बाहुबलियों के मुकाबले वाले रूपौली विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक शंकर सिंह इस बार चूक गए तो फिर कभी नहीं….!

रुपौली विधानसभा उपचुनाव के लिए 10 जुलाई को होगी वोटिंग, 12 प्रत्याशी है मैदान में

रूपौली से लौटकर डा. रूद्र किंकर वर्मा।

बिहार की राजनिति में बाहुबलियों की धमक का लंबा खौफनाक इतिहास है। 1990 के बाद के दौर में ऐसे कई दुर्दांत चेहरे विधायक बन गए। कुछ की पत्नियों को सदन‌ का सुख मिला तो कुछ की आस अधूरी भी रह गई। 2000 के चुनाव को बाहुबलियों के लिए स्वर्णिम काल माना गया। जाति संरक्षित आतंक के बल पर दर्जनाधिक बाहुबली माननीय बन गए। हालांकि अलग-अलग कारणों से दो चार चूक भी गए। उनमें शंकर सिंह भी थे। जंगल राज का ही यह एक अध्याय है कि उस कालखंड में पूर्णिया जिले के एक बड़े हिस्से में नॉर्थ बिहार लिब्रेशन आर्मी के सुप्रीमों शंकर सिंह तो दूसरे हिस्से में फैजान गिरोह के सरगना अवधेश मंडल का वर्चस्व जग जाहिर था। लंबे समय तक वहां वर्चस्व की खूनी जंग चली। अनेक लोग उसकी भेंट चढ़ गए। 2000 के चुनाव में शंकर सिंह हिम्मत नहीं जुटा पाए। अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती रूपौली से निर्दलीय चुनाव लड़ विधायक बन गई। अनेक बाहुबलियों समेत अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती की जीत से शंकर सिंह का स्वाभिमान जगा और फरवरी 2005 के चुनाव में वह भी मैदान में कूद गए। उस चुनाव में बीमा भारती राजद की उम्मीदवार थी, मात खा गई। इसे उनका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि लोजपा उम्मीदवार के तौर पर शंकर सिंह चुनाव जीत तो गए, पर सदन में पांव नहीं रख पाए। इस वजह से की किसी को बहुमत नहीं मिल पाने के कारण ना सरकार बन पाई और ना विधानसभा का गठन हो पाया। परिणाम स्वरूप अक्टूबर 2005 में फिर से चुनाव हुआ। उसमें हिसाब बराबर करते हुए बीमा भारती ने शंकर सिंह को ऐसी पटकनी दी की बाद के चुनाव में भी वह कभी जीत नहीं पाए। 2010 में लोजपा, 2015 में निर्दलीय और 2020 में लोजपा उम्मीदवार के रूप में हार ही हार मिली। लेकिन गौर करने वाली बात यह अवश्य है कि हार की निरंतरता के बावजूद उनके जनाधार में क्षरण नहीं हुआ। बल्कि हर चुनाव में उनको मिले मतों में बढ़ोतरी होती रही। इसको इन आंकड़ों से समझा जा सकता है। 2010 में शंकर सिंह लोजपा के उम्मीदवार थे। 27171 मत मिले। 2015 में निर्दलीय 34783 मत पाने में वे सफल रहे। 2020 में यह आंकड़ा 44994 पर पहुंच गया,तब वह लोजपा के उम्मीदवार थे। मतों में वृद्धि का यह अनुपात बना रहा तो इस बार किला फतह माना जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह भी कि रूपौली के पिछले पांच मुकाबलों ने सिर्फ 2015 में ही वह तीसरे स्थान पर रहे। शेष चार के मुख्य संघर्ष में रहे। इस उप चुनाव में वह निर्दलीय ही ताल ठोक रहे हैं। संघर्ष का स्वरूप पूर्व जैसा ही है, पर माहौल उनके अनुरूप दिख रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि इसके बाद बिहार का क्रम नहीं टूटा है, तो रुपौली में शायद ही कभी उनकी जीत हो पाएगी। वैसे शंकर सिंह जीत के प्रति आश्वस्त हैं। उनके मुताबिक रुपौली के जनता के आमंत्रण पर वह उपचुनाव में उतरे हैं। भारी मतों से विजई बनाकर जनता उन्हें सेवा करने का अवसर अवश्य उपलब्ध कराएगी।

बता दें कि स्क्रूटिनी के दौरान निर्दलीय प्रत्याशी नीलम देवी का नामांकन रद्द हो गया। 13 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया था,12 का आवेदन सही मिला है। इनमें जदयू से कलाधर प्रसाद मंडल, राजद से बीमा भारती, राष्ट्रीय जन संभावना पार्टी से चंद्रदीप सिंह, आजाद समाज पार्टी से रवि रौशन, भारतीय सार्थक पार्टी से राजीव
कुमार, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक से मो. शादाब आजम, निर्दलीय से अरविंद कुमार सिंह, खगेश कुमार, दीपक कुमार, लालू प्रसाद यादव समेत शंकर सिंह नाम के दो अलग-अलग उम्मीदवार शामिल हैं।