य अधिक गंभीर और आकस्मिक मुद्दे अनसुलझे पड़े हैं, जिनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है।

विश्व अनु: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दूसरे या तीसरे स्थान पर आने वाला हर उम्मीदवार ईवीएम की जली हुई मेमोरी की जांच की मांग कर सकता है और चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ टीम को इसकी जांच करनी होगी, लेकिन इसकी कीमत उम्मीदवार.को ही चुकानी होगी.

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