नीट पेपर से लेकर छतों  तक ‘ लीक ‘ ही ‘ लीक ‘


हम जब बच्चे थे तब जिस ‘ लीक ‘ के बारे में जानते थे,वो आजकल के ‘ पेपर लीक ‘ और ‘ छत लीक ‘  से एकदम अलग थी ।  अंग्रेजी की ‘ लीक ‘ और हिंदी की ‘ लीक ‘ में जमीन -आसमान का अंतर होता है ।  अंग्रेजी की ‘ लीक ‘ को हमारे यहां हिंदी में ही नहीं बल्कि बुंदेलखंडी में भी ‘ टपकना ‘  या ‘ चूना ‘ कहते है ।  हमारे यहां ‘ लीक ‘ का दूसरा अर्थ  ‘ पगडण्डी ‘ भी होता है और एक अर्थ सिर में पड़ने वाले जुओं के बच्चे भी होते हैं। ये सफेद रंग के होते हैं। कहावत है कि-
लीक लीक कायर चले और लीक चले कपूत,
लीक छोड़ तीन ही चलें शायर, सिंह , सपूत।
आज दुर्भाग्य से कहिये या सौभाग्य से ‘ लीक ‘ यानि लीकेज एक राष्ट्रीय समस्या है ।  सड़क से लेकर संसद तक इस लीक की चर्चा हो रही है। लेकिन संसद में लीक पर चर्चा की इजाजत देने के बजाय बहस की मांग करने वाले विपक्ष के नेता का माइक तक बंद किया जाने  लगा है। अर्थात अभिव्यति की स्वतंत्रता या अधिकार का गला घोंटा जा रहा है। गला घोंटना एक जुलाई से लागू होने वाली भारतीय न्याय संहिता के तहत तहत किस धारा में अपराध होता है ये अभी मुझे पता नहीं ,क्योंकि मैंने जो संहिता अपने पाठ्यक्रम में पढ़ी थी वो भारतीय दंड संहिता थी।
सबसे पहले अयोध्या में नव निर्मित राम मंदिर की छत से होने वाली लीकेज की बात की जाये ।  चूंकि हम अयोध्या से सैकड़ों किमी दूर बैठे हैं इसलिए हमें सच्चाई का पता नहीं है, लेकिन जो तस्वीरें वायरल हुईं हैं उनकी बिना पर हम कह रहे हैं कि  राम जी के मंदिर की छत लीक हो रही है । लेकिन मंदिर के ट्रस्टी कह रहे हैं कि  -ये अफवाह है। अब हम तस्वीरों को सही मानें या ट्रस्टियों की बात को ये भी हमें पता नहीं  है कि  इन दोनों में से कौन सा साक्ष्य नए साक्ष्य संहिता की किस धारा के तहत आता है ?
वैसे अयोध्या में राम मंदिर के लीकेज से पहले यहां भाजपा की छत में भी लीकेज हुआ है और राम जी ने इसकी सजा भाजपा को यानी मंदिर निर्माण करने वाली राष्ट्रहितैषी पार्टी को चुनाव हारकर दे दी है। ये बात और है की भाजपा इस सजा को भी राम जी का प्रसाद और अनुकम्पा मानती है।  ये भाजपा की और चम्पत   राय की दरियादिली है। आजकल की अदावत की राजनीति में दरियादिली की सख्त जरूरत है। विपक्ष ने भी लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव में मतदान न कराकर दरियादिली का मुजाहिरा किया ही है।
अयोध्या से यदि आप दिल्ली आएं तो यहां अंतर्राष्ट्रीय इंदिरा गाँधी हवाई अड्डे पर टर्मिनल -1  की छत लीक हो रही है और पार्किंग  की छत तो टपक ही गयी। मेरा मानना है कि  इसके लिए इंदिरा गाँधी ही जिम्मेदार निकलेंगी ।  यदि उनके नाम की वजाय  ये हवाई अड्डा किसी भाजपा नेता के नाम पर होता तो शायद न छत लीक होती और न छत टपकती। वैसे पीने के पानी को लेकर हाय ! हाय !! कर रही पूरी दिल्ली ही इस समय लीक हो रही है ।  आम आदमी से लेकर ख़ास आदमियों के घर में पानी घुस चुका है ।  सड़कें यमुना की सगी बहनों की तरह सड़कों पर बह रही है।  किसी की क्या मजाल की कोई इस पानी को रोक सके ।  पानी को रोकने के लिए तो कोई स्विच भी नहीं होता अन्यथा सरकार ओम बिरला ने जिस तरह से राहुल गांधी की बोलती बंद कर दी ठीक उसी तरह पानी की बोलती भी बंद करा देती।
लीकेज और टपका-टपकी केवल दिल्ली का ही मसला नहीं है।  हमारे मध्यप्रदेश में जहां डबल इंजिन की सरकार है वहां भी जबलपुर में हवाई अड्डे का पोर्च एक कर के ऊपर आ गिरा। कार का कचूमर निकल गया ठीक उसी तरह जिस तरह देश की जनता का कचूमर पिछले एक दशक  से निकल रहा है और जनता है कि  मुस्कराये जा रही है ,फिर से पुरानी सरकार को सत्तारूढ़ देखकर। अब जबलपुर में हवाई अड्डे का पोर्च टपकने के लिए हमारे पहलवान मुख्यमंत्री डॉमोहन यादव को तो जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता ।  इसके लिए तो पूर्व के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ही दोषी माना जाना चाहिए ,लेकिन कर-चोर मौसेरे भाई होते   है। कौन -किसे जिम्मेदार ठहराए इसको लेकर भी विवाद खड़ा हो सकता है।
अब आइये बिहार चलते हैं। यहां नालंदा विश्व विद्यालय  को नव जीवन दिया गया है। यहां से ही नीट  का पेपर लीक हुआ है जो हमारी मोशा सरकार के गले की हड्डी बन गया है।  चूंकि बिहार  सरकार की बैशाखी   पर मोशा की सरकार टिकी है इसलिए नीट पेपर लीक को लेकर सरकार संसद में बहस करने से कन्नी काट रही है। कन्नी होती ही काटने के लिए है। बिहार में पेपर ही लीक नहीं होते बल्कि पूरे के पूरे पुल ही बह जाते है।  अभी  तक तीन-चार पुल तो बह चुके हैं। अब भाजपा और जेडीयू के बीच जो नया पुल बना है वो कितने दिन टिकेगा इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता। माननीय गारंटी महोदय भी नहीं। बिहार का और गारंटी का कोई रिश्ता नहीं है। बिहार न नीतीश कुमार की गारंटी दे सकता है और न तेजस्वी यादव की। चिराग पासवान हों  या जीतन माझी। कोई भी गारंटी  देने का खतरा मोल  नहीं ले सकते। पता नहीं कब,किसे ,किसके साथ खड़ा होना पड़े ?
वैसे लीकेज सचमुच है ही विश्वव्यापी समस्य ।  आपको याद है न कि  एक विकीलीक्स हुआ करती है ,जो दुनिया भर   की सरकारों के बारे में न जाने क्या-क्या लीक करती रहती है। विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे  हैं। वे अक्सर जेल आते-जाते रहते हैं। पिछले दिनों अमेरिका ने उन्हें  अपनी जेल से रिहा कर दिया।  अमेरिकी न्याय विभाग के साथ हुई डील के बाद उन्हें लंदन की हाई सिक्योरिटी जेल से छोड़ दिया गया है। रिहाई के बाद असांजे अपने मूल देश ऑस्ट्रेलिया चले गए। लेकिन हमारे देश में किसी भी लिक्बाज  को न पकड़ा जाता है और न सजा होती है ,क्योंकि हमारे यहां लीक करना एक कुटीर उद्योग है। ये यूपी,बिहार,मध्यप्रदेश,राजस्थान ही नहीं बल्कि दिल्ली तक में बाकायदा सरकारी संरक्षण में पनपता है ,भले ही सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की। लीकेज का धंधा बिना सरकारी सांरक्षण के चल ही नहीं पाता ,लेकिन इस हकीकत को हमारी संसद सुनना नहीं छति और सरकार स्वीकार करना नहीं चाहती।
मेरा तो मशवरा है कि  न सिर्फ केंद्र में बल्कि राज्य में लीकेज की समस्या को देखते हुए एक पृथक मंत्रालय की स्थापना कर देना चाहिए। एक अलग मंत्री लीकेज के मामले को देखे । रोज-रोक सीबीआई कहाँ तक लीकेज के मामले दिखेगी ? सीबीआई के पास विपक्षियों की धर-पकड़ का इससे ज्यादा महत्वपूर्ण काम पहले से ही है। मै तो कहता हूँ कि  उन्हें भी लीकेज के मामले में संसद पर बहस करने पर जोर नहीं देना चाहिए,उन्हें सड़कों पर उत्तर कर पीड़ितों के बीच खड़े होकर संसद के बाहर लीक काण्ड पर बहस करना चाहिए। संसद भीतर की बहस से नहीं बल्कि बाहर होने वाली बहस से हिलती है।   भीतर तो उनका माइक सरकार बंद करा सकती है किन्तु बाहर ऐसा करना सरकार के लिए भी मुमकिन नहीं है। 
आपकी हो या न हो किन्तु मेरी स्पष्ट धारणा है कि  देश की संसद  हो या सरकार ,पुल हो या हवाई अड्डा,परीक्षा हो या चुनाव  सबके सब लीक प्रूफ होना चाहिए। लीकेज को राष्ट्रीय  उद्योग न बनाकर राष्ट्रीय अपराध बनाया जाना चाहिए। वैसे केंद्र और राज्य  सरकारों ने ऐसे कानून एहतियात के तौर पर बनाये हैं ,सरकार चाहे तो इन लीकबाजों  के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता,भारतीय साक्ष्य संहिता में भी तरमीम कर सकती है और इसके आरोपियों के खिलाफ बुलडोजरों का इस्तेमाल भी कर सकती है ,लेकिन मुझे पता है कि  ऐसा करने के लिए चार सौ पार वाली सरकार चाहिए। 240  पार वाली सरकार ये सब नहीं कर सकती। बहरहाल हम देश के नौजवानों के लिए प्रार्थना ही कर सकते हैं कि  उनकी परीक्षाओं के पेपर लीक न हों ।  हम देश के हवाई अड्डों ,पुलों, मंदिरों और नई नवेली संसद के लिए भी प्रार्थना  ही कर सकते हैं कि  वे न लीक हों और न टपकें और न बहें। हम नहीं जानते कि  प्रार्थनाओं में कितना दम होता है ,लेकिन हमें इसके अलावा कुछ और आता ही कहाँ है ?
@ राकेश अचल