50 से 60 डेसीबल से अधिक ध्वनि सभी के लिए नुकसानदायक
जिला चिकित्सालय में किया गया मरीजों की निश्शुल्क जांच व परामर्श
आशुतोष चतुर्वेदी, ब्यूरो चीफ
दैनिक समाज जागरण
मऊ : प्रत्येक वर्ष तीन मार्च को विश्व श्रवण दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य मकसद लोगों को बहरेपन की समस्या के कारण और निवारण के प्रति जागरूक करना है। सीएमएस डा. एपी गुप्ता ने बताया कि तेजी से बढ़ते बहरेपन की समस्या से लोगों को जागरूक करने के लिए वर्ष 2007 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘विश्व श्रवण दिवस’ मनाने की घोषणा की थी। प्रारंभ में इसे ‘इंटरनेशनल ईयर केयर’ के नाम से मनाने की घोषणा की थी। वर्ष 2016 में इसे ‘वर्ल्ड हियरिंग डे’ यानी विश्व श्रवण दिवस का नाम मिला। इस अवसर पर जिला अस्पताल में विभाग में आने वाले मरीजों का निश्शुल्क जांच के साथ परामर्श दिया गया।
नाक कान और गला रोग विशेषज्ञ डा. सौरभ त्रिपाठी ने बताया कि कान का संक्रमण मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है। इसलिए समस्या होने पर तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। इलाज में देरी की वजह से लोगों में विभिन्न मानसिक बीमारियों अथवा अवसाद उत्पन्न होते है। बताया कि सामान्य तौर पर कान को 50 से 60 डेसीबल की ध्वनि सुनने की क्षमता होती है। इससे अधिक होने पर वह नुकसानदायक होती है। आमतौर पर बातचीत में 25 से 30 डेसीबल की ध्वनि ही निकलती है। अक्सर बढ़ती उम्र के साथ कान की नसें कमजोर होने से भी व्यक्ति विशेष बहरेपन का शिकार हो सकता है। शुरू-शुरू में पता ही नहीं चल पाता कि उसकी श्रवणीय क्षमता कम हो रही है। इसकी वजह से बीमारी कभी-कभी नियंत्रण से बाहर हो सकती है। 60 वर्ष से अधिक आयु के 33 प्रतिशत लोगों बहरेपन की शिकायत होती है, जब 74 वर्ष की उम्र में यह 50 फीसदी पाया जाता है। इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण, निरंतर बढ़ते ट्रैफिक का शोर, युवाओं में ईयरफोन से फास्ट म्यूजिक सुनना भी कानों पर बुरा असर पड़ता है। यदि दुर्घटना के दौरान शारीरिक चोट या झटका कान के करीब होता है तो यह चोट बहरेपन का कारण बन सकता है। इस अवसर पर आडियोलाजिस्ट देवराज और संत कुमार उपस्थित थे।