छठ पूजा के दौरान नही होती पंडितों की आवश्यकता:- जर्नलिस्ट वेद प्रकाश
समाज जागरण पटना जिला संवाददाता:- वेद प्रकाश
हिन्दू धर्मो में पूजा पाठ का आयोजन कर अनेकों देवी देवताओं की पूजा की जाती है। जिसे सम्पन्न कराने के लिए पंडितों तथा ब्राह्मणों की आवश्यकता होती है। जबकि छठ पूजा को सम्पन्न कराने के लिए पंडितों की आवश्यकता नही होती है। यही कारण है कि छठ पूजा को पवित्र तथा गलत अवधारणाओं से मुक्त माना जाता है। यह पूजा किसी खास जाती समुदाय से सम्बन्धित नही है। यह केवल शुद्धता, पवित्रता तथा लोक आस्था से जुड़ी है। इसका धार्मिक तथा बैज्ञानिक मान्यताएं अलग अलग है। इस दौरान छठ व्रतियों द्वारा सूर्य उपासना तथा षष्ठी की पूजा की जाती है।
- क्या है धार्मिक मान्यताएं*
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप तथा देवमाता अदिति के पुत्र है। इसी कारण सूर्य देव का एक नाम आदित्य भी है। इन्हें शिव का अवतार माना जाता है। ये देवगुरु बृहस्पति का मित्र है। वेदों के अनुसार सूर्य को जगत की आत्मा कहा जाता है। क्योंकि पृथ्वी पर जीवन की संचार में सूर्य की प्रमुख भूमिका है। सूर्य की कई ओतनिया थी जिनमे दो पत्नियां उषा तथा प्रत्युषा भी थी। छठ पर्व के दौरान संध्या अर्घ्य के दौरान सूर्य अपनी पत्नी प्रत्युषा के साथ होते है। जबकि सुबह अर्घ्य के समय सूर्य अपनी पत्नी उषा के साथ होते है। धार्मिक गर्न्थो के अनुसार देवी षष्ठी तथा सूर्य की सबसे पहला पूजा त्रेता युग मे वनवास की अवधि पूर्ण कर घर लौटने पर राम के कहने पर सीता ने किया था। जबकि द्वापर युग मे कुन्ति के द्वारा सूर्य की उपासना के फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ था। जबकि शाम्ब पुराण के अनुसार सूर्य उपासना का प्रचलन द्वापर युग मे काफी विस्तार से हुआ है। शाम्ब पुराण के अनुसार राजा शाम्ब का जन्म श्रीकृष्ण की पत्नी तथा जामवंत की पुत्री जामवंती के गर्भ से हुआ था। जो एक समय सरोवर में सुंदर युवतियों के साथ लिपटकर जल क्रीड़ा कर रहे थे। उसी समय वहां से होकर महर्षि गर्ग गुजर रहे थे। जिन्हें देखने के बावजूद भी राजा शाम्ब उन युवतियों से अलग नही हटे। यहां तक कि राजा शाम्ब ने महर्षि गर्ग का अभिवादन करने के बजाए उनका उपहास किया। जिससे क्रोधित महर्षि गर्ग ने राजा शाम्ब को कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। जिसकी सूचना पाकर दुखी श्रीकृष्ण ने राजा शाम्ब को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए शाक द्वीप से सूर्य उपासकों को बुलाया तथा विभिन्न बारह स्थानों पर अर्क स्थलों के रूप में स्थापित कर सूर्य की पूजा पाठ करवाया। उन बारह अर्क स्थलों में उलार के ओलार्क, देव के देवार्क, उड़ीसा के कोणार्क, पंडारक के पुण्यार्क, अङ्गरी के औंगार्क, काशी के लोलार्क, कन्दाहा सहरसा के मार्केण्डेयार्क, उत्तराखण्ड कटारमल के कटलार्क, बड़गांव के बालार्क, चंद्रभागा नदी किनारे चानार्क, पंजाब के चिनाव नदी किनारे आदित्यार्क तथा गुजरात के पुष्पावती नदी किनारे मोढेरार्क शामिल है। तब से सूर्य की पूजा बृहद पैमाने पर शुरू हुई। वही देवी षष्ठी ब्रह्मा की मानस पुत्री थी। पुराणों के अनुसार देवी षष्ठी को सूर्य की बहन तथा शिव पुत्र कार्तिकेय की पत्नी माना जाता है। देवी षष्ठी को सन्तान प्राप्ति की देवी माना जाता है इसी वजह से शिशुओं के जन्म के छठे दिन छथिहार मनाने का प्रचलन पूर्व चली आ रही है। महाभारत के अनुसार सबसे पहले छठ पर्व दानवीर कर्ण ने किया था। जबकि द्वापर युग मे ही जब पांडवों ने जुए ने अपना सबकुछ हार गए थे तो श्रीकृष्ण के द्वारा बताए जाने पर द्रोपदी ने भी छठ पर्व की थी। - क्या है वैज्ञानिक मान्यताएं *
वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार विशाल आणविक बादल के हिस्से के ढहने से लगभग 4.57 अरब वर्ष पूर्व सूर्य का उतपति हुआ है जो अधिकांशतः हाइड्रोजन और हीलियम गैस का बना है। रेडियोधर्मी डेटिंग द्वारा निर्धारित सूर्य की आयु लगभग 4.6 बिलियन वर्ष होने का अनुमान है। सूर्य से आने वाली किरणों में रेडियो तरंगे, माइक्रोवेव, अवरक्त, दृश्य प्रकाश, पराबैगनी, एक्स रे तथा गामा किरणे शामिल है। जबकि सूर्य से निकलने वाली किरणों में सुषुम्णा, सुरादना, उदन्वसु, विश्वकर्मा, उदावसु, हरिकेश तथा विश्वव्यचा सूर्य की सात किरणें अलग अलग रंग की होती है। सभी का अपना अपना अलग महत्व है। इन सातों रंग के किरणों को मिलने से श्वेत प्रकाश का निर्माण होता है। इन किरणों में सात मुख्य ग्रहों की ऊर्जा होती है। वैज्ञानिक मतों के अनुसार पृथ्वी पर ऊर्जा का एकमात्र स्रोत सूर्य है। जिसकी ऊर्जा से ही पृथ्वी पर ऊष्मा तथा जीवन का संचार होती है। विभिन्न कारकों द्वारा इन ऊष्मा तथा ऊर्जा का रूपांतरण होता है। लेकिन यह ऊर्जा तथा ऊष्मा का विनास नही होता है। प्रत्येक जीवो से लेकर पौधों तक को ऊर्जा तथा ऊष्मा की जरूरत होती है। इस वजह से सूर्य उपासना को प्राकृतिक पूजा से जोड़ा गया है। जबकि छठ पूजा का महत्व सबसे ज्यादा इस वजह से है क्योंकि इस पूजा को सबसे पवित्र माना जाता है। जिसके कारण पूजा के दौरान घरों तथा आसपास की सफाई बारीकी से की जाती है। जिससे वातावरण में शुद्धता उतपन्न होती है। रोगाणुओं का नाश होने के कारण बीमारियों से मुक्ति मिलती है। वही विषाणुओं का नाश होने के कारण विषाणुओं से उतपन्न होनेवाली कुष्ठ रोगों से भी लोगो को शुरक्षा मिलती है। - कैसे की जाती है छठ पूजा *
छठ पूजा के दौरान पंडितों तथा ब्राह्मणों की कोई आवश्यकता नही होती है। छठब्रती अपनी क्षमता के अनुसार छठ पर्व करते है। जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नही है वैसे लोग केवल उपवास रखकर भी छठ पर्व करते है। जबकि सामर्थ्य व्यक्ति धूम धाम के साथ छठ व्रत करते है। छठ पर्व की शुरुआत नहाय खाय से शुरू होती है। उस दिन स्नान व पूजा करने के बाद व्रती अरवा चावल, चना का दाल तथा कद्दू की शब्जी को प्रसाद रूपी ग्रहण करते है। दूसरे दिन लोहड़ को संध्या के समय स्नान कर पूरे पवित्रता के साथ अरवा चावल, दूध तथा गुड़ से प्रसाद प्रसाद बनाते है। उसके बाद पूजा अर्चना कर प्रसाद ग्रहण कर सगे सम्बन्धियो को भी प्रसाद ग्रहण कराते है। उस समय से ब्रती 36 घण्टे का उपवास शुरू करते है। इसी दौरान तीसरे दिन संध्या के समय जलाशयों में स्नान कर फल नारियल तथा ठेकुआ से भरे कोलसुपो को हाथों में लेकर अस्तलगामी सूर्य को अर्घ्य देते है। वही चौथे तथा अंतिम दिन ब्रती जलाशयों में पहुंचकर फ्लो, नारियल तथा ठेकुआ भरी कोलसुपो को लेकर उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर पर्व का समापन करते है। वही प्रसाद ग्रहण कर 36 घण्टे का उपवास को विराम देते है।