अनूपपुर : बनमली सृजन केंद्र अनूपपुर का कल भव्य शुभारंभ होने जा रहा है इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि शासकीय तुलसी महाविद्यालय से सेवा निवृत्त प्राचार्य श्री परमानंद तिवारी जी एवं शासकीय तुलसी महाविद्यालय से हिंदी विभाग की प्रोफेसर डॉ दीपक गुप्ता जी होंगे। इस अवसर पर काव्य पाठ के साथ साथ “हिंदी हमें जोड़ती है” विषय पर व्याख्यान होंगे। यह केंद्र कल से अपना कार्य प्रारंभ करते हुए आंचलिक प्रतिभाओं(रचनाकारों) को उभारने और प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें मंच प्रदान करने की कोशिश की जाएगी।
इस अवसर पर बनमली पत्रिका के सितंबर अक्टूबर अंक का विमोचन होगा। कार्यक्रम के पूर्व की गतिविधियों के तहत अनेक स्कूलों में निबंध लेखन, कविता, पेंटिंग, भाषण आदि प्रतियोगिताएं आयोजित की गई है। इन प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों को कार्यक्रम के दौरान पुरस्कार एवं प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे। वताते चलें वनमाली सृजन पीठ वनमाली जी की लेखन यात्रा से प्रेरित है, जो साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के लिए बनाया गया एक मानद उपक्रम है। ग्रामीण रचनाकारों को शहरी रचनाकारों के समान ही अवसर मिलना चाहिए, इस मूल अवधारणा पर आधारित यह उपक्रम सभाएँ, चर्चाएँ और अन्य साहित्यिक प्रवचन आयोजित करता है। वनमाली सृजन पीठ, हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के विस्तार के लिए लेखनरत साहित्यकारों को प्रतिष्ठित वनमाली राष्ट्रीय सम्मान, की परंपरा डाली है. इसमें वन्माली कथा शीर्ष सम्मान, राष्ट्रीय कथा सम्मान, प्रवासी भारतीय कथा सम्मान, तथा वनमाली विज्ञान कथा सम्मान एवं मध्य प्रदेश कथा सम्मान और युवा कथा सम्मान सहित पत्रकारिता सम्मान से अलंकृत किया जाता है. संपूर्ण भारतवर्ष में वनमाली सृजन पीठ की स्थापना की गई है सृजन पीठ मुख्यालय के माध्यम से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विकास के नये आयाम तय किए हैं. सुदूर ग्राम्यांचल एवं कस्बों के कला, साहित्य, संस्कृति एवं सामाजिक सरोकारों की गतिविधियों को बढ़ावा देने में निरंतर सक्रिय वनमाली सृजन केन्द्रो की स्थापना जिले एवं आंचलिक स्तर पर की गई है. जिसमें आंचलिक प्रतिभाओं को उभारने और राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है. सभी सृजन केंद्रों की आपसी गतिविधियों को साझा करने के लिए “वनमाली वार्ता पत्रिका” का प्रकाशन ऑनलाइन किया जा रहा है. वनमाली सृजन पीठ भोपाल ने अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव का आयोजन कर वैश्विक स्तर पर एक स्वर्णिम मुकाम बनाया है
वनमाली सृजन पीठ द्वारा स्थापित पुरस्कार एक कथाकार (श्री जगन्नाथ प्रसाद चौबे जी) की स्मृति को समर्पित है, जिन्होंने साहित्य और कार्यों के माध्यम से इन मूल्यों को बनाए रखने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। पुरस्कार के प्राप्तकर्ता का चयन दो साल की अवधि में हिंदी भाषा की कहानी और उपन्यास साहित्य में उनके योगदान के आधार पर किया जाता है।
उल्लेखनीय है चालीस से साठ के दशक के बीच ‘वनमाली हिन्दी के कथा जगत के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। 1934 में उनकी पहली कहानी ‘जिल्दसाज़’ कलकत्ते से निकलने वाले ‘विश्वमित्र’ मासिक में छपी और उसके बाद लगभग पच्चीस वर्षों तक वे प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं ‘सरस्वती’, ‘कहानी’, ‘विश्वमित्र’, ‘विशाल भारत’, ‘लोकमित्र’, ‘भारती’, ‘माया’, ‘माधुरी’ आदि में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे। अनुभूति की तीव्रता, कहानी में नाटकीय प्रभाव, सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक समझ और विश्लेषण की क्षमता के कारण उनकी कहानियों को व्यापक पाठक वर्ग और आलोचकों दोनों से ही सराहना प्राप्त हुई। आचार्य नंददुलारे बाजपेयी ने अपने श्रेष्ठ कहानियों के संकलन में उनकी कहानी ‘आदमी और कुत्ता’ को स्थान दिया था। करीब बीस वर्षों तक मध्यप्रदेश के अनेक विद्यालयों, महाविद्यालयों में वनमाली जी की कहानियाँ पढ़ाई जाती रहीं। उन्होंने करीब सौ से ऊपर कहानियाँ, व्यंग्य लेख एवं निबंध लिखे। कथा साहित्य के अलावा उनके व्यंग्य निबंध भी खासे चर्चित रहे हैं। आकाशवाणी इंदौर से उनकी कहानियाँ नियमित रूप से प्रसारित होती रहीं।
कथा साहित्य के अतिरिक्त ‘वनमाली’ जी का शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा। वे अविभाजित मध्यप्रदेश के अग्रगण्य शिक्षाविदों में थे। गांधी जी के आव्हान पर कई वर्षों तक प्रौढ़ शिक्षा के काम में लगे रहे। फिर शिक्षक, प्रधानाध्यापक एवं उपसंचालक के रूप में उन्होंने बिलासपुर, खंडवा और भोपाल में कार्य किया और इस बीच अपनी पुस्तकों के माध्यम से, शालाओं और शिक्षण विधियों में नवाचार के कारण और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् की समिति के सदस्य के रूप में शिक्षा जगत में उन्होंने महत्वपूर्ण जगह बना ली थी। 1962 में डाॅ. राधाकृष्णन के हाथों उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से विभूषित किया गया। वनमाली जी का जन्म 1 अगस्त 1912 को आगरा में हुआ। उन्होंने अपना पूरा जीवन मध्यप्रदेश में ही गुजारा और 30 अप्रैल 1976 को भोपाल में उनका निधन हुआ। उनका पहला कथा संग्रह ‘जिल्दसाज’ उनकी मृत्यु के बाद 1983 में तथा ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ के नाम से दूसरा संग्रह 1995 में प्रकाशित हुआ था। वर्ष 2008 में वनमाली समग्र का पहला खण्ड तथा वर्ष 2011 में संतोष चैबे के संपादन में ‘वनमाली स्मृति’ तथा ‘वनमाली सृजन’ शीर्षक से दो खण्ड और भी प्रकाशित हुए हैं।