अतिक्रमण पर मुंबई हाईकोर्ट की फटकार, फुट पथ पर कब्जा नही कर सकते अनधिकृत फेरीवाले।

लखनऊ पुलिस की मांग, हमे भी मिले अतिक्रमण हटाने का अधिकार,

समाज जागरण डेस्क

अतिक्रमण पर अपनी अपनी डफली अपनी अपनी राग। मुंबई हाईकोर्ट ने यह कहते हुए नगर निकाय एवं नगर निगम को फटकार लगाई है कि अनधिकृत फेरीवाले फुट पाथ पर कब्जा नही कर सकते है। इन्हे सार्वजनिक सड़को पर कब्जा करने की अनुमति नही दी जा सकती है। हाईकोर्ट ने इन समस्या के समाधान के लिए अस्थायी बाजार अथवा अन्य विकल्प पर काम करने का सुझाव दिया है।

न्यायमूर्ति जी.एस. पटेल और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने इस मामले की अध्यक्षता की, जिसे पिछले साल शहर भर में अवैध विक्रेताओं के बड़े पैमाने पर बढ़ते मुद्दे को संबोधित करने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान लेते हुए शुरू किया गया था।

अदालत ने कहा कि यह “अकल्पनीय है कि एक बिना लाइसेंस वाला स्ट्रीट वेंडर सार्वजनिक सड़क पर स्थायित्व का दावा कर सकता है और इसकी अनुमति दी जा सकती है, इस प्रकार पैदल चलने वालों और अन्य दर का भुगतान करने वाले नागरिकों या दर भुगतान करने वालों के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 के अधिकार प्रभावित होंगे।”

अदालत ने याचिका में उठाए गए मूल प्रश्न, “यह शहर किसके लिए है?” पर विचार किया। अदालत के अनुसार यह प्रश्न शहर की सीमित भूमि के कारण उठता है, जिससे प्रतिस्पर्धी हित पैदा होते हैं। पैदल यात्री, वाहन मालिक, दुकानदार, व्यापारी और रेहड़ी-पटरी वाले सभी इस जगह में हिस्सेदारी के लिए होड़ करते हैं।

पीठ ने 3 मई, 2019 के पिछले आदेश का हवाला दिया, जिसमें फुटपाथों पर अतिक्रमण हटाने के बाद भी उसकी पुनरावृत्ति पर प्रकाश डाला गया था, और फुटपाथों को साफ बनाए रखने और अतिक्रमणकारियों को वापस लौटने से रोकने के लिए पुलिस अधिकारियों को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। पुलिस आयुक्त को इस आशय का सभी बीट मार्शलों को कार्यालय आदेश जारी करने का निर्देश दिया गया। अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 19 के तहत एक बिना लाइसेंस वाले विक्रेता का सार्वजनिक स्थान पर अधिकार दूसरों की कीमत पर स्थायी कब्जे को उचित नहीं ठहरा सकता है।

अनुच्छेद 19 आजीविका अधिकारों के विनियमन की अनुमति देता है, अनुच्छेद 19(2) से 19(6) में निर्दिष्ट प्रतिबंधों के साथ, आम जनता के लिए विचार भी शामिल हैं। सार्वजनिक स्थानों पर स्थायित्व का दावा करना दूसरों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करता है। नगर पालिकाओं के पास आम भलाई के लिए सार्वजनिक स्थानों को विनियमित करने का अधिकार है। इसलिए, मुंबई में सार्वजनिक भूमि पर विशेष कब्जे का दावा करना तर्कसंगत नहीं है। अदालत ने आगे कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि फुटपाथों के पैदल उपयोग के अधिकार से समझौता नहीं किया जा सकता है।”

पुलिस को चाहिए अतिक्रमण हटाने का अधिकार

वही यूपी पुलिस ने सरकार से अतिक्रमण हटाने के लिए अधिकार दिए जाने की मांग की है। पथ विक्रेता अधिनियम 2014, और उत्तर प्रदेश पथ विक्रेता नियमावली 2017 के तहत पुलिस अवैध तरीके से लगे पटरी दुकानदारों को भी नही हटा सकती है बल्कि उनके भी सुरक्षा करने का दायित्व पुलिस पर है भले ही सड़क जाम ही क्यों न हो।

पैदल चलने वालों के लिए अधिनियम

ट्रैफिक के नियम पैदल चलने वालों की सुरक्षा को देखते हुए बनाए गए हैं. ट्रैफिक नियमों में फुटपाथ और उस पर चलने वाले लोगों के लिए स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं. मोटर व्हीकल एक्ट 1988 फुटपाथ पर किसी भी तरह की गाड़ी चलाने से रोकता है. फुटपाथ को सिर्फ पैदल चलने वालों के लिए बनाया गया है. उस पर किसी भी प्रकार के कब्जा नही होनी चाहिए।

पैदल चलने वालों की सुरक्षा को लेकर कानून
इंडियन पीनल कोड (1860) का सेक्शन 279 (1), 304, 336 (2), 337 और 338 पैदल चलने वालों को रैश और खतरनाक ड्राइविंग करने वालों से बचाता है. एक्सीडेंट होने की स्थिति में ड्राइविंग करने वाले के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज हो सकता है.

सवाल उठता है कि सिर्फ कानून बना देना ही काफी है या उसके पालन भी होनी चाहिए। नगर निगम, नगर पालिका, नगर निकाय और प्राधिकरण फुट-पाथ को पैदल चलने वालो के लिए सुरक्षित रखने मे नाकाम रही है वही पुलिस के पास मे अधिकार नही है कि फुट-पाथ पर कब्जा करने वालों पर कार्यवाही करें। यही कारण है कि फुट-पाथ पर कही गाड़ी पार्किंग तो कही दुकानदारों के जेनरेटर लगे होते है। कही दुकानदारों के समान पड़े होते है तो कही ठेली पटरी वालों के दुकान लगे होते है। जिनमे कई अस्थायी तो कई स्थायी तौर पर भी होते है।

पथ विक्रेता अधिनियम नगर निगम को पथ विक्रेताओं के लिए वेंडिंग जोन बनाने और उसे व्यवस्थित करने का अधिकार दिया गया है। पथ विक्रेता होना सबसे आसान राह है इसलिए अब दुकानदार भी अपना दुकान बंद करके फुट-पाथ पर दुकान चलाना ज्यादा उचित समझते है। दुकानों के हजार झंझट से तो अच्छा है कि नगर निगम और पुलिस को कुछ दे लेकर ही काम चल जाये। यही कारण है कि देश के विभिन्ना शहरों नगर निगमो, नगर पालिकाओं एवं प्राधिकरण के क्षेत्र मे रेहड़ी पटरी वालों को संख्या दिन दूनी और रात चौगुनी के हिसाब के बढ़ते जा रहे है। अगर आने वाले समय मे इसको व्यवस्थित नही किया गया तो ट्रैफिक की समस्या और भी गंभी हो सकता है।

दुकान के बाहर लगने वाली दुकान के लिए जितना नगर निगम जिम्मेदार है उतना ही वहाँ के दुकानदार भी है। नोएडा सेक्टर 27 और सेक्टर 10 जैसे जगहों पर तो दुकानदारों ने ही दुकान के बाहर फुट-पाथ पर दुकान लगवाते है। यही कारण है कि वह लोग कभी अवैध अतिक्रमण का विरोध नही करते है।

देश के तमाम शहरों मे जाम से मुक्ति के लिए कई बार रास्ते को बदल दिए जाते है लेकिन फुट-पथ विक्रेता वहाँ भी पहुँच जाते है यह कहते हुए कि रास्ता बदल जाने के कारण उनका काम नही चल रहा है।

हिन्दुस्तान मे छपी खबरों के मुताबिक अकेले यूपी के राजधानी लखनऊ मे ही 1.5 लाख से ज्यादा स्ट्रीट वेंडर है। जिसमे से नगर निगम के द्वारा मात्र 10 हजार वेंडर 370 वेंडर को लाइसेंस दिया गया है। बांकि 1 लाख 40 हजार से ज्यादा वेंडर के लिए अभी वेंडिंग जोन बनाना बांकि है उनको लाइसेंस देना बांकि है। उम्मीद है कि जब तक इनके लिए वेंडिंग जोन बनेंगे शहर मे 40 हजार से ज्यादा नये वेंडर तैयार हो जायेंगे। इसके साथ ही यह भी देखने को मिलता है कि वेंडिंग जोन खाली है और वेंडर बीच सड़क, ट्रैफिक लाइट और कार्नर पर अपना जमावड़ा बनाए हुए है।

क्या पुलिस को अधिकार मिलने से मिलेगी जाम से मुक्ति

माना जा रहा है कि अगर पुलिस को फुट-पाथ और सड़क से फेरीवालों को हटाने का अधिकार दिया जाय तो जाम से मुक्ति का रास्ता निकल सकता है। हिंदुस्तान मे छपी खबरों के मुताबिक यूपी पुलिस ने कहा है कि अब पुलिस को नगर निगम की तरह ही अतिक्रमण हटाने, अवैध स्ट्रीट वेंडर का समान जब्त करने और वेंडिंग जोन घोषित करने का अधिकार दिया जाय। नगर विकास के पथ विक्रेता अधिनियम 20/21 मे संशोधन कर यह अधिकार पुलिस को दिए जाने की मांग की गई है। जेसीपी कानुन व्यवस्था उपेन्द्र कुमार अग्रवाल ने पुलिस आयुक्त एसबी शिरडकर को यह प्रस्ताव भेजा है। कमीशनर के जरिये यह प्रस्ताव डीजीपी और फिर शासन को भेजा जायेगा।

जेसीपी ने अपने पत्र मे विन्दूवार समीझा करते हुए लिखा है कि पुलिस को इन अधिकारों की जरुरत क्यो है । पत्र मे लिखा है कि व्यापार मंडलों और नागरिकों द्वारा कई बार अतिक्रमण का मुद्दा उठाया जाता रहा है। जेसीपी ने साफ शब्दों मे लिखा है कि ज्यादा अतिक्रमण पटरी दुकानदारों व स्ट्रीट वेंडरों का है। नगर निगम अतिक्रमण हटाता है, बाद मे ये सब दोबारा काबिज हो जाते है। ऐसी स्थिति मे सब पुलिस से ही अपेक्षा रखते है कि अतिक्रमण को हटाकर कार्यवाही करें जबकि अधिनियम के द्वारा पुलिस के हाथ को बांध दिया गया है उसके पास मे अतिक्रमण हटाने या कार्यवाही करने का कोई अधिकार ही नही है। जबकि शासनादेश होते है कि अतिक्रमण होने पर थाना प्रभारी जिम्मेदार होंगे। आखिर बिना अधिकार के कार्यवाही पुलिस कैसे कर सकती है।

माना जाता है कि नगर निगम, नगर पालिका हो या फिर नगर निकाय, या हो विकास प्राधिकरण, उनका अपना ही नियम चलता है। कुछ दूरी पर ही अतिक्रमण हो रहा होता है और नगर निगम, नगर पालिका विकास प्राधिकरण वाले इससे बेखबर रहते है। ऐसा नही होता है कि उनको खबर नही होता है लेकिन गांधी के पुजारियों के वर्चस्व और लोकल नेताओं के नेतागिरी के सामने नतमस्तक होते है। यही कारण है कि गली तो क्या सड़क पर लोग कई कई मंजिल के दुकान बना लेते है। कार्यवाही के नाम पर सिर्फ दिखावा होता है या फिर कोर्ट केस। मुंबई हाइकोर्ट ने कहा है कि किसी भी कीमत पर फुट-पाथ पर अवैध या वैध वेंडर का सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा करने की अनुमति नही दी जा सकती है, लेकिन नोएडा मे हजारों के संख्या मे ऐसे केस है जो कि न्यायालय ने अवैध को वैध बना दिया है और नोएडा प्राधिकरण को उसे स्थायी करना पड़ा है। सबकी अपनी अपनी डफली है और अपनी अपनी राग है। नमस्कार आप देख रहे थे समाज जागरण मै रमन कुमार।