शहादत की अनोखी मिसाल मुहर्रम: फिरोज आलम नदवी

पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन की कर्बला की जंग में परिवार और दोस्तों के साथ हत्या कर दी गई थी। उन्होंने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी जान देकर इस्लाम धर्म को नया जीवन प्रदान किया था।

शंकरपुर/डा. रूद्र किंकर वर्मा।

मुहर्रम इस्लाम धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें दस दिन इमाम हुसैन के शोक में मनाए जाते हैं। जिसे गम का महीना भी कहा जाता है। इस दिन को रोज-ए-अशुरा भी कहते हैं।
उक्त बात फैसल एजुकेशनल सोसायटी शंकरपुर के चेयरमैन जनाब फिरोज आलम नदवी ने कही। उन्होंने कहा कि शहादत की अनोखी मिसाल यह मोहर्रम आज कर्बला के शहीदों को याद करने का भी दिन है। अगर पूरे मोहर्रम महीने की बात करें तो इसी महीने में मुसलमानों के आदरणीय पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब, मुस्तफा सल्लाहों अलैह व आलही वसल्लम ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था। इस पूरे महीने का सबसे अहम दिन होता है, 10वां मुहर्रम, जो आज यानी 17 जुलाई को मनाया जा रहा है। 680 ईस्वी में इसी दिन पैगंबर ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन की कर्बला की जंग परिवार और दोस्तों के साथ हत्या
कर दी गई थी। मान्यता है कि उन्होंने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी जान दी थी। इस दिन पैगंबर मुहम्मद साहब के नाती की शहादत तथा करबला के शहीदों के बलिदानों को याद किया
जाता है। करबला के शहीदों ने इस्लाम धर्म को नया जीवन प्रदान किया था। गम के इस महीने में 10वें मुहर्रम पर शिया समुदाय के लोग काले कपड़े पहनकर सड़कों पर जुलूस निकालते हैं और ‘या हुसैन’ का नारा लगाते हुए मातम मनाते हैं, वहीं दूसरी ओर सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में दो दिन रोजा रखते हैं।
गम के इस महीने में 10वें मुहर्रम पर शिया मुस्लिम काले कपड़े पहनकर सड़कों पर जुलूस निकालते हैं और मातम मनाते हैं। इस दौरान वह ‘या हुसैन या हुसैन’ का नारा भी लगाते हैं। वह इस बात पर जोर देते हैं कि हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी जान दी, इसलिए उनके सम्मान में मातम मनाते हैं। शिया मुस्लिम 10 दिन तक अपना दुख दिखाते हैं। वहीं दूसरी ओर सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में दो दिन (9वें और 10वें या 10वें और 11वें दिन) रोजे रखते हैं। शिया और सुन्नी दोनों ही कुरान और प्रोफेट मोहम्मद में विश्वास रखते हैं। दोनों ही इस्लाम की अधिकतर बातों पर सहमत रहते हैं। दोनों में फर्क इतिहास, विचारधारा और लीडरशिप से जुड़ा हुआ है।