दिवाकर पाठक,हजारीबाग( कंडाबेर), झारखंड
जमशेदपुर में पदस्थापित सब इंस्पेक्टर राजीव सर पुलिस सेवा के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए फ्री ऑनलाइन प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं,जो बड़ा ही नेक कार्य है। शास्त्र कहता है की विद्या धनम् सर्व धनम् प्रधानम्। उसी प्रकार विद्या दानम् सर्व दानम् प्रधानम्। ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि वास्तव में विद्या से बड़ा कोई धन नहीं है और विद्या दान से बड़ा कोई दान नहीं। जो व्यक्ति धन दान करता है वह धनवान के यहां जन्म लेता है और जो व्यक्ति विद्या दान करता है वो देवता के यहां जन्म लेता है। इसलिए विद्या दान स्वयं में एक अनूठा दिव्य संकल्प है।
अब हम शीर्षक के साहित्य को प्रस्तुत करते हैं। इसका साहित्य कहता है की पुलिस सेवा के साथ राजीव सर परीक्षार्थियों को फ्री ऑफ कॉस्ट प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी भी करवाते हैं। मतलब विद्या दान की महता का साक्षात्कार। हम ये समझें की इस सेवा के साथ इन्होंने एक नेक कार्य की नींव रखी है। पुलिस सेवा के साथ इस कार्य की गति को गतिमान रखना चुनौती भरा कार्य है। पर जब व्यक्ति किसी नेक कार्य की नींव रखता है,तो उसे पूरा करने की जिम्मेवारी परमात्मा की होती है। परमात्मा कहते हैं की तुम एक कदम चलो तो मैं तुम्हें सौ कदम आगे ले चलूंगा। और यही जीवन की सच्चाई भी है। जो लोग वाकई में शीर्ष पर होते हैं वो कहीं न कहीं उनके नेक कार्य का इनाम ही होता है,जिसे परमात्मा पूर्ण करते हैं। राजीव सर का व्यक्तित्व वाकई में विशाल और समृद्ध है और यही उनकी मुस्कुराहट का राज है। जहां वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हर ओर पैसे की बात हो,वैसे में इनके नेक कार्य की क्या कीमत लगाई जा सकती है? इनका कार्य तो स्वयं में अद्भुत और अनमोल है। जरा गौर करें,जो गरीब तबके के लोग हैं,वे बेचारे किस प्रकार अपने बच्चों को प्रतियोगिता की तैयारी करवाएं। वे बड़े शहरों के बड़े संस्थानों में बड़ी फीस अदा नहीं कर सकते। खासकर वैसे लोगों के लिए राजीव सर किसी वरदान से कम नहीं। यही है हमारे राजीव सर का राज जो सामाजिक सरोकार को सिद्ध करता है। इनके इस नेक कार्य से हर किसी को सिख लेने की जरूरत है। वाकई में परोपकार की सच्ची परिभाषा यही है। एक बात मान कर चलें की पैसा बहुत कुछ होता है पर सब कुछ नहीं होता। परमात्मा ने यहां आपको नेक कार्य करने के लिए ही भेजा है। जो लोग अनैतिक कार्य को करके तरक्की की राह को अपनाते हैं,वो वास्तव में तरक्की नहीं,बल्कि गर्त में समाहित होने की यात्रा है। इसलिए सावधान रहें,सजग रहें और नेक कार्य की नींव रखें। तभी जीवन यात्रा का समुचित फल प्राप्त हो सकेगा। वरना! आना और जाना तो इस मृत्युलोक का काम है। इसलिए कुछ ऐसा करें जो जीवन के साथ और जीवन के बाद भी स्मरणीय हो सके। मतलब हम ऐसा कार्य करें,जिससे इस लोक के साथ-साथ परमार्थ भी बन सके। यही जीवन का मुख्य सार तत्व है।