एड्स से भी अधिक खतरनाक है एमडीआर व एक्सडीआर टीबी

वीरेंद्र चौहान, समाज जागरण ब्यूरो किशनगंज।
किशनगंज 07 अक्टूबर |
चिकित्सक किसी भी बीमारी में दवाओं का पूरा कोर्स करने की नसीहत देते हैं। यह नसीहत तब अधिक जरूरी हो जाती है, जब बीमारी गंभीर हो। ऐसा ही हाल टीबी के मामले में भी होता है। टीबी के मरीजों को इलाज के दौरान दवाओं का कोर्स पूरा करने के लिए कहा जाता है। उसके बावजूद कई लोग लापरवाही के कारण दवाओं का नियमित सेवन नहीं करते हैं, जिसकी बदौलत वे मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एमडीआर) और एक्सटेंसिव ड्रग रेजिस्टेंट(एक्सडीआर) स्टेज पर पहुंच जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि टीबी का ही बिगड़ा हुआ रूप एमडीआर टीबी है। इसके बैक्टीरिया पर टीबी की सामान्य दवाएं नाकाम हो जाती हैं। आम टीबी कुपोषित या कमजोर शरीर वाले को अपनी गिरफ्त में लेती है, लेकिन एमडीआर टीबी यह भेद नहीं करती। यह हर वर्ग के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकती है। लेकिन, अब एमडीआर और एक्सडीआर टीबी का इलाज भी असान हो चुका है।
टीबी की खतरनाक श्रेणी एक्सडीआर
सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया, जब एमडीआर टीबी के रोगी की दवा शुरू करने के छह माह बाद भी रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो वह एक्सडीआर टीबी की श्रेणी में आ जाते हैं। टीबी की खतरनाक श्रेणी एक्सडीआर है। इससे सावधानियां बरतने की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसके लिए दवा नियमित लेनी होती है। लेकिन, एमडीआर व एक्सडीआर टीबी के मरीजों के लिए राहत की खबर यह है कि अब इन मरीजों को ठीक होने के लिए 24 माह नहीं, बल्कि 9 से 11 माह ही दवा खानी पड़ती है। एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीजों के लिए सबसे महंगी दवा बेडाक्विलीन उपलब्ध होने के बाद यह संभव हुआ है। उन्होंने बताया पूर्व में इनके इलाज में काफी लंबा समय लगता था, लेकिन अब एक साल से भी कम समय में मरीज टीबी के इन श्रेणियों से भी निजात पा जाते हैं।
टीबी के मरीज सावधानियां बरतें और नियमित दवाओं का सेवन करें :
जिला यक्ष्मा नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मंजर आलम ने बताया की जिले में एक्सडीआर श्रेणी में मरीजो की संख्या शून्य हैं। जब एमडीआर श्रेणी वाले मरीज जब लापरवाही बरतने लगते है, नियमित दवा का सेवन नहीं करते है वो ही एक्सडीआर की चपेट में आ जाते हैं। टीबी के प्रति लापरवाही बरतना खतरनाक साबित हो सकता है। जो भी टीबी के मरीज हैं वो सावधानियां बरतें और नियमित दवा का सेवन करते रहें । एमडीआर श्रेणी भी खतरनाक है, इसके जिले में 20 मरीज हैं । इसके प्रति भी लापरवाही ठीक नहीं है। उन्होंने बताया, इलाज के क्रम में लापरवाही ही इन समस्याओं की जड़ है। एमडीआर का खतरा टीबी के वे रोगी जो एचआइवी से पीड़ित हैं, जिन्हें फिर से टीबी रोग हुआ हो, टीबी की दवा लेने पर भी बलगम में इस रोग के कीटाणु आ रहे हैं या टीबी से प्रभावित वह मरीज जो एमडीआर टीबी रोगी के संपर्क में रहा है, उसे एक्सडीआर टीबी का खतरा हो सकता है।
टीबी मरीजों के लिए काफी मददगार है “निक्षय पोषण योजना” :

सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया की टीबी मरीजों को इलाज के दौरान पोषण के लिए 500 रुपये प्रतिमाह दिए जाने वाली निक्षय पोषण योजना बड़ी मददगार साबित हुई है। नए मरीज मिलने के बाद उन्हें 500 रुपये प्रति माह सरकारी सहायता भी प्रदान की जा रही है। टीबी मरीज को आठ महीने तक दवा चलती है। इस आठ महीने की अवधि तक प्रतिमाह पांच 500-500 रुपये दिए जाएंगे। योजना के तहत डीबीटी के माध्यम से राशि सीधे बैंक खाते में भेजी जाती है। वहीं टीबी मरीजों के नोटीफाइड करने पर निजी चिकित्सकों को 500 रुपये तथा उस मरीज को पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद भी निजी चिकित्सकों को 500 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। वहीं ट्रीटमेंट सपोर्टर को अगर कोई टीबी के मरीज छह माह में ठीक हो गया है तो उसे 1000 रुपये तथा एमडीआर के मरीज के ठीक होने पर 5000 रुपये की प्रोत्साहन दी जाती है। अगर कोई आम व्यक्ति भी किसी मरीज को सरकारी अस्पताल में लेकर आता है और उस व्यक्ति में टीबी की पुष्टि होती है तो लाने वाले व्यक्ति को भी 500 रुपये देने का प्रावधान है।

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