दिवाकर पाठक, संवाददाता दैनिक समाज जागरण
हजारीबाग ( कंडाबेर) -सूबे के बहुचर्चित सिद्ध पीठ मां अष्टभुजी धाम (हजारीबाग जिला अंतर्गत केरेडारी प्रखण्ड के कंडाबेर ग्राम में स्थित) के ज्योतिष मर्मज्ञ आचार्य उमेश पाठक (रांची विश्वविद्यालय से ज्योतिष में स्वर्ण पदक प्राप्त) ने सनातन धर्म ग्रंथों की प्रामाणिकता के आधार पर सुसाइड करने वालों को आगाह करते हुए कहते हैं की जो लोग सुसाइड करते हैं,उन्हें पुनः मानव जन्म प्राप्त नहीं हो पाता। अर्थात् चौरासी लाख योनियों से घटकर तिरासी लाख नौ सौ निनांबे ही शेष रह जाता है और उसे इन्हीं घटे हुए योनियों में तड़पते हुए घाटे का शिकार होने के लिए मजबूर होना पड़ता है,पर पुनः मानव तन प्राप्त नहीं हो पाता। क्योंकि यदि आप एक बार कानून को तोड़ते हैं,तो वो हमेशा के लिए आपको तोड़ डालेगा। हम इसे इस प्रकार समझें की जैसे किसी भी संस्था द्वारा किसी को किसी पद के लिए नियुक्त की जाती है और ऐसे में यदि कोई बिना सूचना के एकाएक अपनी मर्जी से अपनी सीट छोड़कर चला जाय,तो क्या संस्था उसे पुनः उस पद पर नियुक्त करेगी? नहीं न। क्योंकि जब किसी संस्था द्वारा किसी को पुनः नियुक्त नहीं किया जा सकता,तो जो सर्व शक्तिमान है उसके नियम का क्या कहना। कुछ लोग ये भ्रम में जीते हैं की ईश्वर नाम की कोई सत्ता है ही नहीं,और यही कारण है की बिना सोचे समझे अनीतिपूर्ण कार्य को करते रहते हैं। गलती उनकी भी नहीं,दरअसल सनातन के अंदर ढोंग रचने वाले अनेक पंथों ने इसे दीमक की भांति चाटना शुरू कर दिया है। इन पंथों ने मानव कल्याणकारी अनुष्ठानों को विखंडित कर रख दिया है। जैसे सनातन में संस्कृति ज्ञान के लिए ईश्वर ने ब्राह्मणों को प्रतिनियुक्त किया है,क्योंकि वेद ने ब्राह्मण को पृथ्वी का देवता माना है। वेद कहता है की ब्राह्मणों द्वारा संपादित अनुष्ठान ही फलीभूत है। मानस में बाबा तुलसी ने स्पष्ट शब्दों में इसकी
प्रामाणिकता प्रस्तुत की है: बंदउँ प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संशय सब हरना।। सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी।। अर्थात् सर्वप्रथम पृथ्वी के देवता ब्राह्मणों के चरणों की वंदना करता हूं,जो सकल गुणों की खान हैं और सब संशयों को हरने वाले हैं। इस प्रकार वेद आदि धर्म ग्रंथों ने ब्राह्मणों को पृथ्वी का देवता होने की प्रामाणिकता की पुष्टि करता है। इसके विपरित सनातन के अंदर जो लगभग साढ़े चार सौ पंथ हैं,उसने हमारे सारे विधि संगत नीतियों को अपने स्वार्थ की चासनी में डुबाने का कार्य किया। समाज हित से उन्हें क्या लेना देना,उन्हें तो केवल अपनी डफली अपना राज चाहिए। इसलिए इनसे सावधान रहने की जरूरत है। जो लोग यह सोचते हैं की सुसाइड करने से जीवन को शांति मिल जायेगी,पर ऐसे लोग बिल्कुल निशाकाल में जी रहे हैं। उन्हें तो इसकी सजा तड़प तड़प कर ही भोगनी होगी,और कोई दूसरा रास्ता है ही नहीं। इसलिए सावधान हो जाएं,इसी में भलाई है। मत करें जिंदगी को बर्बाद। जीवन जी भरके जिएं। इस प्रकार सनातन में ही छुपा है सुसाइड की संजीवनी। इसलिए किसी के बहकावे में मत आएं। अपने बहुमूल्य जीवन को पहचानें। अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करें। यही आपके जीवन में उषा को जगाएगा।
दूसरे शब्दों में सर्वप्रथम हम ये समझें की धर्म और अधर्म क्या है? यदि हम इसे समझ गए,तो फिर और कुछ समझने की जरूरत नहीं है। इसी में जीवन की सारी समस्याओं का समाधान छिपा है। जवाब बहुत ही आसान है। वेद जिस कार्य को करने की अनुमति प्रदान करता है,वही धर्म है और जिस कार्य को करने की अनुमति नहीं देता हो,वही अधर्म है। बस केवल और केवल इसी सूत्र को याद रखें। इसी सूत्र से जीवन की सारी समस्याओं की गणित का हल है। संपूर्ण विश्व में सनातन ही एक मात्र ऐसा धर्म है,जो विश्व कल्याण के नारे लगाता है। ऐसी उदारता और कहां मिलेगी? इसलिए अपने जीवन को समझने की कोशिश करें। वेदों ने यह प्रामाणिकता पेश करी है की जब तक सूरज चांद है,तब तक सनातन कभी मिट नहीं सकता। यही जीवन का मुख्य सार तत्व है।
