*क्या आपने कभी खुद को लगातार तलाश करते हुए पाया है—नई संभावनाओं के लिए, नए रास्तों के लिए, जीवन में “सफल” होने के नए तरीकों के लिए?*
रिपोर्ट: रविंद्र आर्य
हम लगातार प्रयास करते हैं—सफलता, स्पष्टता और सुख पाने के लिए। परंतु, इतने प्रयासों के बावजूद भी कभी-कभी परिणाम शून्य ही रह जाते हैं। हम ज़ोर लगाते हैं, मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी दरवाज़े बंद ही रहते हैं। कई बार एक दिशा में असफलता मिलने के बावजूद हम उसी रास्ते पर चलते रहते हैं, बिना रुके, बिना पूछे—क्या यह मार्ग वास्तव में मेरे लिए है?
ऐसे क्षणों में हम ईश्वर से भी नाराज़ हो जाते हैं—कि सब कुछ क्यों नहीं ठीक हो रहा। हम संघर्ष में इतने उलझ जाते हैं कि यह नहीं समझ पाते: कई बार ठहराव असफलता का नहीं, दिशा-परिवर्तन का संकेत होता है। हो सकता है वह मार्ग हमारे लिए बना ही न हो। शायद जीवन हमें इशारा दे रहा हो कि हम धारा के विरुद्ध तैरना बंद करें। वहीं से सच्ची बुद्धिमत्ता शुरू होती है—छोड़ देने में। एक गहरी साँस लेने में, पीछे हटकर जीवन या ईश्वर की योजना को स्वीकार करने में। यह सब्र, आत्मसमर्पण और यह समझने की बात है कि कोई उच्चतर लय कार्य कर रही है।
जैसा कि श्रीमद्भगवद्गीता (18.66) में स्पष्ट रूप से कहा गया है:
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥”
“सब धर्मों को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा; शोक मत करो।”
यह सर्वोच्च आह्वान है आत्मसमर्पण का—यह आग्रह कि हम अपनी बेचैन खोज, पकड़ और योजना बनाना बंद करें और ईश्वर पर पूर्ण विश्वास करें।
आध्यात्मिक यात्रा वास्तव में वहीं से आरंभ होती है जब हम जीवन को जबरन ढालने का प्रयास छोड़कर, उसे सहज भाव से स्वीकार करना शुरू करते हैं।
*एक जीवंत और ऐतिहासिक उदाहरण है—भगवान बुद्ध का।*
बुद्ध ने भी संपूर्ण ज्ञान, तप और साधना के मार्ग पर वर्षों तक प्रयास किया। उन्होंने कठोर तपस्या की, ज्ञान की खोज की—परंतु जब उन्होंने यह सब छोड़ कर, शांति से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर समर्पण किया, तभी उन्हें बोधि (ज्ञान) प्राप्त हुआ। सत्य उसी मौन स्वीकार में प्रकट हुआ।
भगवान महावीर, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, ने भी सभी भौतिक वस्तुओं और पारिवारिक संबंधों का त्याग कर आत्मज्ञान की खोज की। परंतु यह त्याग केवल धन का परित्याग नहीं था, बल्कि ईश्वर की इच्छा में पूर्ण समर्पण था। उन्होंने जाना कि बाहरी सफलता और भौतिक उपलब्धियाँ अंततः केवल दुख ही देती हैं। उन्होंने गहन ध्यान और आत्म-अनुशासन द्वारा केवलज्ञान प्राप्त किया और अपने अनुयायियों को सिखाया कि सच्चा शांति तब मिलती है जब हम बाह्य दुनिया में खोज करना छोड़कर आत्मा की ओर मुड़ते हैं।
अनेक जैन आचार्यों और संतों का जीवन इस सत्य की पुष्टि करता है—कि जब हम बाहरी सुख की तलाश छोड़ते हैं और भीतर की ओर मुड़ते हैं, तभी जीवन की सच्ची राह खुलती है।
जैसे भगवान महावीर, आचार्य भद्रबाहु और अन्य संतों ने दिखाया—असली शांति केवल तब मिलती है जब हम छोड़ना सीखते हैं, संयम अपनाते हैं, और स्वयं के भीतर सत्य को खोजते हैं।
असली मार्ग—जो हमें हमारे आत्मस्वरूप की ओर ले जाता है—अक्सर तभी शुरू होता है जब हम बाहरी खोज रोक देते हैं और भीतर झाँकते हैं।
जब हम जबरदस्ती योजनाएँ बनाना छोड़ देते हैं और जीवन की गहरी बुद्धि को प्रकट होने देते हैं।
समर्पण कमजोरी नहीं है; यह सबसे बड़ी शक्ति है—विश्वास की शांत और स्थिर ऊर्जा।
अगर आप आज जीवन में लगातार संघर्ष कर रहे हैं—बिना शांति के—तो क्षमा करें, पर क्या मैं आपसे निवेदन कर सकता हूँ: एक पल रुकिए? अपनी कस कर पकड़ी हुई चीज़ों को थोड़ा ढीला छोड़िए। यह भरोसा रखिए कि ब्रह्मांड की अपनी समय-सीमा और दिशा होती है। अक्सर असली यात्रा तभी शुरू होती है जब हम खोज बंद करते हैं—और मात्र होने लगते हैं।
*स्टीव जॉब्स का जीवन भी यही संदेश देता है।*
जब उन्हें एप्पल से निकाला गया, तो यह उनके लिए बहुत बड़ा आघात था। परंतु उन्होंने जबरदस्ती वापसी करने की कोशिश नहीं की। उन्होंने जीवन को अपने ढंग से बहने दिया—नेक्स्ट और पिक्सार की स्थापना की। फिर वही जीवन उन्हें पुनः एप्पल तक ले गया, जहाँ उन्होंने अपने जीवन का सबसे महान कार्य किया। कई बार विलंबित रास्ता ही असली रास्ता होता है।
*मैंने भी यह रास्ता जिया है।*
ऐसे समय थे जब मैं भी लगातार उत्तर खोज रही थी—दिशा, लक्ष्य और कुछ ऐसा जो हाथ नहीं आ रहा था। परंतु जब मैंने रुकना सीखा, समर्पण किया, और जीवन की धारा पर भरोसा किया, तभी स्पष्टता आने लगी।
चाहे वह मेरे पिता को खोने का दुःख रहा हो, या जीवन की छोटी-छोटी दैनिक लड़ाइयाँ—मैंने अनुभव किया कि सच्ची शांति दौड़ने में नहीं, बल्कि विश्वासपूर्वक रुकने में मिलती है।
यदि आप भी लगातार खोजते हुए थक चुके हैं, तो मैं आपसे केवल इतना कहूँगी:
एक क्षण ठहरिए। छोड़ दीजिए उस कसावट को। भरोसा रखिए—ब्रह्मांड जानता है कि आपको किस राह पर ले जाना है।
लेखिका
डॉ. तनु जैन, सिविल सेविका एवं आध्यात्मिक वक्ता
रक्षा मंत्रालय
