वह रे बिहार ! पार्ट : -2

गर्दन पर लटका है एससी एसटी एक्ट एवं महिला उत्पीड़न की तलवार !! कराह रहे है जनता, बुद्धिजीवी और पत्रकार !!!
लूट की राशि से मालामाल होते जा रहे हैं थानेदार, पंचायती राज्य ब्यवस्था के अधिकारी एवं पंयायत सरकार!!!! वाह रे बिहार!!!!!

दैनिक समाज जागरण, अनिल कुमार मिश्र ,ब्यूरो चीफ बिहार -झारखंड प्रदेश।

बिहार प्रदेश के औरंगाबाद जिले में पंचायती राज व्यवस्था की एक झलक , चौंकाने वाला है! पंचायत की सर्वांगीण विकास हेतु प्राप्त योजनामद की राशि, सरकारी संपत्ति व वनसंपदा के लूट की राशि से पंचायत सरकार एवं त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा शिकायतकर्ताओं के विरुद्ध सभी तरह की साक्ष्य तैयार किया जाता है, खरीदा जाता! जिसमें थानेदार एवं उनके अनैतिक कार्यों के संरक्षक पुलिस पदाधिकारी की अहम भूमिका होती है।

अनैतिक कार्यों के विरुद्ध उठ रहे आवाज को दबाने के लिए एक मोटी रकम थानेदार महोदय द्वारा तय कर ले लिया जाता है फिर निर्वाधगति गति से चाहे पत्रकार हो या बुद्धजीवी, अथवा पीड़ित व प्रभावित जनता सभी के विरूद्ध दमन की कार्रवाई प्रारंभ होती है । और सरकार व प्रशासन को सहयोग. देने वाले जनता ,बुद्धिजीवी, पत्रकार सभी न्याय व अधिकार पाने के लिए सड़क से लेकर पत्रकारों, नेता तथा अलाधिकारियों के पास दौड़ लगाते- लगाते, अंतत: जेल के सलाखों के पीछे होते है। आखिर ऐसा क्यो? और इसके लिए जबाबदेह कौन हैं?

आतंक की पर्याय बन चुके थानेदारों के विरुद्ध आलाधिकारियों को प्राप्त शिकायत व साक्षय के आलोक में आरोपितो के विरूद्ध विधिसम्मत कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है तथा बार-बार जन शिकायत के बावजूद भी आरोपितो द्वारा पीड़ितों के विरूद्ध दमन की कार्रवाई , क्यों और कैसे जारी रहता है ,यह अहम सवाल अपने आप में जाँच का विषय हैं!

प्रखंड एवं अनुमंडल स्तरीय प्रशासनिक एवं पुलिस पदाधिकारियो की बात ही छोड़ीए! जिला पदाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक तथा अपीलीय प्राधिकार के आदेश व दिशानिर्देश को भी अम्बा थाना के पदेन थानेदार एवं अंचल अधिकारी नहीं मानते हैं, यह आरोप गंभीर हैं और यह अहम सवाल भी जांच का विषय है!

जाँच के नाम पर जाँच अधर में लटक जाता है और उद्देश्यों से भटक चुके थानेदार एवं संबंधित पुलिस पदाधिकारियों द्वारा दमन की कार्रवाई, अनैतिक कार्यों के विरूद्ध आवाज उठाने वालें पर और बढ जाता है । फलस्वरूप
जनता किसी भी हदतक जाने के लिए मजबूर हो जाती है । अंततः पुलिस एवं पुलिस संरक्षित गुण्डों द्वारा प्रारंभ दमन की कार्रवाई ,विवस लोगों के हाथों में बंदूक थमहा देता है, जिसमें भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से पीड़ित व प्रभातित जनता पर ही दमन की कार्रवाई होती है ।

बदले एवं दुराग्रह की भावना से हाथों में हथियार उठा चुके पीड़ित व प्रभावित जनता पुलिस वालों से बदला लेते हैं जिसके चक्रव्यूह में निर्देश पुलिस के नवजवान ही मारे जाते हैं और थानेदार थाना में बैठे मलाई मारते है और और सामाजिक तत्व उनके रिश्तेदार बन जाते हैं जिसका साक्ष्य थाना में लगे सीसीटीवी कैमरा है । यह हलात हमारे समाज, राष्ट्रवाद व राज्य के लिए दुर्भाग्य हैं।

अगर यह कहा जाए कि आतंक का पर्यायवाची बन चुके
चंद वर्दीधारियों की आतंक एवं जुल्म के कारण हमारे राज्य व राष्ट्र मे आतंकवाद को सहारा मिल रहा है । जो हमारे समाज ,राज्य एवं राष्ट्र के लिए खतरा है।और इन्हीं के कारण उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों हमारे राष्ट्र के नवजवान बली की बेदी पर चढ़ रहें है। तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
यूँ कहा जाये की अंग्रेजों एव आतंकवादियों से भी क्रूर कई थानेदार हैं तो इसमें भी कोई अतिशयोक्ति नही होगी ।
उपरोक्त वर्णित तथ्यों की गहन जांच ,जनहित व राजहित तथा राष्ट्रहित में सर्वोपरि प्रतीत होता है।

जांचोंपरांत आरोपी के विरुद्ध विधि सम्मत कठोर कार्रवाई हों तभी आतंक मुक्त राष्ट्र का परिकल्पना किया जा सकता है अन्यथा आतंक की पर्याय बन चुके चंद खाकी वर्दी, उग्रवाद उत्पादक यंत्र के रूप में काम करते रहेंगे और सरकार चाह कर भी उग्रवाद की सफाई नहीं कर पाएगी।
शेष अगले अंक,गतांक से आगे…