गौरेला
जिले में रेत खदानों की अनुपस्थिति के बावजूद खनिज विभाग द्वारा लगातार ट्रैक्टर जब्ती की कार्रवाइयाँ सामने आ रही हैं, जिससे आमजन और ग्रामीण क्षेत्रों के किसान व मजदूर तबका बेहद परेशान है। हाल ही में खनिज अधिकारी शबीना बेगम के नेतृत्व में 10 ट्रैक्टरों को अवैध खनिज परिवहन के नाम पर जब्त कर लिया गया।
विचारणीय बात यह है कि गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में वर्तमान में कोई भी वैध रेत खदान स्वीकृत नहीं है, ऐसे में सवाल उठता है कि जब खदान ही नहीं, तो रेत कहाँ से अवैध मानी जा रही है? क्या यह सिर्फ आम जनता को डराने-धमकाने और अवैध वसूली का तरीका नहीं?
कलेक्टर के निर्देश या अधिकारियों की मनमानी?
कलेक्टर लीना कमलेश मंडावी के निर्देशों की आड़ में चलाए जा रहे इस अभियान में खनिज विभाग की भूमिका सवालों के घेरे में है। जिस जिले में खदानों की वैधता ही नहीं, वहां आम लोगों द्वारा घरेलू निर्माण या निजी उपयोग के लिए लाई जा रही रेत को “अवैध परिवहन” कहकर जब्त करना, प्रशासन की तानाशाही को दर्शाता है।
नहीं मिल रहा न्याय, ग्रामीण बेहाल
ग्रामीणों का कहना है कि जिन ट्रैक्टरों को जब्त किया गया है, वे रेत का घरेलू उपयोग, जैसे मकान मरम्मत या छोटी-छोटी नालियों के निर्माण के लिए ले जा रहे थे। इन्हें पकड़कर थानों में रख दिया गया है और ट्रैक्टर मालिकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
प्रशासनिक दमन बनाम संवैधानिक अधिकार
विशेषज्ञों का कहना है कि बिना वैध खदान के खनिज अधिनियम लागू कर जब्ती की कार्यवाही करना कानूनी रूप से भी संदिग्ध है। यह न केवल संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन है, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है।
क्या आदिवासी बाहुल्य इस जिले में यह नया ‘शासनतंत्र’ है?
जिला प्रशासन और खनिज विभाग को चाहिए कि वे स्पष्ट रूप से जनता को बताएँ कि जब खदान ही नहीं है, तो रेत अवैध कैसे हो गई? क्या यह कार्रवाई केवल गरीबों और ग्रामीणों पर दबाव बनाने का एक हथकंडा है?