समतामूलक समाज के ध्वजवाहक थे भिखारी ठाकुर : डॉ. शैलेश

डी.बी. कॉलेज में 137 वीं जयंती पर “नई पीढ़ी और भिखारी ठाकुर” विषय पर परिचर्चा का आयोजन ।

♦️केंद्र सरकार भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा दे, यही भिखारी ठाकुर जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी

स्त्रियों के भाव, वियोग और उनकी व्यथाओं का सहज चित्रण किया था भिखारी ठाकुर ने : डॉ. बरखा अग्रवाल*

♦️अंतरात्मा के मौलिक स्वरूप का साक्षात् चित्रण किया भिखारी ठाकुर ने : डॉ. अखिलेश

समाज सुधारक और लोक कलाकार भिखारी ठाकुर की रचनाओं ने आज भी सामाजिक चेतना को जगाए रखा है, समारोह में विद्वानों ने उनके विचारों की प्रासंगिकता पर बल दिया

जयनगर ।

भोजपुरी के शेक्सपियर के रूप में विख्यात लोक कलाकार और समाज सुधारक भिखारी ठाकुर की 137वीं जयंती जयनगर अनुमंडल स्थित डी.बी. कॉलेज के सभागार में धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर “नई पीढ़ी और भिखारी ठाकुर” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें प्रमुख शिक्षाविदों, साहित्यकारों और छात्र-छात्राओं ने भिखारी ठाकुर के योगदान और उनके विचारों की सामाजिक प्रासंगिकता पर विचार विमर्श किया।

समारोह की शुरुआत भोजपुरी साहित्य विकास मंच के राष्ट्रीय प्रवक्ता और वाणिज्य विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेश सिंह के उद्घाटन भाषण से हुई। उन्होंने भिखारी ठाकुर के रचनात्मक योगदान को सराहा और कहा, “भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों और गीतों के माध्यम से समाज में समता और समानता की बात की थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों, असमानताओं और स्त्रियों के अधिकारों को प्रमुखता से उठाया, जो आज भी हमारे समाज में प्रासंगिक हैं। उनका दृष्टिकोण आज के समय में भी समाज सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण है।”

डॉ. शैलेश ने विशेष रूप से भोजपुरी को संविधान में आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता पर जोर दिया और इसे भिखारी ठाकुर के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि बताया। उन्होंने कहा, “भिखारी ठाकुर ने जिस भोजपुरी भाषा को अपने नाटकों और गीतों के माध्यम से जीवित रखा, वही भाषा आज एक समृद्ध संस्कृति का प्रतीक बन चुकी है। यदि सरकार भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा देती है, तो यह उनके योगदान को सम्मानित करने का सर्वोत्तम तरीका होगा।”

समारोह में मनोविज्ञान विभाग की वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ. बरखा अग्रवाल ने भिखारी ठाकुर के नाटकों में स्त्रियों के दर्द और व्यथा का उल्लेख करते हुए कहा, “भिखारी ठाकुर ने अपने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से समाज में महिलाओं के संघर्षों और संवेदनाओं को अत्यंत सरल और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया। उनके नाटक न केवल महिलाओं के आंतरिक भावनाओं को चित्रित करते हैं, बल्कि समाज के समक्ष उनके संघर्षों को भी उजागर करते हैं। उनकी रचनाएं समाज की मानसिकता को बदलने में सहायक रही हैं।”

समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजनीति विज्ञान विभाग के डॉ. अखिलेश श्रीवास्तव ने भिखारी ठाकुर को भारतीय समाज के लोकधर्मी विचारक के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “भिखारी ठाकुर ने समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों की आवाज उठाई और उनके दर्द को समाज के सामने लाया। उन्होंने भारतीय संस्कृति की मौलिक भावनाओं को गहराई से समझा और समाज के हर वर्ग के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। आज भी उनकी रचनाएं समाज में समानता, भाईचारे और सामाजिक सुधार के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।”

समारोह में अन्य उपस्थित प्रमुख शिक्षाविदों में डॉ. शिंकु कुमारी, डॉ. स्वीटी कुमारी, डॉ. मधुरंजन, डॉ. धर्मेंद्र कुमार, डॉ. अनंतेश्वर यादव ने भी अपने विचार साझा किए। सभी ने भिखारी ठाकुर के कार्यों की सराहना करते हुए उनके विचारों को वर्तमान समाज में लागू किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया।

समारोह के समापन पर डॉ. अनंतेश्वर यादव ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया और भिखारी ठाकुर की शिक्षाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा, “भिखारी ठाकुर की रचनाएं न केवल साहित्यिक धरोहर हैं, बल्कि समाज सुधार के लिए एक अमूल्य धरोहर भी हैं। हमें उन्हें आगे बढ़ाकर समाज में जागरूकता फैलाने की दिशा में काम करना चाहिए।”

इस आयोजन में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं, शिक्षाविद और समाज के विभिन्न वर्गों के लोग उपस्थित थे, जिन्होंने भिखारी ठाकुर की विरासत और उनके विचारों को याद करते हुए उन्हें आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।