कैट ने किराना स्टोर्स को निशाना बनाने वाले क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स द्वारा नियामक उल्लंघनों को उजागर करने के लिए आज जारी किया श्वेत पत्र
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने आज नई दिल्ली में एक श्वेत पत्र जारी किया, जिसमें क्विक कॉमर्स (QC) प्लेटफॉर्म्स जैसे ब्लिंकिट, इंस्टामार्ट, ज़ेप्टो, स्विगी आदि के उन कार्यों पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है, जो भारत की खुदरा अर्थव्यवस्था की नींव को कमजोर कर रहे हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए, कैट के राष्ट्रीय महामंत्री और चांदनी चौक के सांसद श्री प्रवीन खंडेलवाल ने इन प्लेटफार्म्स पर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) का दुरुपयोग कर आपूर्तिकर्ताओं पर नियंत्रण, इन्वेंटरी पर प्रभुत्व, और अनुचित मूल्य निर्धारण के लिए इस फंड का उपयोग करने के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि ये ऐसी रणनीतियाँ हैं जो एक असमान बाजार बनाती हैं, जहां 3 करोड़ किराना स्टोर्स का टिक पाना लगभग असंभव हो गया है।ये प्लेटफार्म छोटे खुदरा विक्रेताओं को बाजार से बाहर धकेलने का काम कर रहे हैं,” श्री खंडेलवाल ने कहा
कैट के राष्ट्रीय चेयरमैन शरी बृज मोहन अग्रवाल, ऑल इंडिया मोबाइल रिटेलर्स एसोसिएशन (Aimra) (एआईएमआरए) के चेयरमैन श्री कैलाश लख्यानी तथा प्रधान श्री अरविंदर सिंह, कैट दिल्ली के अध्यक्ष श्री विपिन आहूजा, और कैट के संयुक्त महासचिव श्री सुमित अग्रवाल सहित अन्य वरिष्ठ व्यापारिक नेता इस मौके पर उपस्थित थे।
श्वेत पत्र में यह विस्तार से बताया गया है कि कैसे QC कंपनियां एफडीआई नीति और भारत के प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उल्लंघन कर रही हैं। इन उल्लंघनों के साथ-साथ पारदर्शिता की कमी न केवल छोटे व्यवसायों को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि संपूर्ण खुदरा पारिस्थितिकी तंत्र को भी विकृत करती है। कैट ने नियामक निकायों से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया, ताकि QC प्लेटफॉर्म निष्पक्ष प्रथाओं का पालन करें और छोटे व्यापारियों के हितों की रक्षा की जा सके।
श्री खंडेलवाल ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री श्री पीयूष गोयल की हाल की टिप्पणियों का स्वागत किया, जिसमें उन्होंने क्यू कॉमर्स पर इसी प्रकार की चिंताओं को व्यक्त किया था। श्री गोयल ने कहा था कि ये अनुचित व्यापारिक कार्य किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे और स्थानीय किराना स्टोर्स के साथ QC प्लेटफॉर्म्स को जोड़ने पर जोर दिया जाये, जो कि व्यापारिक समुदाय के लिए अत्यधिक स्वागत योग्य कदम है।
एफडीआई नीति का उल्लंघन और एफडीआई का दुरुपयोग करके अनुचित मूल्य निर्धारण का फंडिंग
कैट राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया ने बताया कि श्वेत पत्र से पता चला है कि QC प्लेटफॉर्म्स, जो ₹54,000 करोड़ से अधिक की एफडीआई से समर्थित हैं, ने इस निवेश का उपयोग न तो बुनियादी ढांचा निर्माण में किया और न ही दीर्घकालिक परिसंपत्तियों में। इसके बजाय, वे इस एफडीआई का उपयोग संचालन में होने वाले घाटों को कवर करने, आपूर्ति श्रृंखला पर नियंत्रण रखने और कुछ चुनिंदा विक्रेताओं के माध्यम से अनुचित छूट की पेशकश के लिए कर रहे हैं। इस प्रकार के कार्यों ने QC प्लेटफॉर्म्स को वह बाजार हिस्सा हासिल करने में मदद की है, जो पहले किराना स्टोर्स के पास था, और इससे कई छोटे खुदरा विक्रेताओं के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।
अनुचित प्रथाएँ और नियामक उल्लंघन (जैन)
कैट के राष्ट्रीय संगठन मंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र जैन ने बताया कि श्वेत पत्र में QC प्लेटफॉर्म्स द्वारा किए जा रहे विभिन्न नियामक उल्लंघनों का उल्लेख किया गया है, जिनमें शामिल हैं:
1. बाजार तक सीमित पहुंच: QC प्लेटफॉर्म्स चुनिंदा विक्रेताओं के साथ विशेष सौदे कर स्वतंत्र खुदरा विक्रेताओं के लिए प्रतिस्पर्धा के अवसरों को सीमित करते हैं।
2. अनुचित मूल्य निर्धारण: एफडीआई द्वारा वित्त पोषित गहरी छूट से किराना स्टोर्स बाजार से बाहर हो रहे हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
3. पारदर्शिता की कमी: एफडीआई और प्रतिस्पर्धा विरोधी प्रथाओं के उल्लंघन को छिपाने के लिए, QC प्लेटफॉर्म्स विक्रेताओं की जानकारी छुपाते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को जानकारीपूर्ण चुनाव करने में कठिनाई होती है।
4. फेमा उल्लंघन: QC कंपनियाँ चुने हुए विक्रेताओं के माध्यम से इन्वेंटरी का अप्रत्यक्ष नियंत्रण रखती हैं, जो भारत की एफडीआई नीति के तहत निषिद्ध है और फेमा दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है।
प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उल्लंघन
श्वेत पत्र में यह भी कहा गया है कि QC प्लेटफॉर्म्स प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 का भी उल्लंघन कर रहे हैं। इनके विशेष विक्रेताओं के साथ किए गए समझौतों ने बाजार में प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता विकल्पों को सीमित कर दिया है:
1. प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौते: QC प्लेटफॉर्म्स आपूर्ति, मूल्य निर्धारण और वितरण पर नियंत्रण रखने के लिए ऊर्ध्वाधर समझौतों का उपयोग करते हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
2. प्रभुत्व का दुरुपयोग: ये प्लेटफॉर्म्स अपने प्रमुख बाजार स्थिति का दुरुपयोग करते हुए कीमतों में हेरफेर और इन्वेंटरी नियंत्रण का सहारा लेते हैं, जिससे स्वतंत्र विक्रेताओं को नुकसान होता है।
उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियमों, ई-कॉमर्स नीति एवं (एफ डी आई) के तहत नियमानुसार जांच कर कठोर कार्रवाई की जाए (कैट जबलपुर)
कैट ने QC प्लेटफॉर्म्स को जिम्मेदार ठहराने के लिए तत्काल नियामक हस्तक्षेप की मांग की, यह बताते हुए कि विदेशी पूंजी द्वारा संचालित इन प्लेटफॉर्म्स की अनियंत्रित वृद्धि भारत के छोटे खुदरा पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है। FDI नीति 2020 और फेमा अधिनियम 1999 का उल्लंघन इन QC प्लेटफॉर्म्स के संचालन की मुख्य समस्याएँ हैं, जो इन प्लेटफॉर्म्स को अस्थिर अनुचित मूल्य निर्धारण के लिए FDI का उपयोग करने देती हैं न कि परिसंपत्तियों के निर्माण या बुनियादी ढांचे के विकास के लिए।
उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियमों, ई-कॉमर्स नीति के तहत कठोर कार्रवाई की जाए (कैट जबलपुर)
कैट जबलपुर से संदेश जैन, जितेंद्र पचोरी, दीपक सेठी, सीमा सिंग चौहान, रोहित खटवानी, एवं मनु शरत तिवारी ने यह श्वेत पत्र पड़ा पढ़ने के बाद श्वेत पत्र से यह निष्कर्ष निकाला कि QC प्लेटफॉर्म्स खुलेआम एफडीआई नीति का उल्लंघन कर रहे हैं, नियामक दिशानिर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं, और प्रतिस्पर्धा विरोधी रणनीतियों में लिप्त हैं, जो किराना स्टोर्स और खुदरा पारिस्थितिकी तंत्र के भविष्य को खतरे में डालते हैं। कैट ने सरकार से उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियमों, ई-कॉमर्स नीति के माध्यम से सख्त निगरानी लागू करने और इन QC प्लेटफॉर्म्स को अधिक जवाबदेही के साथ संचालित करने का आह्वान किया, ताकि भारत के खुदरा क्षेत्र की अखंडता बनी रहे।
क्या खुदरा व्यवस्था को कमजोर करने वाली ई-कामर्स पर सरकार कसेगा शिकंजा।।
आन लाइन ई-कामर्स जहाँ एक तरफ लोगों के लिए अति सुविधा का केन्द्र बना हुआ है वही दूसरी तरफ समाजिक ताने बाने के साथ ही खुदरा व्यवसायी को कमजोर किया है। जबसे अमेजन-फ्लिपकार्ट जैसी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों ने रिटेल कारोबार में कदम रखा है. पड़ोस वाले अंकल की दुकान सुस्त पड़ गई और उन्हें यही चिंता खाए जा रही कि कहीं घाटे में आकर दुकान बंद न करना पड़े. इसे लेकर लगातार विरोध भी जताया जा रहा है और अब आखिरकार सरकार ने इस पर ध्यान दिया और छोटे दुकानदारों का बिजनेस बचाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लूपहोल को बंद करने की तैयारी में है. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ग्राहकों को इससे लाभ होगा ?
आलोक दिवाकर ने बताया कि इस त्योहार सीजन में ऑनलाइन कंपनियों में कई तरह के लुभाने ऑफर तो दिए लोगों को कम रेट पर सामान भी दिया लेकिन 80% लोगों के आर्डर कैंसिल कर दिए गए अगर वह सबको इतने सस्ते में सामान दे देते तो साल में ऑनलाइन कंपनियों का नुकसान जो अभी 500 से 1000 करोड़ तक होता है वह करीब नुकसान 50 से 60 करोड रुपए तक का हो जाता हम किसी भी ऑनलाइन कंपनी के व्यापार बंद करने की बात नहीं करते पता करने की बात करते हैं अच्छे तरीके से व्यापार करने की बात करते हैं लोगों को गुमराह करने की बात नहीं होनी चाहिए एक दिन में कुछ रेट दूसरे दिन में कुछ रेट हो जाता है इस तरीके की भिन्नताएं नहीं होनी चाहिए, आखिर यह एक जांच का विषय तो हो ही सकता है
आलोक दिवाकर
9424941666
हम व्यापारी है किसी भी व्यापारी का व्यापार बंद करवाना नहीं चाहते (सेठी)
दीपक सेठी ने बताया कि ऑनलाइन कंपनियों जिस तरीके का व्यापार में बनाए गए नियमों का सारे आम उल्लंघन करके व्यापार कर रहे हैं उसे पर जांच भी चल रही है, सच सामने आ चुका है सेठी ने बताया कि जल्द ही कुछ ऑनलाइन कंपनियों के अधिकारियों से भी पूछताछ होने वाली है, उन्होंने बताया कि कोई भी व्यापारी एक तरह का व्यापार करता है या 25 से 50 आइटम का व्यापार करता है लेकिन वह खुद भी तो उपभोक्ता है, हर घर में महीने के कम से कम 100 सवा सौ आइटम्स का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे हर आदमी खरीदता है, और वह चाहता है कि उसे कम से कम कीमत में अच्छा समान मिले, लेकिन जिस तरीके से ऑनलाइन कंपनियों कभी कुछ ऑफर्स देकर अभी रेट पर सामान सेल कर देती है, कुछ समय बाद ही सेम टाइम पर अलग-अलग ऑनलाइन कंपनियों के प्राइस में भी भिन्न बताएं रहती हैं, तो ऐसा क्यों होता है, कुछ ऑनलाइन कंपनियों में ऑफर्स किसी-किसी इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स में 5000 से 10000 तक का डिस्काउंट देते हैं वही दो से तीन दिन बाद वापस कर अपने पुराने रेट (बड़े हुए दाम) में सामान भेजने लगते हैं, इससे आम उपभोक्ता बड़ा कंफ्यूज रहता है वह सोचता है कि मैन लाइन (खुदरा व्यापारी) व्यापारी शायद 5 से ₹10000 इस आइटम्स में कमा रहे हैं जबकि ऐसा होता नहीं है हमारी लड़ाई इस तरह की भिन्नताओं के खिलाफ है,