संवाददाता/ आनन्द कुमार। दैनिक समाज जागरण
दुद्धी/ सोनभद्र। ज्ञान और विद्या की देवी मां सरस्वती को समर्पित बसंत पंचमी का त्यौहार 2 फरवरी रविवार को मनाया जाएगा. इस त्यौहार को देखते हुए मूर्तिकार मां सरस्वती के मूर्ति का अंतिम रूप देने में जुट गए हैं. बसंत पंचमी कला से जुड़े लोगों के अलावा विद्यार्थियों के लिए भी बहुत खास होता है. इस दिन सभी घरों व स्कूलों आदि में सभी कलाओं से परिपूर्ण मां सरस्वती की पूजा -अर्चना की जाती है. यह त्यौहार प्राचीन काल से बहुत प्रचलित है. इस दिन प्रत्येक मनुष्य सरस्वती माता की पूजा करके उनसे शांति, समृद्धि, बुद्धि, सफलता व ज्ञान के लिए कामना करते हैं. इसके साथ ही स्कूलों व कॉलेजों में भी इनकी प्रतिमा की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में मां सरस्वती को स्वयं ज्ञान की देवी कहा जाता है. यह त्यौहार हर वर्ष माघ महीने में शुक्ल पंचमी को मनाई जाती है. यह केवल भारत में ही प्रचलित नहीं है, बल्कि इसके पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश में भी इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इसका उल्लेख हिंदू धर्म के धर्मग्रंथो में भी किया गया है. सरस्वती पूजा के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं. जानकारों के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी, तब सभी जीवों और वनस्पतियों का निर्माण किया था. भगवान शिव के अनुसार ब्रह्मा जी ने संसार का निर्माण तो कराया लेकिन सारा जगत अभी भी मूक और रंगहीन था. भगवान शिव ने परमपिता ब्रह्मा को यह आज्ञा दी कि इतनी बड़ी दुनिया का निर्माण अभी भी अधूरा है. सभी ऋषि -मुनियों और देवी- देवताओं ने मिलकर इस समस्या का निवारण करना चाहा. इसके लिए ब्रह्मा जी ने दी समस्या के निदान के लिए श्री विष्णु की स्तुति की. इसके बाद विष्णु भगवान का स्थान तत्काल ही प्रकट हो गया. ब्रह्मा के कथन के अनुसार उन्होंने समस्या का समाधान खोजने के लिए आदि शक्ति की याचना की. जब मां आदिशक्ति दुर्गा के दर्शन हुए तो उन्होंने समस्या को समझकर सृष्टि को और भी सुशोभित करने के लिए स्वयं के तेज से एक श्वेत दिव्य प्रकाश प्रकट किया. आदिशक्ति के ही एक रूप में वह चारभुजाओं वाली देवी, हाथों में वीणा, कमंडल, पुस्तक और माला वास्तुशिल्प थीं. देवी ने देवताओं के अनुसार अपनी वीणा से स्वर निकाला तो उनकी मधुर ध्वनि से पूरे संसार में जीवन आ गई. इसके बाद पूरी दुनिया में शब्द और कलाओं का संचार हुआ. उन्होंने प्रकाश पुंज वाली देवी का नाम मां सरस्वती बताया, जो माता शक्ति के आज्ञा के अनुसार परमपिता ब्रह्मा जी की अर्धांगिनी बनी है. इस समय से संपूर्ण जगत में माता सरस्वती के प्रकट होने के उल्लास में सरस्वती की पूजा की गई, जो आज तक जारी है।
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